क्रीडाम वयं श्लोकान्त्याक्षरीम्
श्लोकः 2
संस्कृतं श्लोकः:
काव्यशास्त्रविनोदेन कालः गच्छति धीमताम्।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा॥
हिन्दी अनुवाद: बुद्धिमान लोगों का समय काव्य और शास्त्र के आनंद में बीतता है। मूर्खों का समय व्यसन, नींद या झगड़े में नष्ट होता है।
श्लोकः 3
संस्कृतं श्लोकः:
विद्यया विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय।
खलस्य साधोर्विपरीतमेतद् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥
हिन्दी अनुवाद: दुष्ट व्यक्ति विद्या का उपयोग झगड़े, धन का अहंकार और शक्ति का दूसरों को कष्ट देने के लिए करता है। सज्जन इसका उल्टा करता है: विद्या का उपयोग ज्ञान, धन का दान और शक्ति का रक्षा के लिए करता है।
श्लोकः 4
संस्कृतं श्लोकः:
येषां न विद्यया न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूताः मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति॥
हिन्दी अनुवाद: जिनके पास न विद्या, न तप, न दान, न ज्ञान, न चरित्र, न गुण और न धर्म है, वे इस संसार में पृथ्वी पर बोझ बनकर मनुष्य के रूप में पशुओं की तरह विचरते हैं।
श्लोकः 5
संस्कृतं श्लोकः:
तदा वृत्तिश्च कीर्तिश्च लक्ष्मीर्वाणी यशस्विनी।
तत्त्वज्ञानं परा शान्तिर्यदा विद्या भवेत् तव॥
हिन्दी अनुवाद: जब तुम्हें विद्या प्राप्त होती है, तब तुम्हें आजीविका, यश, धन, कीर्तियुक्त वाणी, सत्य का ज्ञान और उत्तम शांति मिलती है।
श्लोकः 6
संस्कृतं श्लोकः:
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परा देवता विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः॥
हिन्दी अनुवाद: विद्या मनुष्य का सबसे सुंदर रूप और छिपा हुआ धन है। विद्या सुख, यश और आनंद देती है। विद्या गुरुओं की भी गुरु है। विदेश में यह बंधु की तरह है। विद्या सर्वोत्तम देवता है। राजा विद्या की पूजा करते हैं, धन की नहीं। विद्या से रहित व्यक्ति पशु के समान है।
श्लोकः 7
संस्कृतं श्लोकः:
शनैः पन्थाः शनैः कन्या शनैः पर्वतलङ्घनम्।
शनैर्विद्या शनैर्वित्तं पञ्चैतानि शनैः शनैः॥
हिन्दी अनुवाद: रास्ता धीरे-धीरे चलना चाहिए, कपड़ा धीरे-धीरे सिलना चाहिए, पर्वत धीरे-धीरे चढ़ना चाहिए, विद्या और धन धीरे-धीरे कमाना चाहिए। ये पाँच कार्य धीरे-धीरे करने चाहिए।
श्लोकः 8
संस्कृतं श्लोकः:
न विद्यया विना सौख्यं नराणां जायते ध्रुवम्।
अतो धर्मार्थमोक्षेच्छो विद्याक्यासं समाचरेत्॥
हिन्दी अनुवाद: विद्या के बिना मनुष्यों को निश्चित सुख नहीं मिलता। इसलिए धर्म, अर्थ और मोक्ष की इच्छा रखने वाले को विद्या का अभ्यास करना चाहिए।
श्लोकः 9
संस्कृतं श्लोकः:
ताराणां भूषणं चन्द्रः लतानां भूषणं सुमम्।
पृथिव्याः भूषणं राजा विद्या सर्वस्य भूषणम्॥
हिन्दी अनुवाद: चंद्रमा तारों का आभूषण है, फूल लताओं का आभूषण है, राजा पृथ्वी का आभूषण है, परंतु विद्या सभी का आभूषण है।
श्लोकः 10
संस्कृतं श्लोकः: न चोरहार्यं न च राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥
हिन्दी अनुवाद: विद्या रूपी धन न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न भाइयों में बाँटा जा सकता है, न यह भारी है। इसे बाँटने से यह और बढ़ता है। इसलिए विद्या रूपी धन सभी धनों में सबसे महत्वपूर्ण है।
श्लोकः
संस्कृतं श्लोकः:
जातिभ्रंशति नैव चोरेणापि न नीयते।
दाने नैव क्षयं याति विद्यारत्नं महाधनम्॥
हिन्दी अनुवाद: विद्या रूपी रत्न कभी नष्ट नहीं होता, चोर इसे चुरा नहीं सकता। दान देने से यह कम नहीं होता। इसलिए विद्या महान धन है।
श्लोकः
संस्कृतं श्लोकः:
क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत्।
क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम्॥
हिन्दी अनुवाद: प्रत्येक क्षण और कण से विद्या और धन कमाना चाहिए। यदि क्षण नष्ट हो तो विद्या कहाँ, यदि कण नष्ट हो तो धन कहाँ?
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