प्रारंभिक अवलोकन
- घोंघे का खोल: अवधि और आयुष का घोंघे के खोल से जुड़ा अनुभव, जहां उन्होंने सीखा कि खोल एक जीवित घोंघे का हिस्सा होता है।
- सजीव और निर्जीव की पहचान: इस अनुभव ने अवधि और आयुष को सजीव और निर्जीव वस्तुओं के बारे में सोचने पर मजबूर किया, जिससे उनकी जिज्ञासा बढ़ी।
सजीव और निर्जीव की परिभाषा
- सजीव वस्तुएं: वे वस्तुएं जो शारीरिक रूप से सक्रिय होती हैं और उनमें वृद्धि, श्वसन, पोषण, उत्सर्जन, और जनन जैसी गतिविधियाँ होती हैं।
- निर्जीव वस्तुएं: वे वस्तुएं जिनमें शारीरिक क्रियाएँ नहीं होती हैं और जो सजीव की विशेषताओं का अभाव रखती हैं।
सजीवों की विशेषताएं
- गति (Movement): सभी सजीव वस्तुएं किसी न किसी प्रकार से गति करती हैं, जबकि निर्जीव वस्तुओं में यह विशेषता नहीं होती।
- वृद्धि (Growth): सजीवों में समय के साथ आकार और संरचना में वृद्धि होती है, जैसे मानव शरीर का विकास।
- श्वसन (Respiration): सभी सजीव श्वसन करते हैं, जिसमें वे वायु को अपने अंदर खींचते हैं और बाहर निकालते हैं। पौधे भी श्वसन करते हैं।
- पोषण (Nutrition): सजीवों को वृद्धि और विकास के लिए भोजन की आवश्यकता होती है।
- उत्सर्जन (Excretion): सजीव वस्तुएं अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन करती हैं।
- उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया (Response to Stimuli): सजीव वस्तुएं उद्दीपन के प्रति प्रतिक्रिया करती हैं, जैसे छुई-मुई का छूने पर पत्तियों का बंद हो जाना।
- जनन (Reproduction): सजीव अपनी तरह के नवजातों को जन्म देते हैं, जिससे जीवन की निरंतरता बनी रहती है।
- मृत्यु (Death): सजीव वस्तुओं की मृत्यु होती है, जबकि निर्जीव वस्तुओं का कोई जीवन चक्र नहीं होता।
गतिविधियाँ और अभ्यास
- क्रियाकलाप 10.1: कक्षा में मौजूद वस्तुओं को सजीव और निर्जीव के रूप में वर्गीकृत करना और उन्हें तालिका 10.1 में सूचीबद्ध करना।
- विशेषताएं पहचानना: सजीव और निर्जीव वस्तुओं के बीच की विशेषताओं को पहचानना और उनके आधार पर वर्गीकरण करना।
पौधों में गति और प्रतिक्रियाएँ
- पौधों की गति: पौधे भी कुछ हद तक गति प्रदर्शित करते हैं, जैसे कीटभक्षी पौधों में कीटों को पकड़ने की क्रिया।
- उद्दीपन पर प्रतिक्रिया: पौधे भी उद्दीपन के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं, जैसे छुई-मुई की पत्तियाँ छूने पर बंद हो जाती हैं।
बीज के अंकुरण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ
- बीज का अंकुरण: बीज के अंकुरण के लिए किन परिस्थितियों की आवश्यकता होती है और विभिन्न स्थितियों में अंकुरण कैसे होता है, यह समझने के लिए प्रयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाया गया।
क्रियाकलाप 10.2: प्रयोग और अवलोकन
गमले की तैयारी: चार गमलों में विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार बीज बोए गए:
- गमला (क): मिट्टी में जल नहीं डाला गया और इसे सीधा सूर्य के प्रकाश में रखा गया।
- गमला (ख): मिट्टी में अत्यधिक जल डाला गया और इसे सीधा सूर्य के प्रकाश में रखा गया।
- गमला (ग): मिट्टी में हल्की नमी बनाए रखी गई और इसे पूर्ण अंधकार में रखा गया।
- गमला (घ): मिट्टी में हल्की नमी बनाए रखी गई और इसे सीधा सूर्य के प्रकाश में रखा गया।
तालिका 10.2: विभिन्न परिस्थितियों में बीजों के अंकुरण का अवलोकन और संभावित कारणों की तालिका बनाई गई।
अंकुरण के लिए आवश्यक तत्व
- जल: बीजों को अंकुरण के लिए जल की आवश्यकता होती है। जल बीज के बाहरी आवरण (बीजावरण) को मुलायम करता है, जिससे अंकुरण की प्रक्रिया शुरू होती है।
- वायु: बीजों को अंकुरण के लिए वायु की आवश्यकता होती है। मिट्टी के कणों के बीच वायु उपलब्ध होती है, जिससे बीज अंकुरित हो सकते हैं।
