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हिन्दी सूरदास की झोपड़ी Question Answer Hindi Chapter 1 Class 12 Antral CBSE

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Question 1:
‘चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता?’ नायकराम के इस कथन में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।

ANSWER:
यह कथन नायकराम ने कहा था। इस कथन में निहित भाव इस प्रकार है कि सूरदास के जल रहे घर से उसके शत्रुओं को प्रसन्नता हो रही होगी।जगधर के पूछने पर की आज चूल्हा ठंडा नहीं किया था? इसके उत्तर में नायकराम ने यह उत्तर दिया था कि चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता। नायकराम कहना चाहता है कि इस घटना से उसके शुत्रओं को प्रसन्न होने का अवसर मिल रहा है। लोगों ने यह सोचा कि सूरदास के चूल्हे में जो अंगारे बचे थे, उनकी हवा से शायद यह आग लगी थी। परन्तु सच यह नहीं था। भैरों ने सूरदास के झोपड़े में जान बूझकर आग लगाई थी। नायकराम जानता था कि आग चूल्हे की वजह से नहीं लगी है। किसी ने लगाई है।

Question 2:
भैरों ने सूरदास की झोपड़ी क्यों जलाई?

ANSWER:
भैरों सूरदास से बहुत नाराज़ था। जब भैरों तथा उसकी पत्नी के बीच में लड़ाई हुई, तो नाराज़ सुभागी सूरदास के घर रहने चली गई। भैरों को यह बात अच्छी नहीं लगी। सूरदास हताश सुभागी को बेसहारा नहीं करना चाहता था। अतः वह उसे मना नहीं कर पाया और उसे अपने घर में रहने दिया। भैरों के लिए यह बात असहनीय थी। भैरों को सूरदास का यह करना अपना अपमान लगा। उसी दिन से उसने सूरदास से बदला लेने की ठान ली। वह सूरदास को सबक सिखाना चाहता था। जिस घर के दम पर उसने सुभागी को साथ रखा था, उसने उसी को जला दिया। इस तरह उसने सूरदास की झोपड़ी में आग लगा दी और अपने अपमान का बदला ले लिया।

Question 3:
‘यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी।’ संदर्भ सहित विवेचन कीजिए।

ANSWER:
सूरदास एक अँधा भिखारी था। उसकी संपत्ति में एक झोपड़ी, जमीन का छोटा-सा टुकड़ा और जीवनभर जमा की गई पूंजी थी। यही सब उसके जीवन के आधार थे। ज़मीन उसके किसी काम की नहीं थी। उस पर सारे गाँव के जानवर चरा करते थे। सूरदास उसी में प्रसन्न था। झोपड़ी जल गई पर वह दोबारा भी बनाई जा सकती थी लेकिन उस आग में उसकी जीवनभर की जमापूँजी जलकर राख हो गई थी। उसे दोबारा इतनी जल्दी जमा कर पाना संभव नहीं था। उसमें 500 सौ रुपए थे। उस पूँजी से उसे बहुत-सी अभिलाषाएँ थी। वह गाँववालों के लिए कुँआ बनवाना चाहता था, अपने बेटे की शादी करवाना चाहता था तथा अपने पितरों का पिंडदान करवाना चाहता था। झोपड़ी के साथ ही पूँजी के जल जाने से अब उसकी कोई भी अभिलाषा पूरी नहीं हो सकती थी। उसे लगा कि यह फूस की राख नहीं है बल्कि उसकी अभिलाषाओं की राख है। उसकी सारी अभिलाषाएँ झोपड़ी के साथ ही जलकर राख हो गई। अब उसके पास कुछ नहीं था। बस दुख तथा पछतावा था। वह गर्म राख में अपनी अभिलाषाओं की राख को ढूँढ रहा था।

Question 4:
जगधर के मन में किस तरह का ईर्ष्या-भाव जगा और क्यों?

ANSWER:
जगधर जब भैरों के घर यह पता करने पहुँचा कि सूरदास के घर आग किसने लगवाई है, तो उसे पता लगा कि भैरों ने ही सूरदास के घर आग लगवाई थी। इसके साथ ही उसने सूरदास की पूरे जीवन की जमापूँजी भी हथिया ली है। यह राशि पाँच सौ रुपए से अधिक की थी। जगधर को भैरों के पास इतना रुपया देखकर अच्छा न लगा। वह जानता था कि यह इतना रुपया है, जिससे भैरों की जिंदगी की सारी कठिनाई पलभर में दूर हो सकती है। भैरों की चांदी होते देख, उससे रहा न गया। वह मन-ही-मन भैरों से ईर्ष्या करने लगा। लालच उसके मन में साँप की भांति फन फैलाए खड़ा हो गया। भैरों के इतने रुपए लेकर आराम से जिंदगी जीने के ख्याल से ही वह तड़प उठता। भैरों की खुशी उसके लिए दुख का कारण बन गई थी।

Question 5:
सूरदास जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त क्यों रखना चाहता था?

