ईशावास्यम्इदं सर्वम्
सारांश
अस्मिन् पाठे हिरण्यकशिपोः प्रह्लादस्य च कथायाः वर्णनं भवति, यया भगवतः नारायणस्य सर्वत्र संनादति इति भावः प्रदर्शितः। हिरण्यकशिपुः, दैत्यराजः, सर्वं विश्वं स्वाधीने कर्तुं स्वस्य सर्वशक्तिमत्त्वं च अमरत्वं च प्रख्यापति। सः सर्वं विश्वेन स्वस्य पूजां स्थापयति, अन्यदेवतानां पूजां निषेधति च। तथापि तस्य पुत्रः प्रह्लादः, भगवतः नारायणस्य परमभक्तः, तस्य गुणगानं नित्यं करोति, येन हिरण्यकशिपुः क्रुद्धः भवति।
हिंदी में अनुवाद
इस पाठ में हिरण्यकशिपु और प्रह्लाद की कथा का वर्णन किया गया है, जिसके माध्यम से यह सिद्ध किया गया है कि भगवान नारायण सर्वत्र व्याप्त हैं। हिरण्यकशिपु, जो दैत्यों का राजा है, स्वयं को सर्वशक्तिमान और अमर घोषित करता है। वह पूरे विश्व में अपनी पूजा स्थापित करता है और अन्य देवताओं की पूजा को निषेध करता है। फिर भी, उसका पुत्र प्रह्लाद, जो भगवान नारायण का परम भक्त है, निरन्तर नारायण के गुणों का गान करता है, जिससे हिरण्यकशिपु क्रुद्ध हो जाता है।
प्रह्लादस्य नाशाय हिरण्यकशिपुः अनेकं यत्नं करोति। सः गजेन, पर्वतशिखरात् पातनेन, समुद्रे निमज्जनेन च प्रह्लादं मारयितुं यतति, परन्तु भगवतः कृपया प्रह्लादः सर्वदा रक्षितः भवति। अन्ते, हिरण्यकशिपुः स्वस्य अनुजां होलिकां प्रह्लादेन सह अग्नौ प्रज्वलति, यया होलिका स्वयं दहति, प्रह्लादः तु नारायणस्य मन्त्रजपेन रक्षितः भवति।
हिंदी में अनुवाद
प्रह्लाद को नष्ट करने के लिए हिरण्यकशिपु अनेक प्रयास करता है। वह प्रह्लाद को हाथी से कुचलने, पर्वत की चोटी से गिराने और समुद्र में डुबाने का प्रयत्न करता है, परन्तु भगवान की कृपा से प्रह्लाद हर बार सुरक्षित रहता है। अन्त में, हिरण्यकशिपु अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद के साथ अग्नि में जलाने का आदेश देता है, परन्तु होलिका स्वयं जल जाती है और प्रह्लाद नारायण के मंत्र जप के द्वारा सुरक्षित रहता है।
हिरण्यकशिपुः क्रुद्धः प्रह्लादेन सह संनादति, हरिः सर्वत्र अस्ति इति प्रह्लादस्य कथनं न स्वीकरोति। सः स्तम्भं खड्गेन प्रहरति, ततः भगवान् नृसिंहः, सिंहमानवसङ्कररूपेण, स्तम्भात् प्रादुर्भवति। नृसिंहः हिरण्यकशिपोः वरस्य शर्तानां पालनं कुर्वन्, न तु दिवसे न रात्रौ, न चास्त्रेण न शस्त्रेण, न च अन्तः न बहिः, देहल्यां तं मारयति।
हिंदी में अनुवाद
हिरण्यकशिपु क्रोधित होकर प्रह्लाद से विवाद करता है और प्रह्लाद के इस कथन को कि हरि सर्वत्र हैं, स्वीकार नहीं करता। वह खड्ग से एक स्तम्भ पर प्रहार करता है, तभी भगवान नृसिंह, सिंह और मानव के संकर रूप में, स्तम्भ से प्रकट होते हैं। नृसिंह, हिरण्यकशिपु के वर की शर्तों का पालन करते हुए, न दिन में न रात में, न हथियार से न शस्त्र से, न भीतर न बाहर, अपितु देहली पर उसका वध करते हैं।
एवं प्रह्लादस्य भक्त्या भगवतः सर्वत्र संनादति इति सिद्धं भवति। पाठे होलिकोत्सवस्य उत्पत्तिः, तस्य वैदिकसन्दर्भः च वर्णितः। बिहारस्य पूर्णियायां नृसिंहस्तम्भस्य ऐतिहासिकं महत्त्वं च कथितम्। अन्ते, अध्यापिका उपदेशति यत् ईशावास्यमिदं सर्वं, इति विश्वं भगवतः संनादति।
हिंदी में अनुवाद
इस प्रकार प्रह्लाद की भक्ति से यह सिद्ध होता है कि भगवान सर्वत्र व्याप्त हैं। पाठ में होलिका उत्सव की उत्पत्ति और इसके वैदिक सन्दर्भ का भी वर्णन है। बिहार के पूर्णिया में नृसिंह स्तम्भ के ऐतिहासिक महत्व का उल्लेख किया गया है। अन्त में, अध्यापिका उपदेश देती है कि “ईशावास्यमिदं सर्वं”, अर्थात् यह विश्व भगवान से व्याप्त है।
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