अवलोकन (Overview)
- यह अध्याय एक काल्पनिक गाँव “पालमपुर” की कहानी पर आधारित है।
- उद्देश्य है – उत्पादन से संबंधित मूल विचारों को समझना।
- गाँव में खेती मुख्य कार्य है, परंतु लघु उद्योग, डेयरी, परिवहन आदि भी सीमित रूप में किए जाते हैं।
- उत्पादन क्रियाओं के लिए आवश्यक संसाधन हैं:भूमि, श्रम, पूँजी, और उद्यम (ज्ञान)।
- यह अध्याय हमें बताता है कि एक गाँव में ये संसाधन कैसे मिलकर वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं।
पालमपुर गाँव का परिचय
- पालमपुर एक अच्छी तरह जुड़ा हुआ गाँव है, जो सड़कों द्वारा पास के कस्बों रायगंज (3 किमी) और शाहपुर से जुड़ा है।
- इस सड़क पर बैलगाड़ियाँ, ट्रक, ट्रैक्टर, जीप, मोटरसाइकिल आदि चलते हैं।
- गाँव में लगभग 450 परिवार रहते हैं।
- 80 परिवार (उच्च जाति के) अधिकतर भूमि के स्वामी हैं।
- अनुसूचित जाति (दलित) के लोग गाँव के कोने में छोटे मकानों में रहते हैं।
- अधिकांश घरों में बिजली है, जिससे खेतों में नलकूप चलाए जाते हैं।
- गाँव में सुविधाएँ –
- दो प्राथमिक विद्यालय
- एक हाई स्कूल
- एक राजकीय स्वास्थ्य केंद्र और एक निजी औषधालय।
- पालमपुर में सड़कों, परिवहन, बिजली, सिंचाई, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
उत्पादन का संगठन
उत्पादन का उद्देश्य:
- लोगों की आवश्यकताओं की वस्तुएँ और सेवाएँ पैदा करना।
उत्पादन के चार मुख्य कारक:
- भूमि – प्राकृतिक संसाधन (जल, वन, खनिज)।
- श्रम – कार्य करने वाले लोग।
- कुछ कार्यों में उच्च शिक्षित कर्मियों की आवश्यकता।
- कुछ में शारीरिक श्रम की आवश्यकता।
- पूँजी –
- (क) स्थायी पूँजी: औज़ार, मशीनें, भवन (लंबे समय तक उपयोगी)।
- (ख) कार्यशील पूँजी: कच्चा माल, नकद पैसा (उत्पादन में समाप्त हो जाती है)।
- उद्यम या ज्ञान (मानव पूँजी) – भूमि, श्रम और पूँजी का समायोजन करने की क्षमता।
पालमपुर में खेती
1. भूमि स्थिर है
- खेती उत्पादन की प्रमुख क्रिया है।
- 75% लोग खेती से अपनी जीविका चलाते हैं।
- भूमि का क्षेत्र स्थिर (स्थायी) है – 1960 से कोई विस्तार नहीं हुआ।
- भूमि माप की मानक इकाई = हेक्टेयर।
- नए खेत बनाने की कोई संभावना नहीं है।
2. भूमि से अधिक उत्पादन कैसे करें?
(क) बहुफसली प्रणाली (Multiple Cropping)
- एक ही भूमि पर एक वर्ष में एक से अधिक फसलें उगाना।
- पालमपुर के किसान तीन फसलें उगाते हैं:
- खरीफ़ (बरसात) – ज्वार, बाजरा
- अक्टूबर-दिसंबर – आलू
- रबी (सर्दी) – गेहूँ
- कुछ खेतों में गन्ना भी।
- अच्छी सिंचाई व्यवस्था के कारण यह संभव हुआ।
(ख) सिंचाई की आधुनिक व्यवस्था
- बिजली आने के बाद कुओं की जगह बिजली से चलने वाले नलकूप।
- 1970 के दशक तक पूरे 200 हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई होने लगी।
- भारत में अभी भी कुल कृषि क्षेत्र का 40% से कम हिस्सा सिंचित है।
- एक भूमि पर कई फसलें लेने की इस पद्धति को बहुविध फसल प्रणाली कहते हैं।
3. आधुनिक कृषि विधियाँ
- 1960 के दशक में हरित क्रांति के दौरान शुरू हुईं।
- उपयोग –
- अधिक उपज वाले बीज (HYV)
- रासायनिक उर्वरक
- कीटनाशक
- सिंचाई व मशीनें
- परिणाम:
- पालमपुर में गेहूँ की उपज 1300 किग्रा/हेक्टेयर से बढ़कर 3200 किग्रा/हेक्टेयर हुई।
- उत्पादन और बिक्री दोनों बढ़े।
- लेकिन इन बीजों के लिए बहुत अधिक पानी और पूँजी की आवश्यकता होती है।
- आधुनिक कृषि छोटे किसानों के लिए कठिन सिद्ध हुई क्योंकि उन्हें अधिक नकद पूँजी चाहिए।
