अध्याय 2 – संविधान निर्माण
परिचय
- लोकतंत्र में नागरिकों और सरकार दोनों को कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है।
 - इन नियमों का समुच्चय संविधान कहलाता है।
 - संविधान देश का सर्वोच्च कानून है जो नागरिकों के अधिकार, सरकार की शक्ति और कामकाज के तरीके तय करता है।
 - इस अध्याय में यह समझाया गया है कि संविधान की ज़रूरत क्यों है, इसे कैसे बनाया जाता है और इसके मूल मूल्य क्या हैं।
 
2.1 दक्षिण अफ्रीका में लोकतांत्रिक संविधान
नेल्सन मंडेला और रंगभेद
. दक्षिण अफ्रीका में गोरों की सरकार ने रंगभेद (Apartheid) व्यवस्था लागू की थी।
. लोगों को चमड़ी के रंग के आधार पर बाँटा गया —
- गोरों, अश्वेतों (काले), रंगीनों (मिश्रित नस्ल) और भारतीय मूल के लोगों में।
 
. गोरों को विशेष अधिकार दिए गए, बाकी को भेदभाव और दमन का सामना करना पड़ा।
. नेल्सन मंडेला और अन्य नेताओं ने इस अन्याय के विरुद्ध आंदोलन चलाया।
. मंडेला को 1964 में आजीवन कारावास हुआ और 28 वर्ष जेल में रहे।
रंगभेद का अंत और नया संविधान
. संघर्ष बढ़ने पर सरकार ने भेदभावपूर्ण कानून खत्म किए।
. 1994 में दक्षिण अफ्रीका स्वतंत्र लोकतांत्रिक गणराज्य बना।
. मंडेला पहले राष्ट्रपति बने।
. अश्वेत नेताओं ने प्रतिशोध न लेकर समानता और मेल-मिलाप की नीति अपनाई।
. दो वर्षों की चर्चा के बाद दुनिया का एक उत्कृष्ट संविधान बना —
- सभी को समान अधिकार मिले।
 - किसी को भी बुरा या दुष्ट नहीं माना गया।
 - सबकी भागीदारी सुनिश्चित की गई।
 
. मंडेला ने कहा —
 “दक्षिण अफ्रीका का संविधान यह वायदा है कि हम अपने रंगभेदी, क्रूर इतिहास को दोहराने नहीं देंगे।”
2.2 हमें संविधान की ज़रूरत क्यों है?
संविधान की आवश्यकता
- दक्षिण अफ्रीका के उदाहरण से पता चलता है कि संविधान भरोसे और सहयोग का आधार होता है।
 - विभिन्न समूहों के बीच समझौते को लिखित रूप में बाँधने की आवश्यकता होती है।
 - संविधान यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी सरकार मनमानी न कर सके।
 
संविधान के प्रमुख कार्य
- विभिन्न समूहों के बीच भरोसा बनाना।
 - सरकार की संरचना और अधिकार तय करना।
 - सरकार की सीमाएँ और नागरिकों के अधिकार स्पष्ट करना।
 - समाज के आदर्शों और आकांक्षाओं को व्यक्त करना।
 
अन्य देशों के उदाहरण
- अमेरिका और फ्रांस ने स्वतंत्रता के बाद अपने-अपने लोकतांत्रिक संविधान बनाए।
 - हर लोकतांत्रिक देश के लिए संविधान का होना आवश्यक है।
 
2.3 भारतीय संविधान का निर्माण
🇮🇳 कठिन परिस्थितियाँ
- भारत विभाजन के बाद देश में हिंसा, विस्थापन और असुरक्षा का माहौल था।
 - संविधान निर्माताओं को वर्तमान और भविष्य दोनों की चिंता थी।
 
संविधान निर्माण की तैयारी
- आज़ादी से पहले ही लोकतंत्र और समानता जैसे विचारों पर सहमति बन चुकी थी।
 - 1928 में मोतीलाल नेहरू समिति और 1931 के कराची अधिवेशन ने संविधान की रूपरेखा दी थी।
 - ब्रिटिश शासन के दौरान विधायिकाओं में काम करने का अनुभव भारतीय नेताओं को संस्थाएँ बनाने में मददगार हुआ।
 - नेताओं ने विदेशी अनुभवों (ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, रूस) से प्रेरणा ली लेकिन उन्हें भारत की परिस्थितियों के अनुरूप ढाला।
 
संविधान सभा
- संविधान सभा के चुनाव जुलाई 1946 में हुए।
 - दिसंबर 1946 में पहली बैठक हुई।
 - विभाजन के बाद भारत की संविधान सभा में 299 सदस्य रहे।
 - संविधान 26 नवम्बर 1949 को पूरा हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
 - संविधान सभा का कार्य व्यवस्थित, खुला और सर्वसम्मति पर आधारित था।
 - डॉ. बी. आर. अंबेडकर प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे।
 - संविधान पर 114 दिनों तक चर्चा हुई और 2000 से अधिक संशोधन विचार में आए।
 
संविधान की वैधता
- संविधान सभा भारत के विभिन्न सामाजिक और भौगोलिक समूहों का प्रतिनिधित्व करती थी।
 - संविधान को जनता ने स्वीकार किया, इसलिए आज भी यह वैध और सम्मानित है।
 
2.4 भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्य
संविधान का दर्शन
भारतीय संविधान के पीछे का दर्शन स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों पर आधारित है।
इसके तीन प्रमुख विचारकों के उद्धरण —
- महात्मा गांधी: छुआछूत और वर्गभेद रहित भारत।
 - डॉ. अंबेडकर: राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समानता की आवश्यकता।
 - जवाहरलाल नेहरू: आज़ादी के साथ जिम्मेदारी और सबकी सेवा का संकल्प।
 
संविधान के आदर्श
- न्याय: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता।
 - स्वतंत्रता: विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता।
 - समता: सभी के लिए समान अवसर।
 - बंधुता: एकता, अखंडता और भाईचारे की भावना।
 

Leave a Reply