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Rasayan Vigyan Class 12 Chapter 6 रसायन विज्ञान Important Questions

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हैलोऐल्केन तथा हैलोऐरीन

प्रश्न 1: हैलोएल्केन्स और हैलोएरीन्स की परिभाषा दें।

उत्तर:

हैलोएल्केन्स:

हैलोएल्केन्स वे यौगिक होते हैं जिनमें हैलोजन परमाणु (जैसे कि F, Cl, Br, I) एक \(sp^3\) संकरित कार्बन परमाणु से जुड़ा होता है।

उदाहरण: \(CH_3-CH_2-Cl\) (एथिल क्लोराइड)।

हैलोएरीन्स:

हैलोएरीन्स वे यौगिक होते हैं जिनमें हैलोजन परमाणु एक sp² संकरित कार्बन परमाणु से जुड़ा होता है जो एक एरोमैटिक रिंग का हिस्सा होता है।

उदाहरण: \(C_6H_5-Cl\) (क्लोरोबेंज़ीन)।

प्रश्न: 2 हैलोएल्केन्स और हैलोएरीन्स के संरचनात्मक वर्गीकरण और उनके नामकरण के बारे में विस्तार से समझाइए। विभिन्न प्रकार के हैलोएल्केन्स और हैलोएरीन्स के उदाहरण दीजिए।

उत्तर:

हैलोएल्केन्स और हैलोएरीन्स को उनके संरचना के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।

हैलोएल्केन्स (Alkyl Halides):

हैलोएल्केन्स में हैलोजन परमाणु एक अल्काइल समूह से जुड़ा होता है। इन्हें ‘R-X’ से प्रदर्शित किया जाता है, जहाँ ‘R’ अल्काइल समूह और ‘X’ हैलोजन (F, Cl, Br, I) होता है। उदाहरण के लिए, ब्रोमोमेथेन (CH3Br), क्लोरोएथेन (C2H5Cl) आदि। इन्हें प्राथमिक (1°), द्वितीयक (2°) और तृतीयक (3°) श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है, जो कार्बन परमाणु की प्रकृति पर निर्भर करती है जिससे हैलोजन जुड़ा होता है।

इन्हें प्राथमिक (1°), द्वितीयक (2°) और तृतीयक (3°) श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है, जो कार्बन परमाणु की प्रकृति पर निर्भर करती है जिससे हैलोजन जुड़ा होता है।

हैलोएरीन्स (Aryl Halides):

हैलोएरीन्स में हैलोजन परमाणु एरोमेटिक रिंग से जुड़ा होता है। उदाहरण के लिए, क्लोरोबेंज़ीन (C6H5Cl), ब्रोमोबेंज़ीन (C6H5Br) आदि।

ये मुख्य रूप से मोनोहैलो और डाइहैलो श्रेणियों में विभाजित होते हैं, जहाँ एक या दो हैलोजन परमाणु एरोमेटिक रिंग से जुड़े होते हैं।

नामकरण (Nomenclature):

आम नाम:  साधारण नामकरण में, अल्काइल समूह का नाम पहले आता है और उसके बाद हैलोजन का नाम आता है। उदाहरण के लिए, ‘ब्रोमोमेथेन’,’क्लोरोबेंज़ीन’।
IUPAC नाम:  IUPAC प्रणाली में, हैलोएल्केन्स और हैलोएरीन्स का नामकरण हाइड्रोकार्बन के नाम के पहले हैलोजन का स्थान जोड़कर किया जाता है। उदाहरण के लिए, 1-ब्रोमोप्रोपेन (1-Bromopropane)।

प्रश्न 3:हैलोएल्केन्स और हैलोएरीन्स के भौतिक गुणों की चर्चा करें, जिसमें उनके गलनांक, क्वथनांक और घुलनशीलता के बारे में जानकारी हो।

उत्तर:

हैलोएल्केन्स और हैलोएरीन्स के भौतिक गुण उनके आणविक संरचना और हैलोजन परमाणु की प्रकृति पर निर्भर करते हैं।

गलनांक और क्वथनांक (Melting and Boiling Points):

हैलोएल्केन्स और हैलोएरीन्स में ध्रुवीयता और आणविक द्रव्यमान के कारण उनके क्वथनांक और गलनांक संबन्धित हाइड्रोकार्बन से अधिक होते हैं। उदाहरण के लिए, क्लोरोबेंज़ीन (C6H5Cl) का क्वथनांक 131°C है, जबकि बेंज़ीन का 80.1°C होता है।

आइसोमेरिक हैलोएल्केन्स के क्वथनांक और गलनांक में भी विभिन्नता होती है। उदाहरण के लिए, 2-ब्रोमो-2-मेथाइलप्रोपेन के तीन आइसोमर्स में सबसे कम क्वथनांक होता है क्योंकि उसकी संरचना में अधिक शाखाएँ होती हैं।

