अन्नाद् भवन्ति भूतानि
सारांश
अस्मिन् पाठे भारतीयदर्शनशास्त्रस्य सृष्ट्युत्पत्तिविषयकः गहनः विचारः प्रस्तुतः, यः प्राचीनवैदिकज्ञानस्य आधुनिकवैज्ञानिकदृष्टिकोणेन संनादति। भारतवर्षस्य प्राचीनं ज्ञानं संस्कृतभाषायां संस्कृतौ च आधारितं संनादति, यया विश्वस्य विभिन्नं क्षेत्रेषु योगदानं कृतम्। संस्कृतिः कृत्तिविज्ञानं, गणितं, खगोलविज्ञानं, भूगोलशास्त्रं, आयुर्वेदं, संगीतं, नाट्यं, शिल्पकलां, वास्तुशास्त्रं, नीतिशास्त्रं, धर्मशास्त्रं, तर्कशास्त्रं, सौन्दर्यशास्त्रं, पाकशास्त्रं, समयनशास्त्रं, लोहशास्त्रं च समृद्धं कृतवती। भारतीयदर्शनशास्त्रे सृष्टेः उत्पत्तिविषये वैदिकं लौकिकं च विचारं संनादति, यत्र सृष्टिक्रमः क्रमशः विवृतः।
हिंदी अनुवाद
इस नौवें पाठ में भारतीय दर्शनशास्त्र के सृष्टि उत्पत्ति से संबंधित गहन विचार प्रस्तुत किए गए हैं, जो प्राचीन वैदिक ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ जोड़ता है। भारत का प्राचीन ज्ञान संस्कृत भाषा और संस्कृति पर आधारित है, जिसने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारतीय संस्कृति ने कृषि विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, भूगोल शास्त्र, आयुर्वेद, संगीत, नाट्य, शिल्पकला, वास्तुशास्त्र, नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र, तर्कशास्त्र, सौंदर्यशास्त्र, पाकशास्त्र, रसायनशास्त्र, धातुशास्त्र आदि को समृद्ध किया है। भारतीय दर्शनशास्त्र में सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में वैदिक और लौकिक विचार उपलब्ध हैं, जिनमें सृष्टि का क्रम विस्तार से वर्णित है।
पाठस्य प्रारम्भे भारतस्य प्राचीनं योगदानं वर्णितं, यत्र कृत्तिवुनयः, विद्वांसः, गणितज्ञाः, खगोलविज्ञानिनः, आयुर्वेदाचार्याः, संगीतनाट्यविशारदाः, वास्तुशिल्पिनः, नीतिशास्त्रज्ञाः, धर्मशास्त्रपण्डिताः च विश्वेन यशः संनादति। अधुना संस्कृत्याधारेण वैज्ञानिकाः शोधं कुर्वन्ति। पाठे माता-पुत्र्योः संनादति, यत्र पुत्री सृष्ट्युत्पत्तिविषये जिज्ञासति। पुत्री प्रश्नति यत् मनुष्याः, प्राणिनः, कीटाः च कथं भूलोके आगताः। माता तस्याः जिज्ञासां शमति, यया सृष्टिक्रमः क्रमेण व्याख्यातः।
हिंदी अनुवाद
पाठ की शुरुआत में भारत के प्राचीन योगदान का वर्णन है, जिसमें कृषि विशेषज्ञ, विद्वान, गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, आयुर्वेदाचार्य, संगीत और नाट्य के विद्वान, वास्तुशिल्पी, नीतिशास्त्र के जानकार, धर्मशास्त्र के पंडित आदि विश्व में प्रसिद्ध हुए। आज भी संस्कृति के आधार पर वैज्ञानिक शोध कार्य कर रहे हैं। पाठ में माता और पुत्री के बीच संनादति है, जिसमें पुत्री सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में जिज्ञासा व्यक्त करती है। वह पूछती है कि मनुष्य, प्राणी और कीट भूलोक पर कैसे आए। माता उसकी जिज्ञासा को शांत करती है और सृष्टि क्रम को क्रमबद्ध रूप से समझाती है।
प्रथमं ब्रह्मणः (चेतनाशक्तेः वा ऊर्जायाः) आकाशस्य उत्पत्तिः अभवत्। ब्रह्म सर्वं विश्वं व्याप्तं, यथा आकाशः सर्वत्र संनादति। आकाशात् वायुः उत्पन्नः, यः सर्वं गतिशीलं करोति। वायोः अग्निः उत्पन्नः, यः ऊर्जायाः प्रतीकः। अग्नेः जलं संनादति, यद् जीवनस्य आधारः। जलात् पृथिवी उत्पन्ना, या सर्वं धारति। पृथिव्याः ओषधयः, सस्यानि, वृक्षाः च उत्पन्नानि, यानि जीवनस्य पोषणं कुर्वन्ति। ओषधीभ्यः आहारस्य उत्पत्तिः अभवत्, यः सर्वं प्राणिनां जीवनस्य मूलं भवति। अन्ते, आहारात् कीटाः, प्राणिनः, मनुष्याः च उत्पन्नाः। अयं सृष्टिक्रमः तैत्तिरीयोपनिषदि (२-१-२) स्पष्टं वर्णितः, यत्र सर्वं विश्वं क्रमशः संनादति।
