प्रकृति की अमूल्य सम्पदा
क्रियाकलाप 11.1: श्वास का अनुभव करें
श्वास प्रक्रिया:
- एक गहरी श्वास लें और उसे धीरे-धीरे छोड़ें।
- फिर एक और अधिक गहरी श्वास लें।
- जितना संभव हो सके, श्वास को रोक कर रखें और फिर धीरे-धीरे छोड़ें।
- यह देखें कि आप कितनी देर तक श्वास रोक सकते हैं।
- श्वास रोकने के दौरान कैसा महसूस होता है, इस पर ध्यान दें।
प्रभाव और निष्कर्ष:
- श्वास को लंबे समय तक रोकना कठिन होता है।
- श्वास के माध्यम से ली गई वायु में ऑक्सीजन होती है, जो हमारे शरीर को कार्य करने के लिए आवश्यक है।
- श्वास को लंबे समय तक रोकने से शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिससे असहजता होती है।
- जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, न केवल मनुष्यों के लिए बल्कि अन्य जीवों के लिए भी।
वायु की उपस्थिति और उसका अनुभव
वायु की अनुभूति:
- पेड़ों पर पत्तियों की सरसराहट, रस्सी पर लटके कपड़ों का हिलना, पंखे का चलना, या खुली पुस्तक के पन्नों की फड़फड़ाहट वायु की उपस्थिति को दर्शाते हैं।
चलती हुई वायु:
- चलती हुई वायु को पवन कहते हैं।
- पवन की गति कभी तेज होती है, जैसे आँधी के समय, और कभी धीमी होती है, जैसे बयार (मंद पवन)।
क्रियाकलाप 11.2: फिरकी बनाना और सजाना
फिरकी बनाने की सामग्री:
- 15 cm × 15 cm का एक वर्गाकार कागज, एक कैंची, एक ऑलपिन, और एक मुलायम डंडी की आवश्यकता होती है।
निर्देश:
- चित्र 11.2 के अनुसार फिरकी बनाइए।
प्रयोग और निष्कर्ष:
- फिरकी को हाथ में पकड़कर दौड़िए या फूंक मार कर चलाइए।
- देखिए कि फिरकी कैसे घूमती है।
- फिरकी को पवन (हवा) घूमाती है।
पवनचक्की और फिरकी की कार्यप्रणाली:
- पवनचक्की भी पवन की ऊर्जा का उपयोग करती है, जैसे कि फिरकी।
- पवनचक्की आटे की चक्की, पानी खींचने, और विद्युत उत्पादन के लिए उपयोग होती है।
- भारत में कई पवनचक्की फार्म हैं, जैसे तमिलनाडु का मुप्पंडल, राजस्थान का जैसलमेर पार्क, और महाराष्ट्र का ब्रह्मवेल फार्म।
जल का महत्व
जल का उपयोग:
- भुमि और सूर्य अपनी अज्जी को गायों के लिए पानी भरने, बगीचे में पौधों को पानी देने में सहायता करते हैं।
- अज्जी उन्हें सिखाती हैं कि पानी का विवेकपूर्ण उपयोग कैसे किया जाए ताकि एक भी बूंद व्यर्थ न जाए।
दैनिक जीवन में जल का उपयोग:
- जल का उपयोग पीने, खाना बनाने, नहाने, कपड़े धोने, सफाई, फसलें उगाने और औद्योगिक कार्यों के लिए होता है।
जल के स्रोत:
- पृथ्वी की सतह का दो-तिहाई भाग जल से घिरा है, जिसमें अधिकांश जल महासागरों और समुद्रों में है, जो नमकीन होता है।
- घरेलू, कृषि, और औद्योगिक कार्यों के लिए हमें मीठे (अलवणीय) जल की आवश्यकता होती है।
- मीठा जल हिम, नदियों, झीलों, और भूजल के रूप में पाया जाता है।
जल की बचत के उपाय:
- जल अमूल्य है, इसलिए इसका विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए।
- विभिन्न गतिविधियों में जल के व्यर्थ होने को रोकने के उपायों पर विचार करें।
जल बचाने के उपाय (स्तंभ आधारित विश्लेषण)
गतिविधियों का विश्लेषण:
- हाथ धोना, कपड़े धोना, बर्तन धोना, नहाना, खाना पकाना, बागवानी, दाँत साफ करना आदि।
जल के व्यर्थ होने के कारण:
- विभिन्न गतिविधियों में जल का व्यर्थ उपयोग होता है, जिसे सही तकनीकों का उपयोग करके रोका जा सकता है।
जल बचाने के उपाय:
- उचित विधियों और तकनीकों का पालन करके जल की बर्बादी को रोका जा सकता है, जैसे कि नहाते समय बाल्टी का उपयोग, कपड़े धोते समय उचित मात्रा में पानी का उपयोग आदि।