- प्रकाश एवं अंधकार: बीजों के अंकुरण के लिए प्रकाश अनिवार्य नहीं है, लेकिन अंकुरण के बाद नवोदित पौधों की वृद्धि के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है।
अंकुरण के अवलोकन के निष्कर्ष
- अवलोकन: गमलों में 7–10 दिनों तक बीजों की अंकुरण स्थिति का नियमित अवलोकन किया गया।
- समीक्षा: अंकुरण के लिए अनुकूल परिस्थितियों का पता चला। जल, वायु, और मिट्टी की उपयुक्तता बीजों के अंकुरण को प्रभावित करती है।
विशेष बीजों के लिए आवश्यकताएँ
- विशिष्ट पौधे: कॉलियस और पिटूनिया जैसे पौधों के बीजों को अंकुरण के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है, जबकि कैलेंडुला और जीनिया जैसे पौधों को अंधकार की आवश्यकता होती है।
बीज के अंकुरण के प्रभाव
- प्रभाव: अंकुरण के लिए जल, वायु, और प्रकाश जैसी आवश्यकताएँ महत्वपूर्ण हैं। इन आवश्यकताओं के अभाव में अंकुरण प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।
पौधों की अन्य विशेषताएँ
- वृद्धि एवं गति: पौधों में अंकुरण के बाद वृद्धि और गति की अन्य विशेषताएँ भी दिखाई देती हैं, जो सजीवों की विशेषताओं में शामिल हैं।
पौधों में वृद्धि और गति
- प्रतिक्रिया का अध्ययन: पौधे सूर्य के प्रकाश के प्रति किस प्रकार प्रतिक्रिया करते हैं, और कैसे सूर्य का प्रकाश पौधों के विभिन्न भागों की वृद्धि की दिशा को प्रभावित करता है, यह जानने के लिए एक प्रयोगात्मक योजना बनाई गई है।
क्रियाकलाप 10.3: प्रयोग और योजना
- बीजों का अंकुरण: कुछ फली अथवा चने के बीजों को नम कपड़े या टिशु पेपर में अंकुरित किया गया और उन्हें नवोद्भिद (छोटे पौधे) बनने तक विकसित किया गया।
प्लेट और बीकर की तैयारी:
- बीकर ‘क’: नवोद्भिद को सीधा रखा गया।
- बीकर ‘ख’: नवोद्भिद को उल्टा रखा गया, जिसमें प्ररोह नीचे की ओर और जड़ ऊपर की ओर थी।
- बीकर ‘ग’: नवोद्भिद को एक दिशा से ही सूर्य का प्रकाश मिलने दिया गया।
जल और नमी: सभी बीकर में ब्लॉटिंग पेपर को गीला रखा गया ताकि नवोद्भिद को आवश्यक नमी मिल सके।
पौधों की वृद्धि और दिशा
तालिका 10.3: विभिन्न परिस्थितियों में जड़ और प्ररोह की वृद्धि की दिशा का अवलोकन और पूर्वानुमान की तुलना की गई।
- बीकर ‘क’: सभी दिशाओं से प्रकाश में रखा गया, प्ररोह ऊपर की ओर और जड़ नीचे की ओर बढ़ी।
- बीकर ‘ख’: सभी दिशाओं से प्रकाश में उल्टा रखा गया, प्ररोह नीचे की ओर और जड़ ऊपर की ओर बढ़ी।
- बीकर ‘ग’: एक दिशा से प्रकाश में रखा गया, प्ररोह प्रकाश की दिशा में और जड़ नीचे की ओर बढ़ी।
प्रयोग के परिणाम और निष्कर्ष
अवलोकन:
- सीधा पौधा (बीकर ‘क’): जड़ नीचे की ओर और प्ररोह ऊपर की दिशा में बढ़ता है।
- उल्टा पौधा (बीकर ‘ख’): जड़ मड़कर नीचे की ओर और प्ररोह मड़कर ऊपर की ओर बढ़ता है।
- एक दिशा से प्रकाश (बीकर ‘ग’): प्ररोह प्रकाश की दिशा में और जड़ नीचे की ओर बढ़ता है।
पौधे का जीवन-चक्र
- परिचय: अंकुरण से लेकर पौधे के जीवन-चक्र तक के सभी चरणों को समझने के लिए एक प्रयोगात्मक गतिविधि की योजना बनाई गई है। इसमें पौधे के संपूर्ण जीवन में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाएगा।
क्रियाकलाप 10.4: पौधे के जीवन-चक्र का अवलोकन
- बीज बोना: एक फली का बीज बोकर उसकी वृद्धि के लिए उपयुक्त स्थितियाँ उपलब्ध कराई गईं।
- नियमित अवलोकन: लगभग तीन महीने तक पौधे की वृद्धि और उसमें होने वाले परिवर्तनों का नियमित अवलोकन किया गया।
- तालिका 10.4: प्रत्येक परिवर्तन का दिनांक के साथ तालिका में अंकित किया गया, जिसमें निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए:
- किसी परिवर्तन के होने में कितना समय लगा?
