वीराङ्गना पन्नाधाया
पाठस्य परिचयः
द्वादशः पाठः “पन्नाधाया” इति नाम्ना सप्तम्यां कक्षायां मेवाडस्य वीरनारी पन्नाधायायाः त्यागस्य, शौर्यस्य, राष्ट्रभक्तेश्च कथां प्रस्तौति। पाठः भारतस्य मातृभूमेः रक्षायै सर्वं समर्पितवतां वीराणां, विशेषतः महिलानां, योगदानं प्रकटति। अथर्ववेदस्य “माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः” इति मन्त्रेण प्रारभति, येन भारतीयानां मातृभूमिप्रति प्रेमं कर्तव्यं च दर्शति। पाठस्य उद्देश्यः छात्रान् पन्नाधायायाः अद्वितीयं बलिदानं, मेवाडस्य इतिहासं, संस्कृतभाषायां च रुचिं प्रेरयितुं च अस्ति।
हिंदी अनुवाद
पाठ का परिचय
बारहवां पाठ “पन्नाधाया” कक्षा सात के लिए मेवाड़ की वीर नारी पन्नाधाया के त्याग, शौर्य और राष्ट्रभक्ति की कहानी प्रस्तुत करता है। यह पाठ भारत की मातृभूमि की रक्षा के लिए सब कुछ समर्पित करने वाले वीरों, विशेष रूप से महिलाओं, के योगदान को दर्शाता है। अथर्ववेद के मंत्र “माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः” से शुरू होता है, जो भारतीयों के मातृभूमि के प्रति प्रेम और कर्तव्य को दिखाता है। पाठ का उद्देश्य बच्चों को पन्नाधाया के अद्वितीय बलिदान, मेवाड़ के इतिहास और संस्कृत भाषा में रुचि को प्रेरित करना है।
ऐतिहासिकं सन्दर्भम्
षोडशे शतके मेवाडनगरे महाराणा सङ्ग्रामसिंहः (राणा सांगा) इति विख्यातः राजा आसीत्। तस्य द्वौ पुत्रौ विक्रमादित्यः उदयसिंहः च आस्ताम्। तस्य भ्राता पृथ्वीराजः, यस्य पुत्रेषु बनवीरः अन्यतमः आसीत्। बनवीरः दुष्टबुद्धिः सन् प्रथमं विक्रमादित्यं छलेन मारयित्वा मेवाडस्य शासनं स्वीकृतवान्। ततः सः एकमेव शासकं भवितुं चिन्तति स्म, येन कोऽपि प्रतिस्पर्धी न स्यात्। अतः सः उदयसिंहं मारयितुं रात्रौ कुतन्त्रं रचति।
हिंदी अनुवाद
ऐतिहासिक संदर्भ
सोलहवीं शताब्दी में मेवाड़ में महाराणा सङ्ग्रामसिंह (राणा सांगा) नामक प्रसिद्ध राजा थे। उनके दो पुत्र थे – विक्रमादित्य और उदयसिंह। उनके भाई पृथ्वीराज थे, जिनके पुत्रों में बनवीर एक थे। बनवीर ने दुष्ट बुद्धि से पहले विक्रमादित्य को छल से मारकर मेवाड़ का शासन हथिया लिया। फिर वह अकेला शासक बनना चाहता था, ताकि कोई प्रतिस्पर्धी न रहे। इसलिए उसने उदयसिंह को मारने के लिए रात में एक षड्यंत्र रचा।
पन्नाधायायाः बलिदानम्
पन्नाधाया, उदयसिंहस्य धात्री, बनवीरस्य कुतन्त्रं ज्ञातवती। सा स्वपुत्रं चन्दनं उदयसिंहस्य शयनस्थाने शाययित्वा उदयसिंहं सुरक्षितं स्थानं नीतवती। बनवीरः रात्रौ शयनकक्षं प्राप्य चन्दनं उदयसिंहम् इति मत्वा मारयति। पन्नाधायायाः निर्णयः अकल्पनीयः आसीत् – व्यक्तिहितात् राष्ट्रहितं श्रेष्ठं मत्वा सा स्वपुत्रस्य बलिदानं ददाति। तस्याः त्यागेन उदयसिंहः सुरक्षितः, यः पश्चात् बनवीरं युद्धे जित्वा मेवाडस्य राजा अभवत्। उदयसिंहस्य पुत्रः महाराणा प्रतापः पराक्रमी योद्धा आसीत्, यः भारतीयानां हृदये चिरं स्थानं प्राप्नोत्।
हिंदी अनुवाद
पन्नाधाया का बलिदान
पन्नाधाया, उदयसिंह की धाय (दाई), ने बनवीर के षड्यंत्र को जान लिया। उसने अपने पुत्र चंदन को उदयसिंह के बिस्तर पर सुलाकर उदयसिंह को सुरक्षित स्थान पर ले गई। बनवीर रात में शयनकक्ष में आया और चंदन को उदयसिंह समझकर मार डाला। पन्नाधाया का निर्णय अकल्पनीय था – उसने व्यक्तिगत हित से ऊपर राष्ट्रहित को रखकर अपने पुत्र का बलिदान दिया। उसके त्याग से उदयसिंह सुरक्षित रहा, जो बाद में बनवीर को युद्ध में हराकर मेवाड़ का राजा बना। उदयसिंह का पुत्र महाराणा प्रताप पराक्रमी योद्धा था, जिसने भारतीयों के दिल में हमेशा स्थान पाया।
पन्नाधायायाः महत्त्वम्
पाठे उच्यते यत् यदि पन्नाधाया स्वपुत्रस्य बलिदानं न अकरिष्यत्, तर्हि उदयसिंहः न जीवति स्म, च महाराणा प्रतापः अपि न संनादति स्म। पन्नाधायायाः त्यागः, शौर्यं, राष्ट्रभक्तिः च विश्वे आदर्शरूपं स्थापति। भारतीयेतिहासे वीरनारीणां गणनायां पन्नाधायायाः स्थानं सर्वोच्चं भवति। तस्याः बलिदानं शौर्यं, कर्तव्यनिष्ठां, विवेकं, राष्ट्रप्रेमं च शिक्षति। उक्तं च – “यदि पन्नाधाया न अभविष्यत्, तर्हि कुतः राणा प्रतापः।”
हिंदी अनुवाद
पन्नाधाया का महत्त्व
पाठ में कहा गया है कि यदि पन्नाधाया ने अपने पुत्र का बलिदान न दिया होता, तो उदयसिंह जीवित न रहता और महाराणा प्रताप भी अस्तित्व में न आता। पन्नाधाया का त्याग, शौर्य और राष्ट्रभक्ति विश्व में आदर्श स्थापित करती है। भारतीय इतिहास में वीर नारियों की गणना में पन्नाधाया का स्थान सर्वोच्च है। उसका बलिदान शौर्य, कर्तव्यनिष्ठा, विवेक और राष्ट्रप्रेम सिखाता है। जैसा कि कहा गया – “यदि पन्नाधाया न होती, तो राणा प्रताप कहाँ से आता।”
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