1. घुमंतू चरवाहे और उनकी आवाजाही
अर्थ
- घुमंतू चरवाहे वे लोग हैं जो किसी एक स्थान पर स्थायी रूप से नहीं रहते, बल्कि अपने मवेशियों के लिए चरागाहों की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते रहते हैं।
(क) पहाड़ों में चरवाहे
- गुज्जर-बकरवाल (जम्मू-कश्मीर):सर्दियों में निचली शिवालिक पहाड़ियों में, गर्मियों में कश्मीर की घाटियों में जाते हैं।
- गद्दी समुदाय (हिमाचल प्रदेश):सर्दियों में शिवालिक पहाड़ियों में और गर्मियों में लाहौल व स्पीति के ऊँचे इलाकों में रहते हैं।
- गढ़वाल-कुमाऊँ के गुज्जर:सर्दियों में भाबर क्षेत्र के जंगलों में और गर्मियों में बुग्याल के मैदानों में जाते हैं।
- भोटिया, शेरपा और किन्नौरी:ये भी मौसमी बदलाव के अनुसार चरागाह बदलते हैं।
2. महत्वपूर्ण बात:चरवाहों का यह लगातार बदलाव पर्यावरण के लिए लाभकारी था क्योंकि इससे चरागाहों को पुनर्जीवित होने का अवसर मिलता था।
(ख) पठारों, मैदानों और रेगिस्तानों में
- धंगर (महाराष्ट्र):बरसात में पठारों पर और सूखे मौसम में कोंकण क्षेत्र में रहते हैं।किसान उन्हें चावल देते थे, बदले में उनके जानवर खेतों में खाद डालते थे।
- गोल्ला, कुरुमा, कुरुबा (कर्नाटक व आंध्र):गाय-भैंस पालते थे और हाथ के बुने कम्बल बेचते थे।बरसात व सूखे के अनुसार स्थान बदलते थे।
- बंजारे:जानवरों के साथ घूम-घूमकर व्यापार करते थे – अनाज व चारे के बदले सामान बेचते थे।
- राइका (राजस्थान):ऊँट और भेड़-बकरी पालते थे।बारिश के बाद गाँव में रहते और सूखे में दूसरे इलाकों की ओर जाते थे।
2. औपनिवेशिक शासन और चरवाहों का जीवन
औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों के आने से चरवाहों की जीवनशैली में गहरे बदलाव आए।
(क) चरागाहों का सिमटना
- अंग्रेज़ सरकार ने परती जमीन को खेती योग्य बनाकर लगान बढ़ाने की नीति अपनाई।
- इससे चरागाह खत्म होने लगे और चरवाहों के लिए जगह कम पड़ गई।
(ख) वन अधिनियम
- कई जंगलों को ‘आरक्षित’ या ‘संरक्षित’ घोषित कर दिया गया।
- चरवाहों के प्रवेश पर रोक, परमिट की ज़रूरत और समय सीमा तय की गई।
(ग) अपराधी जनजाति अधिनियम (1871)
- घुमंतू समुदायों को “अपराधी” घोषित कर दिया गया।
- उन्हें निश्चित बस्तियों में बसाया गया और बिना अनुमति घूमने पर प्रतिबंध लगा।
(घ) चराई कर
- हर मवेशी पर टैक्स लगाया गया।
- बिना पास के कोई भी चरागाह में नहीं जा सकता था।
(परिणाम)
- चरागाहों की कमी से मवेशी कमजोर होने लगे।
- अकाल व चारे की कमी से बहुत से जानवर मर गए।
- कई चरवाहे खेती या मजदूरी करने लगे।
- कुछ ने जानवरों की संख्या घटाई, कुछ नए चरागाहों की खोज में गए।
3. अफ्रीका में चरवाहों का जीवन
1. प्रमुख समुदाय
बेदुईन, बरबर, मासाई, सोमाली, बोरान, तुर्काना आदि।ये अर्ध-शुष्क घासभूमियों और रेगिस्तानों में रहते हैं।
(क) मासाई समुदाय (कीनिया व तंजानिया)
- पहले बहुत बड़े इलाके में चरागाह थे।
- औपनिवेशिक शासन में अंग्रेज़ों और जर्मनों ने जमीन छीन ली।
- बेहतरीन चरागाह “गोरों की बस्तियों” और “शिकारगाहों” में बदल दिए गए।
- मासाइयों को सूखे इलाकों में सीमित कर दिया गया।
(ख) सीमाओं और परमिट की पाबंदियाँ
- अब चरवाहे बिना परमिट अपने जानवरों को दूसरे इलाकों में नहीं ले जा सकते थे।
- व्यापार और आवाजाही सीमित हो गई।
(ग) सूखे का असर
- सूखे में मवेशी मरने लगे क्योंकि वे हरे चरागाहों तक नहीं पहुँच सकते थे।
- 1933-34 के सूखे में आधे से ज्यादा जानवर खत्म हो गए।
(घ) समाज में परिवर्तन
- मासाई समाज में दो वर्ग थे – वरिष्ठ जन और योद्धा।
- औपनिवेशिक शासन ने उनके अधिकार घटा दिए।
- कुछ धनी मुखिया जमीनदार व व्यापारी बन गए।
- गरीब चरवाहे मजदूरी करने लगे।
- समाज में आर्थिक असमानता बढ़ी।
4. आधुनिक विश्व और चरवाहे
1.नए कानूनों और सीमाओं ने उनकी आवाजाही सीमित कर दी।
2.चरागाहों की कमी से मवेशियों की संख्या घटी।
3.फिर भी चरवाहों ने परिस्थितियों से सामंजस्य बनाया:
- रास्ते बदले
- जानवरों की संख्या घटाई
- खेती या व्यापार अपनाया
- सरकारी राहत के लिए प्रयास किए

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