- कितने दिनों के बाद पहला फूल दिखाई दिया?
- फूल के सखने के बाद क्या कोई और वृद्धि दिखाई दी?
- फूल से किस प्रकार की संरचना विकसित हुई?
- क्या बीजयुक्त फली या फल विकसित हुआ?
- फलों के बनने के बाद पौधे का क्या हुआ?
पौधे के जीवन-चक्र के चरण
- अवलोकन: तालिका 10.4 में पौधे की वृद्धि के दौरान देखे गए विभिन्न चरणों का अवलोकन किया गया। इसमें बीज बोने से लेकर पौधे की मृत्यु तक के सभी चरण शामिल हैं।
- जीवन-चक्र: पौधे के जीवन-चक्र को पाँच अवस्थाओं में विभाजित किया गया:
- अवस्था 1: बीज
- अवस्था 2: बीज का अंकुरण
- अवस्था 3: पत्तियों का प्रकटन
- अवस्था 4: फूलों का प्रकटन
- अवस्था 5: फलों का प्रकटन (बीज सहित फली)
- अंतिम अवस्था: बीज के बनने के बाद, पौधा धीरे-धीरे पीला होकर सूख जाता है और अंततः मर जाता है।
पौधे की पीढ़ी को आगे बढ़ाना
- बीज से अगली पीढ़ी: पौधे से प्राप्त बीजों को उगाने पर नई पीढ़ी का पौधा उगता है, जो जीवन-चक्र की प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है।
जीवन-चक्र का निष्कर्ष
- परिणाम: बीज से पौधा और फिर बीजों की अगली पीढ़ी तक की प्रक्रिया को पौधे का जीवन-चक्र कहा जाता है। जब पौधा सभी अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद बढ़ना बंद कर देता है और उसमें जीवन की गतिविधियाँ समाप्त हो जाती हैं, तो उसे मृत मान लिया जाता है।
जंतुओं का जीवन-चक्र
- परिचय: पौधों के जीवन-चक्र की तरह जंतुओं के जीवन-चक्र में भी कई महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। यह अध्ययन मच्छरों के जीवन-चक्र पर केंद्रित है, जिसमें उनके जीवन के विभिन्न चरणों का अवलोकन किया गया है।
मच्छर का जीवन-चक्र (10.5.1)
- मच्छर का परिचय: मच्छर एक सामान्य कीट है, जो मलेरिया, डेंगू, और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों के लिए जिम्मेदार हो सकता है। मादा मच्छर खून चूसने वाले कीट होते हैं।
- प्रजनन और रोकथाम: मच्छरों के प्रजनन को रोकने के लिए यह सलाह दी जाती है कि आस-पास स्थिर जल जमा न होने दिया जाए क्योंकि मच्छर स्थिर जल में अंडे देते हैं।
मच्छर के जीवन-चक्र की अवस्थाएँ
- अवलोकन: मच्छर के जीवन-चक्र के चार मुख्य चरण होते हैं:
- अवस्था I: अंडा – मादा मच्छर जल में या जल के समीप अंडे देती है।
- अवस्था II: लार्वा – अंडे से निकलकर लार्वा बनता है, जो जल में रहता है और सांस लेने के लिए सतह पर आता है।
- अवस्था III: प्यूपा (Pupa) – लार्वा प्यूपा में बदल जाता है, जो मच्छर बनने से पहले का चरण है।
- अवस्था IV: वयस्क मच्छर – प्यूपा से वयस्क मच्छर निकलता है, जो जल की सतह पर थोड़ा विश्राम करता है और फिर उड़ जाता है।
मच्छरों की प्रजनन प्रक्रिया और निरीक्षण
- स्थिर जल में लार्वा और प्यूपा: स्थिर जल में लार्वा और प्यूपा की उपस्थिति का निरीक्षण किया गया। लार्वा और प्यूपा जल की सतह पर श्वसन के लिए आते हैं।