हिंदी अनुवाद
सबसे पहले ब्रह्म (चेतना शक्ति या ऊर्जा) से आकाश की उत्पत्ति हुई। ब्रह्म सर्वत्र व्याप्त है, जैसे आकाश हर जगह मौजूद है। आकाश से वायु उत्पन्न हुई, जो गति का आधार है। वायु से अग्नि उत्पन्न हुई, जो ऊर्जा का प्रतीक है। अग्नि से जल उत्पन्न हुआ, जो जीवन का आधार है। जल से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई, जो सब कुछ धारण करती है। पृथ्वी से औषधियाँ, फसलें और वृक्ष उत्पन्न हुए, जो जीवन का पोषण करते हैं। औषधियों से आहार की उत्पत्ति हुई, जो सभी प्राणियों के जीवन का मूल है। अंत में, आहार से कीट, प्राणी और मनुष्य उत्पन्न हुए। यह सृष्टि क्रम तैत्तिरीयोपनिषद् (२-१-२) में स्पष्ट रूप से वर्णित है, जिसमें विश्व का क्रमबद्ध विकास दर्शाया गया है।
पुत्री पुनः प्रश्नति यत् माता एतत् सर्वं कथं जानाति। माता कथति यत् सा उपनिषद्ग्रन्थान्, आधुनिकरसायनशास्त्रं च पठितवती। उपनिषद्ग्रन्थाः भारतीयस्य मौलिकं ज्ञानं संनादति, येन जीवनस्य उत्कर्षः सम्भवति। माता पुत्रीं प्रेरति यत् सा उपनिषद्ग्रन्थान् पठेत्, येन सा विश्वस्य उत्पत्तिविषये सम्यक् ज्ञानं प्राप्नोति।
हिंदी अनुवाद
पुत्री फिर पूछती है कि माता यह सब कैसे जानती है। माता बताती है कि उसने उपनिषद् ग्रंथों और आधुनिक रसायनशास्त्र का अध्ययन किया है। उपनिषद् ग्रंथ भारतीय मूलभूत ज्ञान को समेटे हुए हैं, जिनके अध्ययन से जीवन का उत्कर्ष संभव है। माता पुत्री को प्रेरित करती है कि वह भी उपनिषद् ग्रंथों का अध्ययन करे, ताकि वह विश्व की उत्पत्ति के बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सके।
पाठे शब्दार्थाः, व्याकरणं, प्रश्नोत्तरं च संनादति। शब्दार्थेषु ‘वत्से’ (पुत्रि), ‘अग्नेः’ (अग्नितः), ‘विस्मृतवती’ (विस्मरणं कृतवती), ‘ओषधीनाम्’ (औषधीनां), ‘पठनीयम्’ (पठितव्यम्), ‘समयनशास्त्रम्’ (रसायनशास्त्रम्) इत्यादयः स्पष्टं व्याख्याताः। व्याकरणे शब्दानां एकवचन-द्विवचन-बहुवचनरूपं, प्रश्ननिर्माणं, वाक्यानां अनुवादं च शिक्षति। कार्यकलापरूपेण छात्राः संस्कृतवाक्यानां मातृभाषायां अनुवादं कुर्वन्तु, शब्दानां रूपं लिखन्तु, संनादति। प्रश्नोत्तरेषु सृष्टिक्रमस्य विभिन्नं पक्षाः पृष्टाः, यथा कस्याः उत्पत्तिः कस्मात् अभवत्, माता किं पठितवती इत्यादि।
हिंदी अनुवाद
पाठ में शब्दार्थ, व्याकरण और प्रश्नोत्तर शामिल हैं। शब्दार्थ में ‘वत्से’ (बेटी), ‘अग्नेः’ (अग्नि से), ‘विस्मृतवती’ (भूल गई), ‘ओषधीनाम्’ (औषधियों का), ‘पठनीयम्’ (पढ़ना चाहिए), ‘समयनशास्त्रम्’ (रसायनशास्त्र) आदि की स्पष्ट व्याख्या की गई है। व्याकरण में शब्दों के एकवचन, द्विवचन, बहुवचन रूप, प्रश्न निर्माण और वाक्यों का अनुवाद सिखाया गया है। कार्यकलाप के रूप में छात्रों को संस्कृत वाक्यों का मातृभाषा में अनुवाद करने और शब्दों के रूप लिखने का निर्देश दिया गया है। प्रश्नोत्तर में सृष्टि क्रम के विभिन्न पहलुओं पर सवाल पूछे गए हैं, जैसे कि किसकी उत्पत्ति किससे हुई, माता ने क्या पढ़ा आदि।
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