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विज्ञान Notes Science Class 6 Chapter 5 Jigyasa

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लम्बाई एवं गति का मापन

दीपा की जिज्ञासा और मापन की समझ

  • प्रारंभिक संदर्भ: दीपा, एक 11 वर्षीय बालिका, हरियाणा के एक नगर में रहती है। विद्यालय का नया सत्र आरंभ हो चुका है, और दीपा को नई वर्दी की आवश्यकता है क्योंकि उसका कद बढ़ गया है।
  • मापन का प्रारंभिक अनुभव: दीपा की माँ उसे कपड़े की दुकान पर ले जाती हैं, जहां दुकानदार एक धातु की मापक छड़ से कपड़े को मापता है। बाद में दर्जी लचीले मापन-फीते से दीपा की वर्दी का माप लेता है।

शरीर के अंगों से मापन

  • शरीर के अंगों का उपयोग: दीपा अपने अनुभव को अपने मित्रों अनीश, हरदीप, पदमा, और तस्नीम के साथ साझा करती है, जिससे उनके बीच मापन के तरीकों पर चर्चा आरंभ हो जाती है। हरदीप अपनी दादी माँ द्वारा हाथ की लंबाई से कपड़ा मापने का जिक्र करता है, और पदमा किसानों के खेत मापने के तरीके को बताती है।
  • बालिश्त का उपयोग: दीपा अपने हाथ के पंजे की चौड़ाई (बालिश्त) का उपयोग करके मेज की लंबाई मापने का सुझाव देती है, जिसे सभी दोस्त अपनाते हैं।

मापन की विविधता और मानक की आवश्यकता

  • अलग-अलग मापन: मेज की लंबाई मापते समय सभी दोस्तों के बालिश्तों की संख्या भिन्न-भिन्न आती है। इससे वे समझते हैं कि शरीर के अंगों का उपयोग मापन में भिन्नता ला सकता है।
  • मानक मात्रक का महत्व: दीपा और उसके मित्र समझते हैं कि एक समान मापन के लिए पैमाने या मापन-फीते का उपयोग किया जाता है। बालिश्त, हाथ, पैर आदि भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए अलग-अलग हो सकते हैं, इसलिए मानक मात्रक की आवश्यकता होती है।

मानक मात्रक प्रणाली (SI Units)

  • SI मात्रक प्रणाली: आधुनिक मापन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानक मात्रक प्रणाली (SI) का उपयोग किया जाता है। लंबाई का SI मात्रक मीटर (m) है।
  • सेंटीमीटर और मिलीमीटर: मीटर को 100 बराबर भागों में विभाजित किया जाता है जिसे सेंटीमीटर (cm) कहते हैं। 1 सेंटीमीटर को 10 बराबर भागों में विभाजित किया जाता है जिसे मिलीमीटर (mm) कहते हैं।

ऐतिहासिक संदर्भ

  • भारत में मापन प्रणाली का इतिहास: भारत में प्राचीन काल से मापन प्रणालियों का समृद्ध इतिहास रहा है। प्राचीन साहित्य में अँगलु (अँगलुी की चौड़ाई), धनुष, योजन आदि मात्रकों का वर्णन मिलता है।

मापन के विभिन्न स्तर

  • बड़ी और छोटी लंबाई के लिए मात्रक: बड़ी लंबाई मापने के लिए किलोमीटर (km) का उपयोग किया जाता है, जो 1000 मीटर के बराबर होता है। छोटी लंबाई मापने के लिए सेंटीमीटर या मिलीमीटर का उपयोग किया जाता है।

लंबाई मापने की सही विधि

1. उपयुक्त पैमाने का चयन:

  • वस्तु की लंबाई मापने के लिए पैमाने का चयन: यदि किसी पेंसिल की लंबाई मापनी है, तो 15 cm का पैमाना उपयुक्त होगा। किसी कमरे की ऊँचाई मापने के लिए मीटर पैमाना या मापन-फीते की आवश्यकता होगी।
  • विशेष मापनों के लिए लचीले मापन-फीते का उपयोग: किसी वृक्ष के तने की मोटाई या अपनी छाती के आकार का मापन करने के लिए मीटर पैमाना उपयुक्त नहीं होता। इन मापनों के लिए दर्जी के फीते जैसे लचीले मापन-फीते का उपयोग किया जाना चाहिए।

2. मापन के दौरान सावधानियाँ:

  • पैमाने को वस्तु के साथ सही तरीके से रखना: पैमाने को वस्तु के सम्पर्क में उसकी लंबाई के अनुसार सही दिशा में रखना चाहिए। सही दिशा में रखा गया पैमाना मापन को सटीक बनाता है।
  • आँख की सही स्थिति: माप लेते समय आँख की स्थिति पेंसिल या वस्तु की नोंक के ठीक ऊपर होनी चाहिए। अगर आँख की स्थिति सही नहीं है, तो मापन गलत हो सकता है।

3. टूटे पैमाने से मापन:

