नित्यं पिबाम: सुभाषितरसम्
प्रस्तावना
द्वितीयः पाठः “सुभाषितरसम्” इति नाम्ना संनादति, यत्र सुभाषितानां महत्त्वं, तेषां भावार्थः, चिन्तनविकासाय च योगदानं च वर्णितम्। एतत् पाठे विद्यालयस्य परिसरे स्थापितानां सुभाषितानां चर्चा, तेषां अर्थबोधः, नैतिकमूल्यानां च शिक्षणं केन्द्रितम्। सुभाषितानि मानवस्य नैतिकं, सामाजिकं, बौद्धिकं च विकासं प्रेरयन्ति।
हिंदी में अनुवाद
प्रस्तावना
दूसरा अध्याय “सुभाषितरसम्” के नाम से जाना जाता है, जिसमें सुभाषितों (सुंदर और नैतिक वचनों) का महत्व, उनके अर्थ और जीवन में नैतिक मूल्यों की स्थापना पर चर्चा की गई है। यह अध्याय विद्यालय परिसर में लिखे गए सुभाषितों, उनके अर्थ और नैतिक शिक्षा पर केंद्रित है। सुभाषित मानव के नैतिक, सामाजिक और बौद्धिक विकास को प्रेरित करते हैं।
मुख्यं विषयः
पाठे प्रारम्भे विद्यालयस्य भित्तौ लिखितं सुभाषितं प्रस्तूयते: “अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः” अस्य अर्थः अस्ति यत् विश्वस्मिन् कोऽपि अयोग्यः नास्ति, सर्वं योग्याः एव, परन्तु मार्गदर्शकस्य प्रेरकस्य च अभावः दृश्यते। एतत् सुभाषितं सर्वं प्रेरति यत् समुचितं मार्गदर्शनं लब्ध्वा प्रत्येकः सफलः भवितुं शक्नोति।
हिंदी में अनुवाद
मुख्य विषय
अध्याय की शुरुआत में विद्यालय की दीवार पर लिखा एक सुभाषित प्रस्तुत किया गया है: “अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः” इसका अर्थ है कि संसार में कोई भी अयोग्य नहीं है, सभी योग्य हैं, किंतु उचित मार्गदर्शक और प्रेरक का अभाव है। यह सुभाषित सभी को प्रेरित करता है कि सही मार्गदर्शन से प्रत्येक व्यक्ति सफल हो सकता है।
सुभाषितानां परिचयः
सुभाषितानि सुवचनानि सन्ति, यानि श्रेष्ठजनैः कथितानि नैतिकमूल्यविकासाय। एतानि चिन्तनविकासाय, कर्तव्यानां बोधाय, जीवनमूल्यानां स्थापनाय च सहायकं भवति। पाठे नानाविधानि सुभाषितानि, तेषां पदच्छेदः, अन्वयः, भावार्थः च विस्तारेण प्रस्तुतः।
हिंदी में अनुवाद
सुभाषितों का परिचय
सुभाषित सुंदर और प्रेरक वचन हैं, जो श्रेष्ठ व्यक्तियों द्वारा कहे गए हैं और नैतिक मूल्यों के विकास में सहायक हैं। ये चिन्तन विकास, कर्तव्यों के प्रति जागरूकता और जीवन मूल्यों की स्थापना में योगदान देते हैं। अध्याय में विभिन्न सुभाषितों, उनके पदच्छेद, अन्वय और भावार्थ को विस्तार से समझाया गया है।
1. प्रमुखं सुभाषितानि वस्त्रेण वपुषा वाचा विद्या विनयेन च
यः सुसंनादति, स्वस्थः, मधुरं वदति, विद्यायां संनादति, विनम्रः च अस्ति, सः पञ्चगुणैः युक्तः पूज्यते।
भावार्थ: उचितवस्त्रं, स्वस्थशरीरं, मधुरवाणी, विद्या, विनम्रता च मनुष्यं सम्माननीयं करोति।
हिंदी में अनुवाद
जो व्यक्ति उचित वस्त्र पहनता है, स्वस्थ रहता है, मधुर बोलता है, विद्या में संलग्न रहता है और विनम्र है, वह पांच गुणों से युक्त होकर पूजनीय बनता है।
भावार्थ: उचित वस्त्र, स्वस्थ शरीर, मधुर वाणी, विद्या और विनम्रता व्यक्ति को सम्माननीय बनाते हैं।
2. षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता
निद्रा, तन्द्रा, भयं, क्रोधः, आलस्यं, दीर्घसूत्रता च षड् दोषाः त्याज्याः।