- प्रयोग: लार्वा और प्यूपा के विकास क्रम का अवलोकन करने के लिए एक प्रयोगात्मक योजना बनाई गई:
- चरण 1: जल से भरे पात्र में लार्वा और प्यूपा को अलग-अलग रखा गया।
- चरण 2: प्रतिदिन उनका अवलोकन किया गया।
- चरण 3: यह देखा गया कि लार्वा पहले प्यूपा में बदलता है, और फिर वयस्क मच्छर में परिवर्तित होता है।
जीवन-चक्र का सारांश
- परिणाम: मच्छर अपने जीवन-चक्र में अंडे से शुरू होकर लार्वा, प्यूपा, और फिर वयस्क मच्छर में परिवर्तित होता है। इस जीवन-चक्र के दौरान उसकी बाह्य आकृति और शरीर की संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं।
- रोकथाम: मच्छरों के जीवन-चक्र को भंग करने के लिए स्थिर जल में मिट्टी का तेल छिड़कने की सलाह दी जाती है, जिससे लार्वा और प्यूपा श्वसन नहीं कर पाते और मर जाते हैं।
मेंढक का जीवन-चक्र
- परिचय: मेंढक के जीवन-चक्र के अध्ययन से हम समझ सकते हैं कि कैसे एक मेंढक अंडे से विकसित होकर वयस्क मेंढक बनता है। इस प्रक्रिया में मेंढक कई अवस्थाओं से गुजरता है।
क्रियाकलाप 10.6: मेंढक के जीवन-चक्र का विश्लेषण
- अवलोकन: अवधि और आयुष के साथ अन्य विद्यार्थियों ने बारिश के मौसम में तालाब के किनारे जाकर मेंढक के जीवन-चक्र का अवलोकन किया।
- अंडे का अवलोकन: उन्होंने तालाब में सफेद जेली जैसे पदार्थ का अवलोकन किया, जो मेंढक के अंडों का समूह था जिसे जलांडक कहा जाता है।
मेंढक के जीवन-चक्र की अवस्थाएँ
अवस्था I: अंडा (जलांडक)
- दिन 1 में, मेंढक के अंडे पानी में या उसके आसपास के पौधों पर पाए जाते हैं।
अवस्था II: टैडपोल (प्यूपा के साथ)
- दिन 3-4 में, अंडे से भृण विकसित होता है।
- दिन 7-10 में, टैडपोल की पूंछ विकसित हो जाती है और यह पानी में तैरने लगता है।
- 8-10 सप्ताह में, टैडपोल के पिछले पैर विकसित होते हैं।
अवस्था III: मंडूकक (फ्रॉगलेट)
- 12 सप्ताह में, टैडपोल धीरे-धीरे छोटे मेंढक की तरह दिखने लगता है। उसकी पूंछ लुप्त हो जाती है, और वह जल और थल दोनों में रहना शुरू कर देता है।
अवस्था IV: वयस्क मेंढक
- 14 सप्ताह में, टैडपोल पूरी तरह विकसित होकर वयस्क मेंढक बन जाता है। वह जल और थल दोनों में निवास करता है।
जीवन-चक्र के दौरान परिवर्तन
विशेषताएँ और आवास:
- टैडपोल के चरण में, वह जल में तैरता है और उसकी पूंछ उसे मदद करती है।
- मंडूकक चरण में, वह जल और थल दोनों में रहने लगता है, और उसकी पूंछ पूरी तरह से गायब हो जाती है।
- वयस्क मेंढक में, पैर मजबूत होते हैं, जिससे वह कूदकर स्थल पर आ सकता है।
परिवर्तन: मेंढक के जीवन-चक्र में प्रत्येक अवस्था में उसका आकार, शरीर की संरचना, और आवास बदलते हैं। यह परिवर्तन उसकी जीवित रहने और प्रजाति की निरंतरता बनाए रखने में सहायता करते हैं।
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