सेवा हि परमो धर्म:
प्रस्तावना
पञ्चमः पाठः “सेवा हि परमो धर्मः” इति नाम्ना संनादति, यः सेवाया: महत्त्वं नैतिकमूल्यैः सह प्रस्तौति। अस्मिन् पाठे नागार्जुनस्य कथां द्वारा दर्शितं यत् विद्या, उपाधिः, पदं, धनं च जीवनस्य सफलतायां महत्त्वपूर्णं, किन्तु मानवीयगुणाः यथा सत्यं, करुणा, उदारता, सेवा, परोपकारः, अकोधः च परमं धर्मं संनादति। पाठः संस्कृतभाषायां नैतिकशिक्षां, व्याकरणं, शब्दकोशवृद्धिं च संयोजति, येन छात्राः रुचिपूर्वकं शिक्षन्ति।
हिंदी में अनुवाद
पाँचवाँ अध्याय “सेवा हि परमो धर्मः” सेवा के महत्त्व को नैतिक मूल्यों के साथ प्रस्तुत करता है। इस अध्याय में नागार्जुन की कहानी के माध्यम से बताया गया है कि विद्या, उपाधि, पद, धन जीवन की सफलता के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन मानवीय गुण जैसे सत्य, करुणा, उदारता, सेवा, परोपकार, अक्रोध सर्वोपरि हैं। यह पाठ संस्कृत भाषा में नैतिक शिक्षा, व्याकरण और शब्दकोश वृद्धि को जोड़ता है, जिससे छात्र रुचिपूर्वक सीखते हैं।
मुख्यं विषयवस्तु
पाठस्य प्रारम्भे आचार्या छात्रान् पृच्छति यत् जीवनस्य सफलतायै किं आवश्यकं। छात्राः विद्या, उपाधि, पदं, धनं च कथयन्ति। आचार्या उपदिशति यत् मालवीयगुणाः (मानवीयगुणाः) यथा सत्यं, करुणा, सेवा, उदारता, परोपकारः, अकोधः च सर्वोपरि। एतैः गुणैः युक्तां कथां प्रस्तौति, यत्र नागार्जुनः, रसायनशास्त्रज्ञः चिकित्सकः च, प्रयोगशालायां सहायकस्य चयनाय परीक्षां करोति।
हिंदी में अनुवाद
अध्याय की शुरुआत में आचार्या छात्रों से पूछती हैं कि जीवन की सफलता के लिए क्या आवश्यक है। छात्र विद्या, उपाधि, पद, धन आदि बताते हैं। आचार्या उपदेश देती हैं कि मानवीय गुण जैसे सत्य, करुणा, सेवा, उदारता, परोपकार, अक्रोध सर्वोपरि हैं। इस सन्दर्भ में नागार्जुन की कहानी प्रस्तुत की जाती है, जो एक रसायनशास्त्रज्ञ और चिकित्सक हैं।
नागार्जुनः राजाय निवेदति यत् तस्य प्रयोगशालायां चिकित्साकार्याय सहायकस्य आवश्यकता। राजा अङ्गीकरोति, योग्यं युवकं चयनाय व्यवस्थां करोति। द्वौ युवकौ आगच्छतः, उभयोः विद्या, रसायनशास्त्रस्य ज्ञानं च समानं। नागार्जुनः ताभ्यां विशिष्टं रसायनं (कषायं) निर्माणाय दिनद्वयस्य अवकाशं ददाति, सूचति च यत् “राजमार्गेण गच्छताम्”।
हिंदी में अनुवाद
नागार्जुन राजा से अपनी प्रयोगशाला के लिए सहायक की माँग करते हैं। राजा स्वीकार करता है और योग्य युवक के चयन की व्यवस्था करता है। दो युवक आते हैं, दोनों की विद्या और रसायनशास्त्र का ज्ञान समान है। नागार्जुन उन्हें एक विशेष रसायन (काढ़ा) बनाने के लिए दो दिन का समय देता है और कहता है, “राजमार्ग से जाना।”
दिनद्वयान्तरे प्रथमः युवकः रसायनं निर्माय समागच्छति। नागार्जुनः पृच्छति, “किम् कष्टं नाभवत्?” युवकः स्वतिष्ठां दर्शयति, स्वपरिवारस्य समस्याः (पितुः उदरपीडा, मातुः रसन्याः समस्याः) कथयति, तथापि सर्वं त्यक्त्वा रसायनं निर्मितवान्। द्वितीयः युवकः खिन्नः आगच्छति, रसायनं न निर्माय। सः कथति यत् राजमार्गे रोगिनं दृष्टवान्, यस्य शक्ता शोचनीया। सः तं रोगिनं स्वगृहं नीतवान्, दिनद्वयं तस्य सेवायां निरतः। प्रभाते रोगी स्वस्थः अभवत्, ततः सः नागार्जुनस्य समीपं समागतः।
हिंदी में अनुवाद
दो दिन बाद पहला युवक रसायन बनाकर लाता है। नागार्जुन पूछता है, “कोई कष्ट तो नहीं हुआ?” युवक अपनी उपलब्धि दिखाता है, अपने परिवार की समस्याएँ (पिता का उदर रोग, माँ की रसना की समस्या) बताता है, फिर भी सब छोड़कर रसायन बनाया। दूसरा युवक दुखी होकर आता है, रसायन नहीं बनाता। वह बताता है कि राजमार्ग पर एक रोगी को देखा, जिसकी स्थिति दयनीय थी। उसने रोगी को अपने घर ले जाकर दो दिन उसकी सेवा की। सुबह रोगी स्वस्थ हुआ, तब वह नागार्जुन के पास आया।
नागार्जुनः द्वितीयं युवकं सहायकरूपेण स्वीकरोति। राजा आश्चर्यं प्रकटति, पृच्छति च यत् प्रथमः रसायनं कृतवान्, द्वितीयः न कृतवान्, तथापि किमर्थं द्वितीयः चितः। नागार्जुनः कथति यत् द्वितीयः रसायननिर्माणे कुशलः, किन्तु समयाभावात् न निर्मायति, यतः सः रोगिणः सेवायां निरतः। प्रथमः रोगिनं दृष्ट्वा अपि राजमार्गं गतवान्, यन्त्रवत् कार्यं कृतवान्। तस्मिन् सेवाभावना नास्ति। नागार्जुनः उपदिशति यत् सेवाभावनां विना चिकित्सकः न भवति। एषा कथा दर्शति यत् विद्या, कौशलं च महत्त्वपूर्णं, किन्तु सेवा, करुणा च जीवनस्य आधारः।
हिंदी में अनुवाद
नागार्जुन दूसरे युवक को सहायक चुनता है। राजा आश्चर्य करता है, पूछता है कि पहला युवक रसायन लाया, दूसरा नहीं, फिर भी दूसरा क्यों चुना गया। नागार्जुन बताता है कि दूसरा रसायन बनाने में कुशल है, लेकिन समय की कमी के कारण नहीं बना, क्योंकि वह रोगी की सेवा में व्यस्त था। पहला युवक रोगी को देखकर भी राजमार्ग पर चला गया, यन्त्रवत् कार्य किया। उसमें सेवा की भावना नहीं थी। नागार्जुन उपदेश देता है कि सेवा की भावना के बिना चिकित्सक नहीं बन सकता। यह कहानी दर्शाती है कि विद्या और कौशल महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन सेवा और करुणा जीवन का आधार हैं।
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