भावार्थ: यः ऐश्वर्यं यशः वा प्राप्नोति, तेन एते दोषाः परित्यजनीयाः, यतः एते प्रगतेः अवरोधकाः।
हिंदी में अनुवाद
निद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता – ये छह दोष त्यागने योग्य हैं।
भावार्थ: जो व्यक्ति ऐश्वर्य और यश चाहता है, उसे इन दोषों को त्यागना चाहिए, क्योंकि ये प्रगति में बाधक हैं।
3. अद्भिः गात्राणि शुष्यन्ति
स्नानेन शरीरं, सत्येन मनः, विद्यया जीवः, जपेन बुद्धिः शुद्धा भवति।
भावार्थ: नित्यं स्नानं, सत्यवचनं, विद्याध्ययनं, जपः च जीवनं शुद्धं समृद्धं च करोति।
हिंदी में अनुवाद
स्नान से शरीर, सत्य से मन, विद्या से आत्मा और जप से बुद्धि शुद्ध होती है।
भावार्थ: प्रतिदिन स्नान, सत्य बोलना, विद्या अध्ययन और जप जीवन को शुद्ध और समृद्ध बनाते हैं।
4. उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्
भारतवर्षं हिमालयस्य दक्षिणे, हिन्दमहासागरस्य उत्तरे च अस्ति।
भावार्थ: भारतस्य भौगोलिकं स्वरूपं वर्णति, यत्र भारतीयाः सन्ततिः निवसति।
हिंदी में अनुवाद
भारतवर्ष हिमालय के दक्षिण और हिंद महासागर के उत्तर में स्थित है।
भावार्थ: यह सुभाषित भारत के भौगोलिक स्वरूप का वर्णन करता है, जहां भारतीय संतति निवास करती है।
5. जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः
यथा बिन्दुभिः घटः पूर्यते, तथैव अभ्यासेन विद्या, धर्मः, धनं च लभ्यते।
भावार्थ: निरन्तरं प्रयासेन सर्वं सम्भवति।
हिंदी में अनुवाद
जैसे बूंद-बूंद से घड़ा भरता है, वैसे ही अभ्यास से विद्या, धर्म और धन प्राप्त होता है।
भावार्थ: निरंतर प्रयास से सब कुछ संभव है।
6. यः पठति लिखति पश्यति परिपृच्छति
यः अध्ययनं, लेखनं, अवलोकनं, प्रश्नं, विदुषां संगतिं च करोति, तस्य बुद्धिः कमलवत् प्रस्फुरति।
भावार्थ: विद्या, संनादति, संनादति च बुद्धिविकासाय आवश्यकं।
हिंदी में अनुवाद
जो पढ़ता, लिखता, देखता, प्रश्न करता और विद्वानों की संगति करता है, उसकी बुद्धि कमल की तरह खिलती है।
भावार्थ: अध्ययन, लेखन और विद्वानों की संगति बुद्धि विकास के लिए आवश्यक हैं।
7. प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वं तुष्यन्ति जन्तवः
मधुरवाण्या सर्वं सन्तुष्टः भवति।
भावार्थ: मधुरवचनेन सर्वं प्रियं भवति, अतः मधुरं वदेत्।
हिंदी में अनुवाद
मधुर वाणी से सभी प्राणी संतुष्ट होते हैं।
भावार्थ: मधुर वचन से सभी प्रसन्न होते हैं, अतः हमेशा मधुर बोलना चाहिए।
8. आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः
आलस्यं शत्रुः, उद्यमः मित्रं।
भावार्थ: परिश्रमेण दुःखं नास्ति, आलस्यं सर्वं नाशति।
हिंदी में अनुवाद
आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, और परिश्रम उसका मित्र।
भावार्थ: परिश्रम से दुख नहीं होता, आलस्य सब कुछ नष्ट करता है।
9. परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्
परोपकारः पुण्यं, परपीडनं पापं।
भावार्थ: परहितं पुण्यं, परकष्टं पापं।
हिंदी में अनुवाद
परोपकार पुण्य देता है, और दूसरों को कष्ट देना पाप।
भावार्थ: दूसरों की भलाई पुण्य है, और दूसरों को कष्ट देना पाप।
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