ANSWER:
सूरदास एक अँधा भिखारी था। वह लोगों के दान पर ही जीता था। एक अँधे भिखारी के पास इतना धन होना लोगों के लिए हैरानी की बात हो सकती थी। इस धन के पता चलने पर लोग उस पर संदेह कर सकते थे कि उसके पास इतना धन कहाँ से आया। वह जानता था कि एक भिखारी को धन जोड़कर रखना सुहाता नहीं है। लोग उसके प्रति तरह-तरह की बात कर सकते हैं। अतः जब जगधर ने उससे उन रुपयों के बारे में पूछा, तो वह सकपका गया। वह जगधर को इस बारे में बताना नहीं चाहता था। जगधर के द्वारा यह बताए जाने पर कि वह रुपया अब भैरों के पास है, तो उसने उन रुपयों को अपना मानने से इंनकार कर दिया। वह स्वयं को समाज के आगे लज्जित नहीं करना चाहता था। वह जानता था कि कोई उसकी गरीबी का मजाक नहीं उड़ाएगा। लोगों को यह पता लगा कि उसके पास इतना धन था, तो वह लोगों को इसका जवाब नहीं दे पाएगा। अतः वह जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त रखना चाहता था।

Question 6:
‘सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय-गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा।’ इस कथन के संदर्भ में सूरदास की मनोदशा का वर्णन कीजिए।

ANSWER:
सूरदास अपने रुपए की चोरी की बात से दुखी हो चूका था। उसे लगा की उसके जीवन में अब कुछ शेष नहीं बचा है। उसके मन में परेशानी, दुख ग्लानि तथा नैराश्य के भाव उसे नहला रहे थे। अचानक घीसू द्वारा मिठुआ को यह कहते हुए सुना कि खेल में रोते हो। इन कथनों की सूरदास की मनोदशा पर चमत्कारी परिवर्तन कर दिया। दुखी और निराश सूरदास जैसे जी उठा। उसे अहसास हुआ कि जीवन संघर्षों का नाम है। इसमें हार-जीत लगी रहती है। इंसान को चोट तथा धक्कों से डरना नहीं चाहिए। बल्कि जीवन संघर्षों का डटकर सामना करना चाहिए। जो मनुष्य जीवन रूपी खेल में हार मान लेता है, उसे दुख और निराशा के अलावा कुछ नहीं मिलता है। घीसू के वचनों ने उसे समझाया कि खेल में बच्चे भी रोना अच्छा नहीं मानते, तो वह किसलिए रो रहा है। बस जैसे वह जाग उठा और राख के बीच रोता-बिलखता सूरदास उठ खड़ा हुआ। अपने दुख पर प्राप्त विजय-गर्व की तरंग ने जैसे उसमें प्राण डाल दिए और वह राख के ढेर को प्रसन्नता से दोनों हाथों से उड़ाने लगा। यह ऐसे मनुष्य की मनोदशा है, जिसने हार का मुँह तो देखा परन्तु जो हारा नहीं बल्कि अपनी हार को भी जीत में बदल दिया।

Question 7:
‘तो हम सौ लाख बार बनाएँगे।’ इस कथन के संदर्भ में सूरदास के चरित्र का विवेचन कीजिए।

ANSWER:
इस कथन को ध्यान से समझने पर हमें सूरदास के चरित्र की निम्नलिखित बातें सामने आती हैं।-
(क) दृढ़ निश्चयी- वह एक दृढ़ निश्चयी व्यक्ति है। रुपए के जल जाने की बात ने उसे कुछ समय के लिए दुखी तो किया परन्तु बच्चों की बातों ने जैसे उसे दोबारा खड़ा कर दिया। उसे अहसास हुआ कि परिश्रमी मनुष्य दोबारा खड़ा हो सकता है। उसने दृढ़ निश्चय से मुसीबतों का सामना करने की कसम खा ली। पछताना छोड़कर उसमें नई हिम्मत का समावेश हुआ।

(ख) परिश्रमी- वह भाग्य के भरोसे रहने वाला नहीं था। उसे स्वयं पर विश्वास था। अतः वह उठ खड़ा हुआ और परिश्रम करने के लिए तत्पर हो गया। उसने यही संदेश मिठुआ को भी दिया कि जितनी बार उसकी झोपड़ी जलेगी, वह उतनी बार उसे दोबारा खड़ा कर देगा।

(ग) बहादुर- सूरदास बेशक शारीरिक रूप से अपंग था परन्तु वह डरपोक नहीं था। मुसीबतों से सामना करना जानता था। इतने कठिन समय में भी वह स्वयं को बिना किसी सहारे के तुरंत संभाल सकता है। बहादुरी युद्ध के मैदान में नहीं देखी जाती है। जीवन रूपी युद्ध के मैदान में भी देखी जाती है। इसमें सूरदास बहादुर व्यक्ति था।

Comments

  1. Janvi says:
    April 15, 2025 at 10:40 am

    helpful for me

    Reply
  2. Manvi says:
    April 14, 2025 at 5:40 pm

    so nice

    Reply
  3. Arnav says:
    December 30, 2024 at 1:27 am

    It was really helpful

    Reply
  4. Harshita says:
    October 8, 2024 at 1:39 pm

    Very helpful for me

    Reply
  5. Purti says:
    July 13, 2024 at 7:12 am

    God

    Reply

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