क्रियाकलाप 11.3: जल की व्यर्थता और संरक्षण
तालिका 11.1: दैनिक गतिविधियों में जल की व्यर्थता
- स्तंभ I (गतिविधि): हाथ धोना, कपड़े धोना, बर्तन धोना, नहाना, खाना पकाना, बागवानी, दाँत साफ करना।
- स्तंभ II (जल किस प्रकार व्यर्थ हो रहा है): विभिन्न गतिविधियों में जल का अनावश्यक उपयोग और बर्बादी।
- स्तंभ III (जल व्यर्थ होने से रोकने के लिए सुझाए गए उपाय): नल को बंद रखना, जल के रिसाव को ठीक करना, जल का पुनःचक्रण, जल संग्रहण।
निष्कर्ष:
- जल के अपव्यय को रोकने के लिए हमें नल बंद रखने, जल के रिसाव को ठीक कराने, और जल का पुनःचक्रण व संग्रहण करने जैसे उपायों का पालन करना चाहिए।
- जल संरक्षण के उपायों में वर्षा जल संकलन और पारंपरिक जल संरक्षण तकनीकों का उपयोग महत्वपूर्ण है।
जल प्रदूषण और इसके निवारण
जल स्रोतों का प्रदूषण:
- प्लास्टिक, थैली, और रैपर जैसे कचरे से जल स्रोत प्रदूषित हो जाते हैं।
- घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल में मिलकर इसे प्रदूषित करते हैं, जिससे यह सजीवों के उपभोग के लिए अनुपयुक्त हो जाता है।
जल प्रदूषण रोकने के उपाय:
- जल प्रदूषण को कम करने के लिए अपशिष्ट प्रबंधन, जल स्रोतों की सफाई, और जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।
- कक्षा में इस पर चर्चा करें और अपने दोस्तों के साथ समाधान खोजें।
जल संरक्षण की विधियाँ
वर्षा जल संकलन:
- जल संरक्षण के लिए वर्षा जल संकलन एक प्रभावी विधि है।
- वर्षा जल को भवनों में संग्रहित करके बाद में उपयोग किया जाता है।
- राजस्थान और गुजरात में बावड़ी और वाव जैसे पारंपरिक जल संग्रहण के साधन उपयोग किए जाते हैं, जिनमें पानी का रिसाव और संग्रहण होता है।
अन्य जल संरक्षण उपाय:
- नल बंद रखना, रिसाव को ठीक करना, और जल का पुनःचक्रण करना महत्वपूर्ण है।
- पारंपरिक जल संरक्षण पद्धतियों को अपनाकर जल की बर्बादी को रोका जा सकता है।
जल की विविध अवस्थाओं और सूर्य की ऊर्जा का महत्व
जल चक्र:
- सूर्य जल के वाष्पीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- जल चक्र के अंतर्गत पानी की विभिन्न अवस्थाएँ और उनके संचलन का अध्ययन किया जाता है।
सूर्य की ऊर्जा का उपयोग:
- सूर्य की ऊर्जा का उपयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जा सकता है, जैसे आमों को सुखाना।
- इस ऊर्जा का उपयोग जल को वाष्पित करने और अन्य कार्यों में होता है।
सूर्य से ऊर्जा का महत्व
सूर्य ऊर्जा का मुख्य स्रोत:
- भुमि और सूर्य अज्जी को मिर्च सुखाने में मदद करते हैं, जिसमें सूर्य की गरमी का उपयोग होता है।
- सूर्य पृथ्वी पर ऊर्जा का मुख्य स्रोत है, जिस पर सभी पौधे और जीव निर्भर होते हैं।
सूर्य की ऊर्जा के उपयोग:
- सूर्य की ऊष्मा और प्रकाश का उपयोग विभिन्न कार्यों में होता है, जैसे मिर्च सुखाना, खाना पकाना, जल को गर्म करना, और सौर पैनलों से विद्युत उत्पादन।
- सौर पैनलों और सौर कुकर का उपयोग सूर्य से प्राप्त ऊर्जा का बेहतर तरीके से उपयोग करने के लिए किया जाता है।
सूर्य से ऊर्जा प्राप्ति का महत्व:
- सूर्य का प्रकाश पौधों को भोजन बनाने में सहायता करता है।
- गाय जैसे जीव घास खाकर ऊर्जा प्राप्त करते हैं, लेकिन घास के बढ़ने के लिए सूर्य की आवश्यकता होती है, इसलिए ऊर्जा का स्रोत सूर्य ही है।
सूर्य के बिना जीवन की कल्पना
सूर्य का महत्व:
- सूर्य के बिना पृथ्वी पर जीवन असंभव है। सूर्य सभी जीवित प्राणियों को ऊष्मा और प्रकाश प्रदान करता है।
- पौधे सूर्य की ऊर्जा से भोजन बनाते हैं, और इस ऊर्जा का उपयोग विभिन्न जीवों द्वारा किया जाता है।
क्या होगा यदि सूर्य कुछ दिनों तक दिखाई न दे:
- दिन के समय भी कृत्रिम प्रकाश पर निर्भर रहना पड़ेगा।
- जीवन की गतिविधियाँ बाधित होंगी और जीवित रहना कठिन हो जाएगा।
वन और उनका महत्व
वनों का संरक्षण और महत्व:
- वन विभिन्न प्रकार के पौधों, झाड़ियों और वृक्षों की सघन वृद्धि वाले बड़े क्षेत्र होते हैं।
- वनों का संरक्षण भारतीय परंपरा का हिस्सा रहा है, जैसे चिपको आंदोलन, जिसमें पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए स्थानीय महिलाओं ने पेड़ों को घेर लिया और उनसे लिपट गईं।
वनों का योगदान:
- वन पक्षियों, कीटों और जंगली जानवरों के लिए प्राकृतिक आवास प्रदान करते हैं, जो उन्हें भोजन और आश्रय देते हैं।
- पेड़ों की जड़ें मिट्टी को पकड़कर रखती हैं और उसे बहने से रोकती हैं। गिरने वाली पत्तियाँ सड़कर मिट्टी को पोषक तत्वों से समृद्ध करती हैं।
वन महोत्सव:
- हर साल जुलाई में वन महोत्सव मनाया जाता है, जिसमें नए पौधे और पेड़ लगाए जाते हैं और वनों का सम्मान करने के लिए जागरूकता पैदा की जाती है।
मिट्टी का पुनर्चक्रण और संरक्षण
मिट्टी का पुनर्चक्रण:
- पेड़ों से गिरने वाली पत्तियाँ सड़कर मिट्टी को पोषक तत्वों से समृद्ध करती हैं, जिसे नए पौधों और पेड़ों को उगाने के लिए उपयोग किया जाता है।
यह प्रकृति में पुनर्चक्रण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
मिट्टी का संरक्षण:
- पौधों की जड़ें मिट्टी को पकड़कर रखती हैं और उसे बहने से रोकती हैं, जिससे मिट्टी का संरक्षण होता है।
मृदा का निर्माण और महत्व
मृदा की तैयारी:
- भुमि, सूर्य, और अज्जी बगीचे में सागों के पौधे लगाने के लिए मृदा तैयार करते हैं। मृदा को खोदकर ढीला किया जाता है ताकि पौधों की जड़ें आसानी से बढ़ सकें।
- मृदा में कंकड़, जड़ें, और केंचुए पाए जाते हैं, जो मृदा को उलटने-पलटने और ढीला करने में सहायता करते हैं।
मृदा का अवलोकन और विश्लेषण:
- विभिन्न स्थानों से मृदा के नमूने एकत्रित करके उनके रंग, बनावट, और संरचना का अवलोकन किया जाता है।
- मृदा के नमूनों का नग्न आँखों और आवर्धक लेन्स से अवलोकन करके उनके बारे में अनुमान लगाया जाता है।
चट्टानों और खनिजों का महत्व
चट्टानों का उपयोग:
- चट्टानों का उपयोग घर, भवन, मंदिर, सड़क, बाँध, और अन्य निर्माण कार्यों में किया जाता है।
- स्लेट, लेटराइट, ग्रेनाइट, बलुआ पत्थर, और संगमरमर जैसी चट्टानों का विशेष उपयोग होता है।
- प्राचीन काल से मानव ने चट्टानों का उपयोग उपकरण बनाने के लिए किया है, जैसे हस्त कुल्हाड़ी और तीर शीर्ष।
खनिजों का महत्व:
- खनिज चट्टानों से प्राप्त होते हैं, और ये ऐलुमिनियम, सोना, तांबा, और लोहे जैसी धातुओं का स्रोत होते हैं।
- खनिजों का उपयोग वाययान, कार, आभूषण, प्रसाधन, विद्युत, और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में किया जाता है।
- सामान्य मोबाइल फोन के निर्माण में लगभग एक दर्जन खनिजों का उपयोग होता है, जैसे सोना, चाँदी, ताँबा, कोबाल्ट आदि।
चट्टानों और खनिजों का संरक्षण:
- चट्टानों और खनिजों का पुनर्निर्माण हजारों से लाखों वर्षों में होता है, इसलिए उनका संरक्षण और उपयोग दायित्वपूर्वक किया जाना आवश्यक है।
