क्रीडाम वयं श्लोकान्त्याक्षरीम्
सारांश
विद्याया महत्त्वं
अस्मिन् पाठे विद्यायाः सर्वोपरि महत्त्वं वर्णितं भवति। विद्या न केवलं मानवस्य जीवनं समृद्धं करोति, अपितु सर्वं विश्वेन संनादति। प्रथमं, विद्या सौन्दर्यं यौवनं च विहाय सर्वं विश्वेन शोभति, यथा किशुकवृक्षा: निर्गन्धाः सन्तः न शोभन्ति। बुद्धिमन्तः काव्यशास्त्रवितोदेन कालस्य सदुपयोगं कुर्वन्ति, मूर्खास्तु व्यसनेन कलहेन वा समयं नाशति।
हिंदी में अनुवाद
इस पाठ में विद्या के सर्वोच्च महत्व का वर्णन किया गया है। विद्या न केवल मानव जीवन को समृद्ध बनाती है, बल्कि इसे सभी प्रकार से श्रेष्ठ बनाती है। सबसे पहले, यह बताया गया है कि विद्या सौन्दर्य और यौवन से अधिक महत्वपूर्ण है, जैसे पलाश के वृक्ष बिना सुगंध के शोभित नहीं होते। बुद्धिमान लोग काव्य और शास्त्रों के अध्ययन से समय का सदुपयोग करते हैं, जबकि मूर्ख लोग व्यसन या कलह में समय नष्ट करते हैं।
विद्या खलस्य विवादाय, धनं मदाय, शक्तिश्च परिपीडनाय भवति, परन्तु सज्जनस्य विद्या ज्ञानाय, धनं दानाय, शक्तिश्च रक्षणाय संनादति। ये विद्या, तपः, दानं, शीलं, गुणं च न संनादन्ति, ते भुवि भारभूता इव पशवः संनादति। विद्या यदा भवति, तदा धृति:, कीर्ति:, लक्ष्मी:, यशस्विनी वाणी, तत्त्वज्ञानं, परा शान्तिश्च प्राप्यते।
हिंदी में अनुवाद
दुष्ट व्यक्ति विद्या का उपयोग विवाद के लिए, धन का उपयोग अहंकार के लिए और शक्ति का उपयोग दूसरों को कष्ट देने के लिए करता है, जबकि सज्जन व्यक्ति विद्या का उपयोग ज्ञान प्रदान करने, धन का दान करने और शक्ति का उपयोग कमजोरों की रक्षा के लिए करता है। जो लोग विद्या, तप, दान, शील और गुणों से रहित होते हैं, वे पृथ्वी पर बोझ के समान हैं और पशुओं की तरह भटकते हैं।
विद्या मानवस्य रूपं, प्रच्छन्नगुह्यं धनं, भोगकरी, यशःसुखकरी च भवति। विदेशगमने बन्धु:, परा देवता, राजसु पूज्यते च। यः विद्याविहीनः, स पशुः समानः।
हिंदी में अनुवाद
जब विद्या प्राप्त होती है, तो धैर्य, कीर्ति, धन, यशस्वी वाणी, वास्तविक ज्ञान और परम शान्ति प्राप्त होती है। विद्या मनुष्य का सौन्दर्य है, यह गुप्त धन है, सुख और कीर्ति प्रदान करने वाली है। विदेश यात्रा में यह बन्धु के समान है, यह परम देवता है और राजाओं द्वारा पूजनीय है। जो विद्या से वंचित है, वह पशु के समान है।
विद्या, धनं च शनैः शनैः अर्जनीयं, यथा पन्थाः, कन्था, पर्वतलङ्घनं च। विद्या धनं चोरहार्यं न, राजहार्यं न, भ्रातृभाज्यं न, भारकारि च न, वितरणेन च वर्धति। अतः सर्वधनेषु विद्याधनं प्रधानं भवति।
हिंदी में अनुवाद
विद्या और धन को धीरे-धीरे अर्जित करना चाहिए, जैसे मार्ग पर चलना, वस्त्र सिलना या पर्वत पर चढ़ना। विद्या रूपी धन न चोर चुरा सकता है, न राजा हरण कर सकता है, न यह भाइयों में बाँटा जाता है, न ही यह भारी होता है। इसके वितरण से यह और बढ़ता है। इसलिए, सभी प्रकार के धनों में विद्या रूपी धन सर्वश्रेष्ठ है।
चन्द्रः ताराणां, कुसुमं लतानां, राजा पृथिव्याः भूषणं, किन्तु विद्या सर्वस्य भूषणं भवति। विद्या धनार्थं, धर्मार्थं, मोक्षार्थं च कर्तव्या। क्षणशः कणशश्च विद्या धनं च संनादति, यतः क्षणनाशेन विद्या न, कणनाशेन धनं न प्राप्यते। अन्ते, विद्या सर्वं विश्वेन शोभति, सर्वं च संनादति।
हिंदी में अनुवाद
चन्द्रमा तारों का, फूल लताओं का और राजा पृथ्वी का आभूषण है, लेकिन विद्या सभी का आभूषण है। विद्या को धन, धर्म और मोक्ष के लिए अर्जित करना चाहिए। क्षण-क्षण और कण-कण से विद्या और धन को प्राप्त करना चाहिए, क्योंकि क्षण के नष्ट होने से विद्या और कण के नष्ट होने से धन नहीं मिलता। अन्त में, विद्या सभी प्रकार से श्रेष्ठ और शोभायमान है।
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