वन्देभारतमातरम्
प्रस्तावना
वन्दे मातरम् इति गीतं भारतस्य राष्ट्रगीतम् अस्ति। इदं गीतं बहुत्र शालासु, आकाशवाण्यां, विविधेषु कार्यक्रमेषु च गायति।
लेखकः: महान् देशभक्तः बङ्किमचन्द्रः चट्टोपाध्यायः।
उत्सः: इदं गीतं तस्य “आनन्दमठ” इति उपन्यासे (सन् १८८२) प्रकाशितम्।
अर्थः: “वन्दे मातरम्” इति शब्दस्य अर्थः – “अहं मातरं वन्दामि” (मैं मातृभूमि को प्रणाम करता हूँ)।
हिन्दी अर्थ:
परिचय
वन्दे मातरम् भारत का राष्ट्रीय गीत है। इसे स्कूलों, आकाशवाणी और विभिन्न कार्यक्रमों में गाया जाता है।
लेखक: महान देशभक्त बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय।
स्रोत: यह गीत उनके उपन्यास “आनन्दमठ” (1882) में प्रकाशित हुआ।
अर्थ: “वन्दे मातरम्” का अर्थ है “मैं मातृभूमि को प्रणाम करता हूँ।”
गीतस्य भाषा
गीतं संस्कृतं बङ्गाली च भाषाद्वये लिखितम्।
विषयः: भारतमातुः स्वरूपस्य रम्यं वर्णनम्, तस्याः शोभा, प्रकृतिः, संस्कृतिः च।
हिन्दी अर्थ:
गीत की भाषा
गीत संस्कृत और बंगाली भाषा में लिखा गया है।
विषय: भारत माता के स्वरूप, प्रकृति और संस्कृति का सुन्दर वर्णन।
ऐतिहासिकं महत्त्वम्
स्वतन्त्रतासङ्ग्रामे: स्वतन्त्रतायाः आन्दोलने सर्वं देशभक्ताः इदं गीतं भक्त्या गायन्ति स्म।
प्रभावः: इदं गीतं श्रुत्वा भारतीयाः भक्त्या संनादति, देशप्रेमेन संनादति च।
विकल्परूपेण: ब्रिटिशशासने “God Save the Queen” इति गीतस्य स्थाने बङ्किमचन्द्रः “वन्दे मातरम्” रचितवान्।
हिन्दी अर्थ:
ऐतिहासिक महत्व
स्वतन्त्रता संग्राम: स्वतन्त्रता आन्दोलन में देशभक्तों ने इसे भक्ति से गाया।
प्रभाव: यह गीत सुनकर भारतीयों में देशप्रेम और भक्ति जागृत होती है।
विकल्प के रूप में: ब्रिटिश शासन के “God Save the Queen” के स्थान पर बंकिमचन्द्र ने इसे रचा।
भारतमातुः वर्णनम्
प्राकृतिकं सौन्दर्यम्:
- हिमालयः: पर्वतराजः हिमालयः भारतमातुः मस्तके मुकुटरूपेण शोभति।
- समुद्रः: रत्नाकरः (समुद्रः) भारतमातुः चरणौ प्रक्षालयति।
- पर्वताः: महेन्द्रः, मलयः, सह्याद्रिः, विन्ध्यः, अरावलिः इत्यादयः।
- नद्यः: गङ्गा, यमुना, सरस्वती, सिन्धुः, ब्रह्मपुत्रः, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी इत्यादयः। नद्यः मातृरूपेण पूज्यन्ते।
तीर्थक्षेत्राणि: अयोध्या, मथुरा, हरिद्वारम्, काशी, काञ्ची, अवन्तिका, वैशाली, द्वारिका, पुरी इत्यादीनि। एतेषां धूलिः ललाटे धार्यते।
हिन्दी अर्थ:
भारत माता का वर्णन
प्राकृतिक सौन्दर्य:
- हिमालय: पर्वतों का राजा हिमालय भारत माता के मस्तक पर मुकुट की तरह शोभता है।
- समुद्र: रत्नाकर (समुद्र) भारत माता के चरण धोता है।
- पर्वत: महेन्द्र, मलय, सह्याद्रि, विन्ध्य, अरावली आदि।
- नदियाँ: गंगा, यमुना, सरस्वती, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी आदि। नदियाँ माता के समान पूजनीय हैं।
- तीर्थस्थल: अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, काञ्ची, अवन्तिका, वैशाली, द्वारका, पुरी आदि। इनकी धूल मस्तक पर लगाई जाती है।
5. त्रिवर्णध्वजस्य वर्णनम्
रङ्गाः:
- केशरवर्णः (ऊर्ध्वभागे): शौर्यं, बलिदानं च सूचति। “जयतु सैनिकः” इति प्रेरति।
- श्वेतवर्णः (मध्यभागे): शान्तिः, सत्यं, वैज्ञानिकानां यशः च सूचति। “जयतु वैज्ञानिकः” इति प्रेरति।
- हरितवर्णः (अधोभागे): सस्यशालिता, कृषकानां परिश्रमः च सूचति। “जयतु कृषकः” इति प्रेरति।
धर्मचक्रम्: मध्ये नीलवर्णस्य चक्रं (२४ अराः) “कर्तव्यमार्गे सततं चल” इति सन्देशं ददाति।
हिन्दी अर्थ:
त्रिवर्ण ध्वज का वर्णन
रंग:
- केसरिया (ऊपरी भाग): शौर्य और बलिदान का प्रतीक। “जय हो सैनिक” कहने को प्रेरित करता है।
- श्वेत (मध्य भाग): शान्ति, सत्य और वैज्ञानिकों की славы का प्रतीक। “जय हो वैज्ञानिक” कहने को प्रेरित करता है।
- हरित (निचला भाग): हरियाली और किसानों के परिश्रम का प्रतीक। “जय हो किसान” कहने को प्रेरित करता है।
धर्मचक्र: बीच में नीला चक्र (24 तीलियाँ) “कर्तव्य पथ पर निरन्तर चलो” का सन्देश देता है।
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