घुलनशीलता (Solubility):

हैलोएल्केन्स और हैलोएरीन्स की जल में घुलनशीलता कम होती है क्योंकि जल में हाइड्रोजन बांड को तोड़ने के लिए आवश्यक ऊर्जा का संतुलन नई अंतःआणविक आर्कर्षण के गठन से नहीं हो पाता।
ये यौगिक कार्बनिक विलायकों में अच्छी तरह घुलते हैं क्योंकि इनके बीच की अंतःआणविक आर्कर्षण लगभग समान होती है।

प्रश्न 4: SN1 और SN2 अभिक्रियाओं के तंत्र और उनकी प्रभावकारिता पर चर्चा करें। किस प्रकार के हैलोएल्केन्स SN1 और SN2 अभिक्रियाओं में अधिक सक्रिय होते हैं?

उत्तर:

SN1 और SN2 दोनों ही न्यूक्लियोफिलिक प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ हैं, लेकिन उनका अभिक्रिया तंत्र और प्रभावकारिता अलग-अलग होती है।

SN1 अभिक्रिया (Substitution Nucleophilic Unimolecular):

SN1 अभिक्रिया में प्रतिक्रिया दर केवल अल्काइल हैलाइड की सांद्रता पर निर्भर करती है और इसे दो चरणों में पूरा किया जाता है। पहले चरण में कार्बोकैटायन का निर्माण होता है, जो प्रतिक्रिया का सबसे धीमा चरण होता है।
इस प्रकार की अभिक्रिया मुख्यतः तृतीयक (3°) हैलोएल्केन्स में होती है क्योंकि तृतीयक कार्बोकैटायन सबसे स्थिर होता है।
उदाहरण के लिए, tert-ब्यूटाइल ब्रोमाइड के SN1 अभिक्रिया में SN2 की तुलना में तेजी होती है।

SN2 अभिक्रिया (Substitution Nucleophilic Bimolecular):

SN2 अभिक्रिया में न्यूक्लियोफाइल सीधे कार्बन परमाणु पर हमला करता है, जिससे एक संक्रमण अवस्था बनती है जिसमें पाँच बंध होते हैं। यह अभिक्रिया एक ही चरण में संपन्न होती है और प्रतिक्रिया दर दोनों न्यूक्लियोफाइल और सब्सट्रेट की सांद्रता पर निर्भर करती है।
यह अभिक्रिया मुख्यतः प्राथमिक (1°) हैलोएल्केन्स में होती है क्योंकि वहाँ न्यूनतम स्टेरिक अड़चन होती है।
उदाहरण के लिए, मेथिल ब्रोमाइड की SN2 अभिक्रिया तीव्र होती है क्योंकि उसमें हाइड्रोजन अणुओं के कारण न्यूनतम स्टेरिक अड़चन होती है।

प्रश्न 5: हैलोएल्केन्स और हैलोएरीन्स की न्यूक्लियोफिलिक प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में कारक किस प्रकार कार्य करते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।

उत्तर:

हैलोएल्केन्स और हैलोएरीन्स की न्यूक्लियोफिलिक प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में विभिन्न कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:

रेज़ोनेंस प्रभाव (Resonance Effect):

हैलोएरीन्स में हैलोजन परमाणु के इलेक्ट्रॉन पी-ऑर्बिटल्स बेंज़ीन रिंग के पी-ऑर्बिटल्स के साथ ओवरलैप होते हैं, जिससे कार्बन-हैलोजन बंध आंशिक दोहरा बंध बन जाता है। इस कारण, हैलोएरीन्स में न्यूक्लियोफिलिक प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ मुश्किल होती हैं।

हाइब्रिडाइजेशन प्रभाव (Hybridization Effect):

हैलोएल्केन्स में कार्बन-हैलोजन बंध sp3 हाइब्रिडाइज्ड होता है, जबकि हैलोएरीन्स में यह sp2 हाइब्रिडाइज्ड होता है। sp2 हाइब्रिडाइज्ड कार्बन अधिक इलेक्ट्रोनग्राही होता है और बंध को अधिक मज़बूती से पकड़ता है, जिससे प्रतिस्थापन कठिन होता है।

स्टेरिक अवरोध (Steric Hindrance):

SN2 अभिक्रियाओं में न्यूक्लियोफाइल को कार्बन परमाणु के निकट आने के लिए रास्ता चाहिए होता है। अगर कार्बन परमाणु के आस-पास बड़े समूह होते हैं, तो ये न्यूक्लियोफाइल को कार्बन से जुड़ने में अड़चन पैदा करते हैं।

इलेक्ट्रोनिक प्रभाव (Electronic Effects):