  • टूटे सिरे वाले पैमाने का उपयोग: यदि पैमाने के सिरे टूटे हों या शून्य अंक स्पष्ट न हो, तो 1.0 cm जैसे किसी अन्य अंक से मापन शुरू किया जा सकता है। माप के बाद उस अंक से मापे गए अंतिम अंक को घटाना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि एक सिरे का अंक 1.0 cm और दूसरे सिरे का अंक 10.4 cm है, तो वस्तु की लंबाई 9.4 cm होगी।

4. विशेष मापन विधियाँ:

  • दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए मापन: दृष्टिबाधित व्यक्ति उभरे अंकन बिंदुओं वाले पैमाने का उपयोग करते हैं, जिन्हें स्पर्श से महसूस किया जा सकता है।

5. मापन क्रियाकलाप:

  • वस्तुओं की लंबाई का मापन: छात्रों को विभिन्न वस्तुओं जैसे कंघा, पेन, पेंसिल, और रबड़ की लंबाई मापने का अभ्यास करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। माप को तालिका में दर्ज किया जाता है और अन्य छात्रों के मापों से तुलना की जाती है।
  • मापन में भिन्नता: यदि माप में भिन्नता होती है, तो इसके संभावित कारणों पर चर्चा की जाती है, जैसे कि पैमाने का उपयोग या मापते समय सावधानियों का पालन।

6. वक्र रेखा की लंबाई का मापन:

  • वक्र रेखाओं का मापन: वक्र रेखाओं की लंबाई मापने के लिए लचीले मापन-फीते या धागे का उपयोग किया जाता है। धागे को सीधा कर मीटर पैमाने से मापा जा सकता है।

7. स्थिति का निर्धारण:

  • संदर्भ बिंदु का उपयोग: किसी वस्तु या स्थान की दूरी का मापन संदर्भ बिंदु के सापेक्ष किया जाता है। संदर्भ बिंदु वह बिंदु होता है जिससे दूरी का आकलन किया जाता है, जैसे बस स्टैंड से उद्यान या विद्यालय की दूरी।
  • किलोमीटर सूचक पत्थर: ये पत्थर किसी स्थान से दूरी को दर्शाते हैं, जैसे ‘दिल्ली 70 km’। संदर्भ बिंदु दिल्ली है, और पत्थर दिल्ली से दूरी को इंगित करता है।

गतिशील वस्तुएँ और उनका अवलोकन

1. गतिशील और स्थिर वस्तुओं की पहचान:

क्रियाकलाप 5.2— खोज करें:

  • अपने आस-पास की पाँच गतिशील वस्तुएँ और पाँच स्थिर वस्तुओं की सूची बनाएं।
  • इन वस्तुओं को तालिका 5.3 में दर्ज करें।
  • यह समझने का प्रयास करें कि आपने कैसे निर्धारित किया कि कोई वस्तु गतिशील है या स्थिर है।

2. गतिशील और स्थिर वस्तुओं का विश्लेषण:

  • तालिका 5.3: इस तालिका में गतिशील और स्थिर वस्तुओं को सूचीबद्ध किया जाता है और उनका औचित्य भी लिखा जाता है।
  • निर्णय का औचित्य: वस्तु गति में तब कही जा सकती है जब उसकी स्थिति किसी संदर्भ बिंदु के सापेक्ष समय के साथ बदलती है। यदि स्थिति में कोई बदलाव नहीं होता है, तो वस्तु स्थिर मानी जाती है।

3. संदर्भ बिंदु का महत्व:

  • संदर्भ बिंदु का उपयोग: संदर्भ बिंदु यह तय करने में महत्वपूर्ण होता है कि एक वस्तु स्थिर है या गतिशील। उदाहरण के लिए, यदि दीपा बस में बैठी है और अन्य यात्रियों की स्थिति उसके सापेक्ष नहीं बदल रही है, तो वे स्थिर हैं। लेकिन बाहर की वस्तुओं के संदर्भ में उनकी स्थिति बदल रही है, जिससे वे गतिशील प्रतीत होते हैं।
  • बस और यात्रियों का अवलोकन: दीपा बस में यात्रा करते समय यह समझती है कि संदर्भ बिंदु के आधार पर वस्तुएँ गतिशील या स्थिर मानी जा सकती हैं।

4. गति के प्रकार:

  • सरल रेखीय गति: जब कोई वस्तु एक सीधी रेखा में चलती है, तो उसे सरल रेखीय गति कहते हैं। जैसे, एक बॉक्स का धकेला जाना या गणतंत्र दिवस परेड में छात्रों का मार्च पास्ट करना।
  • वृत्तीय गति: जब कोई वस्तु वृत्ताकार पथ पर चलती है, तो उसे वृत्तीय गति कहते हैं। जैसे, हिंडोला या धागे पर बंधी वस्तु का घूर्णन।
  • दोलन गति: जब कोई वस्तु एक निश्चित स्थिति के इधर-उधर गति करती है, तो उसे दोलन गति कहते हैं। जैसे, झूला या धातु की पट्टी का ऊपर-नीचे होना।
  • आवर्ती गति: यदि कोई वस्तु एक निश्चित समय अंतराल के बाद अपनी गति को दोहराती है, तो उसे आवर्ती गति कहते हैं। वृत्तीय गति और दोलन गति दोनों ही आवर्ती गति के उदाहरण हैं।

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