न लभ्यते चेत्आम्लं द्राक्षाफलम्
(Page 2)
संस्कृतम्:
एकः श्रगालः वनं गच्छति।
पिपासा, तस्य बुभुक्षा
पिपासया बुभुक्षया वनं गच्छति
सः वनं गच्छति, सः वनं गच्छति।
तत्र गच्छति, किमपि न लभते
इतोऽपि गच्छति, किमपि न लभते
श्रान्तः जायते, खिन्नः जायते
सः श्रान्तः जायते, खिन्नः जायते
कि च करोति ? सः कि च करोति ?
हिन्दी
इस खंड में कहानी की शुरुआत होती है, जिसमें एक लोमड़ी (श्रगाल) को जंगल में जाने का वर्णन है। लोमड़ी प्यास (पिपासा) और भूख (बुभुक्षा) से परेशान है। वह जंगल में कुछ खाने-पीने की तलाश में भटकती है, लेकिन उसे कुछ भी नहीं मिलता। इस कारण वह थक जाती है और उदास हो जाती है। कविता का यह हिस्सा लोमड़ी की परेशानी और निराशा को दर्शाता है। अंत में प्रश्न “वह अब क्या करती है?” कहानी में उत्सुकता बढ़ाता है, जिससे पाठक यह जानना चाहता है कि आगे क्या होगा।
(Pages 2-3)
संस्कृतम्:
वामतः पश्यति, दक्षिणतः पश्यति
अग्रतः पश्यति, पृष्ठतः पश्यति
स्वेदः जायते, तृषा जायते
सः स्वेदः जायते, तृषा जायते
कि च पश्यति ? सः कि च पश्यति ?
पश्यति द्राक्षालताम्
सः पश्यति द्राक्षाफलम्
उपरि उपरि तत् तस्मिन् दृश्यते च द्राक्षाफलम्
अनुक्षणं तन्मुखे रसः जायते
किं च करोति ? सः किं च करोति ?
हिन्दी
इस खंड में लोमड़ी चारों दिशाओं (बाएँ, दाएँ, आगे, पीछे) में देखती है, क्योंकि वह भोजन की तलाश में है। उसकी थकान और प्यास बढ़ती जाती है, जिससे वह पसीने से तर हो जाती है। अंत में, उसे एक अंगूर की लता दिखाई देती है, जिस पर अंगूर के फल ऊँचाई पर लटक रहे हैं। अंगूर देखकर उसके मुँह में लार टपकने लगती है, जो उसकी लालसा को दर्शाता है। प्रश्न “वह अब क्या करती है?” कहानी को और रोचक बनाता है, क्योंकि पाठक जानना चाहता है कि लोमड़ी अंगूर पाने के लिए क्या करेगी।
(Page 3)
संस्कृतम्:
एकवारम् उत्पतति, द्विवारम् उत्पतति
त्रिवारम् उत्पतति, पुनः पुनः उत्पतति
स्वेदः जायते, तस्य श्रमः जायते
किं कथयति ? सः किं कथयति ?
आम्लं द्राक्षाफलम् आम्लं द्राक्षाफलम्
दृष्ट्वैवं कथयति, सः पलायति
दृष्ट्वैवं कथयति, सः पलायति।
हिन्दी
इस अंतिम खंड में लोमड़ी अंगूर पाने की कोशिश करती है। वह एक बार, दो बार, तीन बार और बार-बार उछलती है, लेकिन अंगूर ऊँचे होने के कारण उसे नहीं मिलते। इस प्रयास में वह और अधिक थक जाती है और पसीने से तर हो जाती है। अंत में, हार मानकर वह कहती है कि “अंगूर खट्टे हैं” और वहाँ से भाग जाती है। यह हिस्सा उस प्रसिद्ध कहानी “The Fox and the Grapes” का संस्कृत रूप है, जो यह संदेश देती है कि जब कोई चीज प्राप्त नहीं होती, तो लोग उसे कम महत्वपूर्ण बताकर अपनी असफलता को छिपाने की कोशिश करते हैं।
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