ईशावास्यम्इदं सर्वम्
पृष्ठं 1: परिचयः (हिरण्यकशिपोः सभा)
संस्कृतं
अयं पाठः “ईशावास्यम् इदं सर्वम्” इति नाम्ना प्रसिद्धः। नाटकं हिरण्यकशिपोः सभायां प्रारभति। राजभटः हिरण्यकशिपोः आगमनं घोषति, यः स्वं सर्वशक्तिमन्तं अमरं च कथति। सभासदः “विजयताम्” इति संनादति। मन्त्री कथति यत् सर्वं भवतः पूजति, किन्तु प्रह्लादः हरेः भक्तः इति विषयं संनादति। हिरण्यकशिपुः क्रोधति।
हिन्दी अनुवाद:
ईश्वर से व्याप्त यह सब कुछ है। यह पाठ हिरण्यकशिपु की सभा में नाटक शुरू करता है। राजभट हिरण्यकशिपु के आगमन की घोषणा करता है, जो स्वयं को सर्वशक्तिमान और अमर कहता है। सभासद “जय हो” कहते हैं। मन्त्री कहता है कि सभी उसकी पूजा करते हैं, लेकिन प्रह्लाद हरि का भक्त है। इस पर हिरण्यकशिपु क्रोधित होता है।
पृष्ठं 2: प्रह्लादस्य भक्तिः
संस्कृतं:
हिरण्यकशिपुः प्रह्लादस्य हरिभक्तिं कुलकलङ्कं मनति। सेनापतिः कथति यत् गजदलनेन, उच्चपर्वतात् पातनेन, रज्जुबद्ध्वा समुद्रक्षेपणेनापि प्रह्लादः न मृतः। हिरण्यकशिपुः उपायं विचिन्त्य होलिकां संनादति। होलिका, ब्रह्मवरात् अग्निदाहमुक्ता, प्रह्लादं ज्वलति इति कथति।
हिन्दी अनुवाद:
हिरण्यकशिपु प्रह्लाद की हरि भक्ति को कुल का कलंक मानता है। सेनापति कहता है कि हाथी से कुचलने, ऊँचे पर्वत से गिराने, रस्सी से बाँधकर समुद्र में फेंकने से भी प्रह्लाद नहीं मरा। हिरण्यकशिपु उपाय सोचकर होलिका को बुलाता है। होलिका, ब्रह्मा के वर से अग्नि से बची रहने वाली, कहती है कि वह प्रह्लाद को जलाएगी।
पृष्ठं 3: होलिकायाः प्रयासः
संस्कृतं:
होलिका प्रह्लादं क्रीडायै आह्वयति। सा अग्निकुण्डं प्रज्वालति, प्रह्लादस्य नेत्रे पट्टिकया बध्नति। प्रह्लादः अग्निकुण्डं गच्छति। होलिका तं अङ्के गृह्णाति, किन्तु प्रह्लादः “ॐ नमो नारायणाय” इति जपति। नारायणस्य कृपया प्रह्लादः रक्षितः भवति।
हिन्दी अनुवाद:
होलिका प्रह्लाद को खेलने के लिए बुलाती है। वह अग्निकुण्ड जलाती है और प्रह्लाद की आँखें पट्टी से बाँधती है। प्रह्लाद अग्निकुण्ड की ओर जाता है। होलिका उसे गोद में लेती है, लेकिन प्रह्लाद “ॐ नमो नारायणाय” जपता है। नारायण की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहता है।
पृष्ठं 4: होलिकायाः दहनम्
संस्कृतं:
ब्रह्मवरस्य दुरुपयोगात् अग्निः होलिकाम् एव दहति, सा आर्तनादति प्राणांस्त्यजति। प्रह्लादः “ॐ नमो नारायणाय” इति जपति। हिरण्यकशिपुः क्रोधेन हरेः सर्वत्र उपस्थितिं प्रश्नति। प्रह्लादः कथति यत् हरिः सर्वत्र, स्तम्भे अपि अस्ति। हिरण्यकशिपुः सङ्गेन स्तम्भं प्रहरति, ततः नृसिंहः प्रकटति।
हिन्दी अनुवाद:
ब्रह्मा के वर के दुरुपयोग से अग्नि होलिका को ही जला देती है, वह चीखती हुई प्राण त्याग देती है। प्रह्लाद “ॐ नमो नारायणाय” जपता है। हिरण्यकशिपु क्रोधित होकर हरि की सर्वत्र उपस्थिति पर सवाल उठाता है। प्रह्लाद कहता है कि हरि हर जगह, स्तम्भ में भी है। हिरण्यकशिपु सङ्ग से स्तम्भ पर प्रहार करता है, तब नृसिंह प्रकट होते हैं।
पृष्ठं 5: नृसिंहस्य प्रकटीकरणम्
संस्कृतं:
नृसिंहः हिरण्यकशिपुं क्रोधेन संनादति। सः कथति यत् ब्रह्मवरं निराकुर्वन् निजनखैः देहल्यां हिरण्यकशिपोः वक्षःस्थलं विदारति। न ह्यस्त्रेण, न शस्त्रेण, न गृहे, न बहिः, न दिवसे, न रात्रौ, न मनुष्येन, न पशुना। अध्यापिका बोधति यत् ईश्वरः सर्वत्र अस्ति, अतः “ईशावास्यम् इदं सर्वम्”।
हिन्दी अनुवाद:
नृसिंह क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु को संबोधित करते हैं। वे कहते हैं कि ब्रह्मा के वर को निरस्त कर देहली पर अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु की छाती चीरेंगे। न हथियार से, न शस्त्र से, न घर में, न बाहर, न दिन में, न रात में, न मनुष्य द्वारा, न पशु द्वारा। अध्यापिका समझाती है कि ईश्वर हर जगह है, इसलिए “ईश्वर से व्याप्त यह सब कुछ है”।
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