- चट्टानों और खनिजों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग होता है।
जीवाश्म ईंधन का महत्व और प्रकार
ईंधन के प्रकार:
- वाहन विभिन्न प्रकार के ईंधन का उपयोग करते हैं, जैसे पेट्रोल, डीजल, और सीएनजी (संपीडित प्राकृतिक गैस)।
- पेट्रोल, डीजल, और मिट्टी का तेल पेट्रोलियम से प्राप्त होते हैं, जिन्हें जीवाश्म ईंधन कहा जाता है।
जीवाश्म ईंधन का निर्माण:
- जीवाश्म ईंधन पृथ्वी के भीतर सजीवों और पौधों के दब जाने से लाखों वर्षों में बनते हैं।
- इनमें पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, और कोयला शामिल हैं।
जीवाश्म ईंधन का उपयोग:
- प्राकृतिक गैस का उपयोग खाना बनाने और विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है।
- कोयले का उपयोग मुख्य रूप से विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है।
- सीएनजी वाहनों में पेट्रोल और डीजल की तुलना में अधिक स्वच्छ ईंधन है।
जीवाश्म ईंधन का संरक्षण और पर्यावरणीय प्रभाव
जीवाश्म ईंधन की सीमित उपलब्धता:
- जीवाश्म ईंधन सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं, और इनका अत्यधिक उपयोग इन्हें समाप्त कर सकता है।
- इन्हें बनने में लाखों वर्ष लगते हैं, इसलिए इनका दायित्वपूर्ण उपयोग आवश्यक है।
पर्यावरणीय प्रभाव:
- जीवाश्म ईंधन के जलने पर धुआं और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें उत्पन्न होती हैं, जो वायु को प्रदूषित करती हैं।
- वायु प्रदूषण को कम करने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की खोज और उपयोग आवश्यक है।
प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग:
- प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए ताकि भविष्य में भी इनका उपयोग हो सके।
- पैदल चलने, साइकिल का उपयोग करने, और सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करने जैसे उपायों से जीवाश्म ईंधन का संरक्षण किया जा सकता है।
नवीकरणीय और अनवीकरणीय संसाधन
नवीकरणीय संसाधन:
- नवीकरणीय संसाधन वे हैं जो उचित समयावधि में पुनः उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे वायु, जल, और वन।
- इन संसाधनों का सही उपयोग करना आवश्यक है ताकि ये भविष्य में भी उपलब्ध रहें।
अनवीकरणीय संसाधन:
- अनवीकरणीय संसाधन वे हैं जो लाखों वर्षों में बनते हैं और एक बार उपयोग होने पर पुनः उत्पन्न नहीं होते, जैसे खनिज, मृदा, चट्टानें, कोयला, पेट्रोलियम, और प्राकृतिक गैसें।
- इन संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक है।
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और जिम्मेदार उपयोग
दैनिक जीवन में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग:
- दैनिक जीवन की गतिविधियों में जल, वायु, मृदा, पौधे, और जीव-जंतुओं से प्राप्त संसाधनों का उपयोग होता है।
- इन संसाधनों का संरक्षण और अपव्यय से बचना महत्वपूर्ण है।
पर्यावरण की सुरक्षा:
- हमें पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना अपनी आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए, जिससे भविष्य के लिए भी ये संसाधन सुरक्षित रहें।
- महात्मा गांधी के अनुसार, “पृथ्वी प्रत्येक मनुष्य की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है, लेकिन प्रत्येक मनुष्य के लालच को पूरा करने के लिए नहीं।”
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