न लभ्यते चेत्आम्लं द्राक्षाफलम्
सारांश
प्रस्तावना
चतुर्थः पाठः “न लभ्यते यत् आक्लं द्राक्षाफलम्” इति नाम्ना संनादति, यः शृगालस्य द्राक्षाफलकथां गीतरूपेण प्रस्तौति। अस्मिन् पाठे शृगालस्य असफलप्रयासस्य, तस्य च विफलतायाः स्वीकरणं नैतिकशिक्षया सह संनादति। कक्षा संनादति यत्र छात्राः चित्रं दृष्ट्वा शृगालस्य कथां संस्कृतभाषायां गायन्ति, अभिनयं च कुर्वन्ति। पाठः नैतिकं सन्देशं ददाति यत् यत् न लभ्यते, तत् दोषपूर्णं न मन्तव्यम्।
हिंदी में अनुवाद
प्रस्तावना
चौथा अध्याय “न लभ्यते यत् आक्लं द्राक्षाफलम्” के नाम से है, जो लोमड़ी और अंगूर की कथा को गीत के रूप में प्रस्तुत करता है। यह पाठ लोमड़ी के असफल प्रयास और उसकी विफलता को स्वीकार करने की नैतिक शिक्षा देता है। कक्षा में छात्र चित्र देखकर लोमड़ी की कथा को संस्कृत में गाते और अभिनय करते हैं। यह पाठ नैतिक सन्देश देता है कि जो प्राप्त नहीं होता, उसे दोषपूर्ण नहीं मानना चाहिए।
मुख्यं विषयवस्तु
पाठस्य प्रारम्भे आचार्या छात्रान् चित्रं दर्शति, यत्र शृगालः द्राक्षाफलानि खादितुं इच्छति, किन्तु न शक्नोति। छात्राः संनादति यत् एषा कथा तेषां मातृभाषायां परिचिता अस्ति। आचार्या कथां संस्कृतभाषायां गीतरूपेण प्रस्तौति। गीते शृगालः वने भ्रमति, पिपासया बुभुक्षया च पीडितः। सः द्राक्षालतां पश्यति, किन्तु फलानि उपरि लतासु हृष्यन्ते। सः उत्पतति, पुनः पुनः प्रयासति, किन्तु न लभति। अन्ते सः कथयति “आक्लं द्राक्षाफलम्” इति, पलायति च। एषा कथा नैतिकं सन्देशं ददाति यत् असफलतायां दोषारोपणं न उचितम्।
हिंदी में अनुवाद
मुख्य विषयवस्तु
अध्याय की शुरुआत में आचार्या छात्रों को चित्र दिखाती हैं, जिसमें लोमड़ी अंगूर खाने की इच्छा रखती है, लेकिन असमर्थ रहती है। छात्र बताते हैं कि यह कथा उनकी मातृभाषा में परिचित है। आचार्या इस कथा को संस्कृत में गीत के रूप में प्रस्तुत करती हैं। गीत में लोमड़ी जंगल में भटकती है, प्यास और भूख से पीड़ित। वह अंगूर की बेल देखती है, लेकिन फल ऊँची लताओं पर हैं। वह कूदती है, बार-बार प्रयास करती है, लेकिन अंगूर नहीं पाती। अंत में वह कहती है “अंगूर खट्टे हैं” और भाग जाती है। यह कथा नैतिक सन्देश देती है कि असफलता में दोषारोपण उचित नहीं है।
गीतस्य संरचना
गीतं शृगालस्य कथां चरणबद्धं प्रस्तौति:
प्रथमं चरणम्: शृगालः वने गच्छति, पिपासया बुभुक्षया च पीडितः। सः किमपि न लभति, श्रान्तः खिन्नः च जायते।
द्वितीयं चरणम्: सः सर्वं दिशासु (वामतः, दक्षिणतः, अग्रतः, पृष्ठतः) पश्यति, स्वेदः तृषा च जायते।
तृतीयं चरणम्: सः द्राक्षालतां द्राक्षाफलं च पश्यति। फलं उपरि लतासु हृष्यति, तस्य मुखे रसः (लाला) जायते।
चतुर्थं चरणम्: सः एकवारं, द्विवारं, त्रिवारं च उत्पतति, किन्तु न लभति। अन्ते “आक्लं द्राक्षाफलम्” इति कथयति, पलायति च। गीतं सरलं, शिक्षणाय च संनादति, येन छात्राः संस्कृतभाषां सङ्गीतरूपेण शिक्षन्ति।
हिंदी में अनुवाद
गीत की संरचना
गीत लोमड़ी की कथा को चरणबद्ध रूप में प्रस्तुत करता है:
- पहला चरण: लोमड़ी जंगल में जाती है, प्यास और भूख से पीड़ित। उसे कुछ नहीं मिलता, वह थक और दुखी हो जाती है।
- दूसरा चरण: वह सभी दिशाओं (बाएँ, दाएँ, आगे, पीछे) में देखती है, पसीना और प्यास बढ़ती है।
- तीसरा चरण: वह अंगूर की बेल और फल देखती है। फल ऊँची लताओं पर हैं, उसके मुँह में लार टपकती है।
- चौथा चरण: वह एक बार, दो बार, तीन बार कूदती है, लेकिन फल नहीं पाती। अंत में कहती है “अंगूर खट्टे हैं” और भाग जाती है। गीत सरल और शिक्षण के लिए उपयुक्त है, जिससे छात्र संस्कृत को संगीतमय रूप में सीखते हैं।
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