खेती और पर्यावरण
- आधुनिक कृषि से मिट्टी की उर्वरता घटती है।
- भौम जल स्तर कम हो रहा है।
- रासायनिक उर्वरक मिट्टी के सूक्ष्मजीवों को नष्ट करते हैं।
- जल प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है।
- सतत विकास के लिए पर्यावरण की संरक्षा और सावधानीपूर्वक प्रयोग आवश्यक है।
भूमि का वितरण (Distribution of Land)
| वर्ग | भूमि की स्थिति | विशेषता |
|---|---|---|
| भूमिहीन (150 परिवार) | कोई भूमि नहीं | अधिकतर दलित |
| छोटे किसान (240 परिवार) | < 2 हेक्टेयर | कम आय |
| मझोले व बड़े किसान (60 परिवार) | > 2 हेक्टेयर | कुछ के पास 10 हेक्टेयर से अधिक भूमि |
- भूमि असमान रूप से वितरित है।
- छोटे किसान और भूमिहीन लोग गरीबी झेलते हैं।
- बड़े किसान अधिशेष अनाज बेचकर अधिक आय प्राप्त करते हैं।
श्रम की व्यवस्था
- खेती में परिश्रम की अधिक आवश्यकता होती है।
- छोटे किसान – परिवार के सदस्य ही काम करते हैं।
- बड़े किसान – मजदूरों को किराये पर रखते हैं।
- मजदूरी – नकद, अनाज या भोजन के रूप में दी जाती है।
- मार्च 2019 में न्यूनतम मजदूरी ₹300/दिन, पर पालमपुर में मजदूरों को केवल ₹160 मिलते हैं।
- अधिक श्रमिक – कम काम की स्थिति से गरीबी बढ़ती है।
- डाला और रामकली जैसे खेतिहर मजदूर गरीबी व बेरोजगारी से पीड़ित हैं।
खेती के लिए पूँजी की व्यवस्था
(क) छोटे किसान
- स्वयं पूँजी नहीं जुटा पाते।
- साहूकार या बड़े किसानों से ऊँचे ब्याज पर कर्ज लेते हैं।
- उदाहरण – सविता की कहानी:
- सविता को 1 हेक्टेयर गेहूँ की खेती के लिए ₹3000 की आवश्यकता थी।
- उसने तेजपाल सिंह से 24% ब्याज पर ऋण लिया।
- शर्त – सविता को कटाई के समय तेजपाल के खेत में ₹100 प्रतिदिन मजदूरी करनी होगी।
- यह मजदूरी बहुत कम थी, पर उसे कर्ज की जरूरत थी।
(ख) मझोले और बड़े किसान
- अपनी बचत से पूँजी की व्यवस्था करते हैं।
- अधिशेष गेहूँ बेचकर कमाई करते हैं और वही बचत पुनः निवेश करते हैं।
अधिशेष कृषि उत्पादों की बिक्री
- छोटे किसान – उत्पादन का अधिकांश भाग परिवार के उपयोग में लगाते हैं।
- बड़े किसान – अधिशेष अनाज बाजार में बेचते हैं (जैसे रायगंज की मंडी में)।
- उदाहरण – तेजपाल सिंह
- 350 क्विंटल अधिशेष गेहूँ बेचकर कमाई करता है।
- बचत से नया ट्रैक्टर खरीदने की योजना बनाता है।
- किसान अपनी बचत को खेती या अन्य कार्यों में निवेश करते हैं।
पालमपुर में गैर-कृषि गतिविधियाँ
1. डेयरी
- कई परिवार भैंसें पालते हैं और दूध बेचते हैं।
- दूध रायगंज के दूध संग्रहण केंद्र में बेचा जाता है।
2. लघु विनिर्माण
- लगभग 50 लोग छोटे उद्योगों में कार्यरत।
- उदाहरण – मिश्रीलाल ने बिजली से चलने वाली गन्ना पेरने की मशीन खरीदी।
- गन्ने से गुड़ बनाकर शाहपुर के व्यापारियों को बेचता है।
- थोड़ी पूँजी और पारिवारिक श्रम से कार्य करता है।
3. व्यापार
- गाँव में छोटे जनरल स्टोर और खाद्य पदार्थों की दुकानें हैं।
- उदाहरण – करीम ने गाँव में कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र खोला, जिसमें दो महिलाओं को काम दिया।
4. परिवहन
- पालमपुर और रायगंज के बीच सड़क पर रिक्शा, जीप, ट्रक, ट्रैक्टर आदि चलते हैं।
- उदाहरण – किशोर की कहानी
- खेतिहर मजदूर था, बैंक से सस्ते कर्ज से भैंस खरीदी।
- दूध बेचने और सामान ढोने लगा।
- अब पहले से अधिक कमाई करता है।
- स्थायी पूँजी – भैंस व भैंसागाड़ी।

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