हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः
सारांश
अस्मिन् पाठे संस्कृतसाहित्यात् संनादिताः विविधाः सुक्तयः प्रस्तुताः, याः जीवनमूल्यानि शिक्षति। एताः सुक्तयः अथर्ववेदात्, कुमारसम्भवात्, पञ्चतन्त्रात्, उत्तररामचरितात्, नीतिशतकात्, किरातार्जुनीयात् च सङ्गृहीताः। प्रत्येकं सूक्तिः मानवजीवनस्य कस्यचिद् मूल्यस्य उपदेशं ददाति, येन जीवनं समृद्धं च सुसंस्कृतं च भवति।
हिंदी अनुवाद
इस पाठ में संस्कृत साहित्य से संग्रहित विभिन्न सुक्तियों को प्रस्तुत किया गया है, जो जीवन के मूल्यों की शिक्षा देती हैं। ये सुक्तियाँ अथर्ववेद, कुमारसंभव, पंचतंत्र, उत्तररामचरित, नीतिशतक और किरातार्जुनीय से ली गई हैं। प्रत्येक सूक्ति मानव जीवन के किसी न किसी मूल्य का उपदेश देती है, जिससे जीवन समृद्ध और सुसंस्कृत बनता है।
१. माता भूभिः पुत्रोडहं पृथिव्याः
पृथिवी सर्वस्य माता इव पालति रक्षति च। अतः सर्वं विश्वं तस्याः सन्तानं संनादति। पृथिव्याः संरक्षणं सर्वदा कर्तव्यम्, यतः सा सर्वं विश्वं धारति।
हिंदी अनुवाद
पृथ्वी सभी की माता के समान पालन और रक्षा करती है। इसलिए समस्त विश्व उसका सन्तान है। पृथ्वी का संरक्षण हमेशा करना चाहिए, क्योंकि यह विश्व को धारण करती है।
२. न रतमन्चिष्यति, भृग्यते हि तत्
हीरकादिरत्नानि स्वयं ग्राहकान् नान्विषन्ति, किन्तु ग्राहकाः एव रत्नानाम् अन्वेषणं कुर्वन्ति। तथैव गुणवन्तः जनाः स्वयं प्रचारं न कुर्वन्ति, परं तेषां गुणाः स्वयमेव प्रकाशन्ति, येन ते समाजेन संनादति।
हिंदी अनुवाद
हीरे जैसे रत्न स्वयं ग्राहकों की खोज नहीं करते, बल्कि ग्राहक ही रत्नों की खोज करते हैं। उसी तरह गुणवान व्यक्ति स्वयं का प्रचार नहीं करते, उनके गुण स्वयं ही प्रकट होते हैं, जिससे वे समाज में पहचाने जाते हैं।
३. शरीरमायं खलु धर्मसाधनम्
शरीरं धर्मस्य प्रथमं साधनं भवति। स्वस्थं शरीरं रक्षित्वा एव धर्मः, कर्तव्यम्, अध्ययनं च सम्पाद्यते। अतः शरीरस्य रक्षा सर्वदा करणीया।
हिंदी अनुवाद
शरीर धर्म का प्रथम साधन है। स्वस्थ शरीर की रक्षा करके ही धर्म, कर्तव्य और अध्ययन को पूरा किया जा सकता है। इसलिए शरीर की रक्षा हमेशा करनी चाहिए।
४. क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत्
विद्या च धनं च क्षणेन कणेन च सङ्ग्रहणीयम्। समयस्य कणस्य च सङ्कलनं निरन्तरं कृत्वा एव जीवनस्य समृद्धिः सम्भवति। यः समयस्य धनस्य च नाशं करोति, सः न विद्यायां न धने समृद्धति।
हिंदी अनुवाद
विद्या और धन को क्षण-क्षण और कण-कण करके संग्रह करना चाहिए। समय और धन का निरंतर संचय करके ही जीवन में समृद्धि संभव है। जो समय और धन का नाश करता है, वह न विद्या में न धन में समृद्ध होता है।
५. सुखार्थिनः कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम्
यः सुखमेव इच्छति, आलस्यं च करोति, सः विद्यां न प्राप्नोति। यः तु विद्यां प्राप्नोति, सः परिश्रमं कृत्वा सुखं लभति। विद्या परिश्रमेण एव प्राप्यते।
हिंदी अनुवाद
जो केवल सुख की इच्छा करता है और आलस्य करता है, वह विद्या प्राप्त नहीं कर सकता। जो विद्या प्राप्त करना चाहता है, उसे परिश्रम करके सुख प्राप्त होता है। विद्या परिश्रम से ही प्राप्त होती है।
६. गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्गं न च वयः
गुणवन्तः एव सर्वदा पूज्यन्ते, न तु लिङ्गं वा वयः। गुणवान् पुरुषः, स्त्री, बालः, युवा वा सर्वदा आदरणीयः। गुणानां महत्त्वं सर्वत्र संनादति।
हिंदी अनुवाद
गुणवान व्यक्ति ही हमेशा पूजनीय होता है, न कि लिंग या आयु। गुणवान पुरुष, स्त्री, बालक या युवा, सभी सम्माननीय होते हैं। गुणों का महत्व सर्वत्र व्याप्त है।
७. आ बूहि दीर्घं वचः
समाजे सर्वं न समानं भवति। यः दीनं वचः वदति, सः समाजेन संनादति। किन्तु यः हितं मनोहरं च वदति, सः सदा आदरणीयः भवति।
हिंदी अनुवाद
समाज में सभी समान नहीं होते। जो दीन वचन बोलता है, वह समाज में पहचाना जाता है। किन्तु जो हितकारी और मनोहर वचन बोलता है, वह सदा सम्मानित होता है।
८. यस्तु क्रियावान् पुरुषः स विद्वान्
विद्या केवलं पठनेन न सम्पाद्यते। यः ज्ञानं व्यवहारे च प्रयोगति, सः एव सत्यं विद्वान् भवति। क्रिया विना ज्ञानं निष्फलं भवति।
हिंदी अनुवाद
विद्या केवल पढ़ने से प्राप्त नहीं होती। जो ज्ञान को व्यवहार में प्रयोग करता है, वही सच्चा विद्वान होता है। क्रिया के बिना ज्ञान निष्फल होता है।
९. शीलं परं भूषणम्
मनुष्यस्य शीलं एव तस्य सर्वश्रेष्ठं आभूषणं भवति। सदाचारं विना सर्वं निष्फलं भवति। शीलवान् जनः सर्वदा सम्मानितः भवति।
हिंदी अनुवाद
मनुष्य का शील ही उसका सर्वश्रेष्ठ आभूषण है। सदाचार के बिना अन्य सभी गुण निष्फल होते हैं। शीलवान व्यक्ति हमेशा सम्मानित होता है।
१०. हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः
हितकरं च मनोहरं च वचनं दुर्लभं भवति। यद् वचनं हितं न भवति, तद् केवलं मनोहरं भवति, तद् च यद् मनोहरं न भवति, तद् केवलं हितं भवति। उभयं संनादति यत् दुर्लभं भवति।
हिंदी अनुवाद
हितकारी और मनोहर वचन दुर्लभ होता है। जो वचन हितकारी नहीं होता, वह केवल मनोहर होता है, और जो मनोहर नहीं होता, वह केवल हितकारी होता है। दोनों का संयोजन दुर्लभ होता है।
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