अगर कार्बन-हैलोजन बंध में उपस्थित हैलोजन का इलेक्ट्रोन वापस खींचने का प्रभाव अधिक होता है, तो न्यूक्लियोफाइल के लिए प्रतिस्थापन आसान होता है। उदाहरण के लिए, फ्लोरीन का इलेक्ट्रोनग्राही प्रभाव अन्य हैलोजनों से अधिक होता है, जिससे C-F बंध में प्रतिस्थापन कठिन होता है।

प्रश्न:6 एल्काइल हैलाइड्स के प्रतिस्थापन (Substitution) और उन्मूलन (Elimination) अभिक्रियाओं के बीच के अंतर को समझाइए। किन परिस्थितियों में उन्मूलन अभिक्रिया प्रबल होती है?

उत्तर:

एल्काइल हैलाइड्स के साथ प्रतिस्थापन और उन्मूलन अभिक्रियाएँ हो सकती हैं, और ये दोनों अभिक्रियाएँ प्रतिस्पर्धात्मक होती हैं। किस प्रकार की अभिक्रिया होगी, यह विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है।

प्रतिस्थापन अभिक्रिया (Substitution Reaction):

प्रतिस्थापन अभिक्रिया में, एल्काइल हैलाइड्स में हैलोजन परमाणु को न्यूक्लियोफाइल द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, CH3CH2Br के साथ NaOH की अभिक्रिया में CH3CH2OH बनता है, जो एक प्रतिस्थापन अभिक्रिया है।
यह अभिक्रिया SN1 या SN2 तंत्र द्वारा हो सकती है, जो कि सब्सट्रेट की प्रकृति, न्यूक्लियोफाइल की शक्ति, और अभिक्रिया के माध्यम पर निर्भर करती है।

उन्मूलन अभिक्रिया (Elimination Reaction):

उन्मूलन अभिक्रिया में, एक एल्काइल हैलाइड से एक बाई-हाइड्रोजन परमाणु और एक हैलोजन परमाणु को हटा दिया जाता है, जिससे एक अल्कीन बनता है। उदाहरण के लिए, CH3CH2Br के साथ KOH (alcoholic) की अभिक्रिया में CH2=CH2 (एथिलीन) बनता है।
यह अभिक्रिया मुख्य रूप से तब होती है जब अभिक्रिया माध्यम शराबीय होता है और न्यूक्लियोफाइल बड़ा होता है, जो कि बेस के रूप में कार्य करता है। इस प्रकार की अभिक्रिया को E1 या E2 तंत्र द्वारा किया जा सकता है।

उन्मूलन अभिक्रिया की प्राथमिकता (Preference for Elimination Reaction):

न्यूक्लियोफाइल की प्रकृति:  अगर न्यूक्लियोफाइल बड़ा और बल्की होता है, तो वह बेस के रूप में कार्य करता है और हाइड्रोजन को हटाने की प्रवृत्ति रखता है, जिससे उन्मूलन अभिक्रिया होती है। उदाहरण के लिए, tert-ब्यूटॉक्साइड (C4H9O−) एक बड़ा न्यूक्लियोफाइल है और उन्मूलन अभिक्रिया में मदद करता है।

अभिक्रिया माध्यम:  जब KOH का शराबीय विलयन उपयोग में लिया जाता है, तो उन्मूलन अभिक्रिया प्राथमिक होती है। इसके विपरीत, अगर जलयुक्त माध्यम में अभिक्रिया की जाती है, तो प्रतिस्थापन अभिक्रिया प्रमुख होती है।

एल्काइल हैलाइड की प्रकृति: तृतीयक (3°) एल्काइल हैलाइड्स में उन्मूलन अभिक्रिया की संभावना अधिक होती है, क्योंकि तृतीयक कार्बोकैटायन स्थिर होते हैं और उन्हें उन्मूलन के लिए उपयुक्त माना जाता है।

प्रश्न: 7 न्यूक्लियोफिलिक प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में रेसमीकरण (Racemisation) क्या है? इसे SN1 अभिक्रिया के उदाहरण द्वारा समझाइए।

उत्तर:

रेसमीकरण (Racemisation) एक प्रक्रिया है जिसमें एक ऑप्टिकल रूप से सक्रिय यौगिक, जो केवल एक ही एनैंटीओमर के रूप में मौजूद होता है, का एक रेसमिक मिश्रण बन जाता है। रेसमिक मिश्रण में दोनों एनैंटीओमर 50:50 अनुपात में उपस्थित होते हैं, जिसके कारण यौगिक ऑप्टिकल रूप से निष्क्रिय हो जाता है।

SN1 अभिक्रिया में रेसमीकरण:

SN1 अभिक्रिया में, अभिक्रिया तंत्र दो चरणों में होती है। पहले चरण में, एल्काइल हैलाइड से कार्बोकैटायन का निर्माण होता है। यह चरण धीमा होता है और यह अभिक्रिया की दर निर्धारित करता है।
जब कार्बोकैटायन बनता है, तो यह sp2 हाइब्रिडाइजेशन के कारण त्रिज्यामितीय (planar) होता है। न्यूक्लियोफाइल कार्बोकैटायन के दोनों तरफ से आक्रमण कर सकता है, जिससे उत्पाद में दोनों एनैंटीओमर बन सकते हैं।
उदाहरण के लिए, अगर (+)-2-ब्रोमूब्यूटेन SN1 तंत्र द्वारा हाइड्रॉक्साइड आयन के साथ प्रतिक्रिया करता है, तो (±)-ब्यूटेन-2-ऑल का एक रेसमिक मिश्रण बनता है, जिसमें 50% (+) और 50% (-) एनैंटीओमर होते हैं।

रेसमीकरण का प्रभाव:

रेसमीकरण का अर्थ है ऑप्टिकल रूप से सक्रिय यौगिक का ऑप्टिकल निष्क्रिय मिश्रण बनना। इस प्रक्रिया में, चिरल कार्बन का संरचनात्मक विन्यास अपरिवर्तित रहता है, लेकिन ऑप्टिकल गतिविधि समाप्त हो जाती है।

प्रश्न: 8 बहुहैलोजनी यौगिकों (Polyhalogen Compounds) के पर्यावरणीय प्रभावों की चर्चा करें। कुछ प्रमुख बहुहैलोजनी यौगिकों के उदाहरण भी दीजिए।

उत्तर:

बहुहैलोजनी यौगिक (Polyhalogen Compounds) वे यौगिक होते हैं जिनमें एक से अधिक हैलोजन परमाणु होते हैं। ये यौगिक उद्योग और कृषि में उपयोगी होते हैं, लेकिन इनके कई पर्यावरणीय प्रभाव भी होते हैं, जो अत्यधिक चिंताजनक हैं।

(1) पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental Impact):

अविनाशीता (Persistence):

बहुहैलोजनी यौगिक जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) और डाइक्लोरोमिथेन (DCM) पर्यावरण में बहुत लंबे समय तक बने रहते हैं। ये यौगिक आसानी से टूटते नहीं हैं और इसलिए ये वातावरण में एकत्र होते रहते हैं।

ओजोन परत का क्षरण (Ozone Layer Depletion):

क्लोरोफ्लोरोकार्बन जैसे यौगिकों के कारण ओजोन परत को नुकसान होता है। जब ये यौगिक वायुमंडल की उच्च परतों में पहुँचते हैं, तो ये ओजोन अणुओं को तोड़ देते हैं, जिससे पृथ्वी की ओजोन परत क्षीण हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणें (UV Rays) पृथ्वी की सतह तक पहुँचती हैं, जो त्वचा कैंसर और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनती हैं।

जीवों पर प्रभाव:

कई बहुहैलोजनी यौगिक, जैसे DDT, जो पहले कृषि में कीटनाशक के रूप में उपयोग होता था, जल में घुलकर जीवों के शरीर में एकत्र हो जाते हैं। ये यौगिक जैविक संचित (Bioaccumulate) होकर खाद्य श्रृंखला के माध्यम से उच्च जीवों तक पहुँचते हैं, जिससे इन जीवों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

(2)प्रमुख बहुहैलोजनी यौगिकों के उदाहरण:

डाइक्लोरोमिथेन (Dichloromethane):

इसे मिथाइलीन क्लोराइड के नाम से भी जाना जाता है। इसका उपयोग सॉल्वेंट, पेंट रिमूवर, और धातु सफाई के लिए किया जाता है। लेकिन इसका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

क्लोरोफॉर्म (Chloroform):

इसे पहले एनेस्थेटिक के रूप में उपयोग किया जाता था, लेकिन इसके विषैले प्रभावों के कारण अब इसका उपयोग नहीं किया जाता। इसके लगातार उपयोग से लीवर और किडनी को नुकसान हो सकता है।

कार्बन टेट्राक्लोराइड (Carbon Tetrachloride):

इसका उपयोग पहले क्लीनिंग फ्लुइड और अग्निशामक यंत्रों में किया जाता था, लेकिन अब इसके हानिकारक प्रभावों के कारण इसका उपयोग कम हो गया है। यह ओजोन परत को नुकसान पहुँचाने वाला यौगिक है।

फ्रेयॉन (Freons):

ये यौगिक रेफ्रिजरेटर और एअर कंडीशनिंग सिस्टम में उपयोग किए जाते हैं। ये ओजोन परत को क्षीण करने के लिए कुख्यात हैं।

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