खाद्य सुरक्षा क्या है?
खाद्य सुरक्षा का अर्थ है – सभी लोगों के लिए हर समय भोजन की उपलब्धता, पहुँच और सामर्थ्य।इसका मतलब केवल दो जून की रोटी नहीं, बल्कि पोषक, सुरक्षित और पर्याप्त भोजन की गारंटी है।
खाद्य सुरक्षा के तीन आयाम :
- उपलब्धता (Availability) – देश में खाद्य उत्पादन, आयात और सरकारी भंडारों में स्टॉक।
- पहुँच (Accessibility) – हर व्यक्ति को भोजन तक पहुँच हो।
- सामर्थ्य (Affordability) – लोगों के पास इतना धन हो कि वे पौष्टिक भोजन खरीद सकें।
खाद्य सुरक्षा तभी सुनिश्चित होती है जब –
- सभी के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध हो।
- हर व्यक्ति उसे खरीद सके।
- उसकी उपलब्धता में कोई रुकावट न हो।
खाद्य सुरक्षा क्यों आवश्यक है?
- निर्धन वर्ग हमेशा खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हो सकता है।
- आपदा जैसे सूखा, बाढ़, भूकंप, फसल खराबी, महामारी (जैसे कोविड-19) आदि में संपन्न लोग भी प्रभावित हो सकते हैं।
- 1943 का बंगाल का अकाल भारत का सबसे भयानक अकाल था – लगभग 30 लाख लोग मरे।
खाद्य असुरक्षित कौन हैं?
खाद्य असुरक्षा से सबसे अधिक प्रभावित वर्ग :
- भूमिहीन मजदूर, छोटे किसान
- पारंपरिक दस्तकार और असंगठित कामगार
- दिहाड़ी मजदूर, भिखारी और निराश्रित
- शहरी गरीब जो अनियमित व कम वेतन वाले कार्य करते हैं
उदाहरण :
- रामू – खेतिहर मजदूर, जो बेरोज़गारी के महीनों में भोजन नहीं जुटा पाता।
- अहमद – रिक्शा चालक, जिसकी आय अस्थिर है परन्तु पी.डी.एस. (राशन कार्ड) से सहायता मिलती है।
खाद्य असुरक्षा के सामाजिक कारण
- अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़ी जातियों का कमजोर भूमि आधार
- प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोग
- महिलाओं व बच्चों में कुपोषण की समस्या
- आदिवासी, सुदूर एवं पिछड़े राज्यों में खाद्य असुरक्षा अधिक (जैसे बिहार, झारखंड, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि)
भुखमरी के प्रकार
- दीर्घकालिक भुखमरी – लगातार अपर्याप्त आहार के कारण।
- मौसमी भुखमरी – कृषि या मजदूरी के मौसम पर निर्भर।
- ग्रामीण क्षेत्रों में फसल के चक्र के कारण।
- शहरी क्षेत्रों में अनियमित कार्य के कारण।
स्वतंत्रता के बाद की खाद्य नीति
- भारत ने हरित क्रांति (Green Revolution) के माध्यम से खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त की।
- गेहूँ क्रांति (1968) – प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा डाक टिकट जारी।
- आज भारत अनाज उत्पादन में अग्रणी है (252 से 275 करोड़ टन तक उत्पादन)।
भारत में खाद्य सुरक्षा व्यवस्था
खाद्य सुरक्षा व्यवस्था के दो मुख्य घटक हैं :
- बफ़र स्टॉक (Buffer Stock)
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System – PDS)
बफ़र स्टॉक
- सरकार भारतीय खाद्य निगम (FCI) के माध्यम से गेहूँ व चावल की खरीद करती है।
- खरीद किसानों से न्यूनतम समर्थित कीमत (MSP) पर होती है।
- यह अनाज अन्न भंडारों में रखा जाता है ताकि आपदा या कमी के समय वितरण हो सके।
- वितरण की कीमत को निर्गम कीमत कहा जाता है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS)
- सरकार द्वारा विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से अनाज, चीनी, मिट्टी का तेल आदि कम कीमत पर उपलब्ध कराए जाते हैं।
- देशभर में लगभग 5.5 लाख राशन दुकानें हैं।
राशन कार्ड के प्रकार :
- अंत्योदय कार्ड (AAY) – सबसे निर्धन परिवारों के लिए।
- बी.पी.एल. कार्ड – निर्धनता रेखा से नीचे के परिवार।
- ए.पी.एल. कार्ड – निर्धनता रेखा से ऊपर के परिवार।
खाद्य योजनाएँ और अधिनियम
| योजना | आरंभ वर्ष | लक्षित समूह | प्रमुख विशेषता |
|---|---|---|---|
| सार्वजनिक वितरण प्रणाली | 1992 तक | सर्वजन | गेहूँ 2.34 रु./किग्रा., चावल 2.89 रु./किग्रा. |
| संशोधित पी.डी.एस. | 1992 | पिछड़े ब्लॉक | 20 किग्रा. खाद्यान्न कम कीमत पर |
| लक्षित पी.डी.एस. | 1997 | बी.पी.एल./ए.पी.एल. | निर्धनों हेतु भिन्न कीमत नीति |
| अंत्योदय अन्न योजना | 2000 | सबसे निर्धन | 35 किग्रा. अनाज बहुत कम दरों पर |
| अन्नपूर्णा योजना | 2000 | वृद्ध निर्धन | 10 किग्रा. खाद्यान्न निःशुल्क |
| राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम | 2013 | योग्य परिवार | प्रति व्यक्ति 5 किग्रा. अनाज – 1 से 3 रु./किग्रा. |
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की समस्याएँ
- गोदामों में अनाज सड़ना और बर्बादी
- भ्रष्टाचार – दुकानदारों द्वारा अनाज की कालाबाज़ारी
- राशन दुकानों का सीमित समय तक खुलना
- गरीबों के लिए पर्याप्त मात्रा में अनाज न मिलना
सहकारी समितियों की भूमिका
- दक्षिण और पश्चिम भारत में सहकारी समितियाँ खाद्य सुरक्षा में मदद करती हैं।
- तमिलनाडु – 94% राशन दुकानें सहकारी समितियों द्वारा संचालित।
- दिल्ली – मदर डेयरी सस्ते दर पर दूध व सब्ज़ियाँ देती है।
- गुजरात – अमूल (श्वेत क्रांति का उदाहरण)।
- महाराष्ट्र – एडीएस द्वारा “अनाज बैंक” कार्यक्रम चलाया जा रहा है।

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