अध्याय 3 – चुनावी राजनीति
परिचय
- लोकतंत्र में लोग सीधे शासन नहीं करते, बल्कि अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन करते हैं।
 - चुनाव वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोग अपने प्रतिनिधि चुनते हैं।
 - चुनाव से जनता यह तय करती है कि किसे शासन करने का अधिकार दिया जाए।
 
3.1 चुनाव क्यों जरूरी हैं
हरियाणा के चुनाव (1987 का उदाहरण)
- हरियाणा में 1982 में कांग्रेस की सरकार थी।
 - चौधरी देवीलाल ने “न्याय युद्ध” आंदोलन चलाया और लोकदल पार्टी बनाई।
 - उन्होंने किसानों और छोटे व्यापारियों का कर्ज माफ़ करने का वायदा किया।
 - 1987 के चुनाव में लोकदल को भारी जीत मिली (90 में से 76 सीटें)।
 - देवीलाल मुख्यमंत्री बने और वायदे के अनुसार कर्ज माफी का आदेश दिया।
 - अगले चुनाव में (1991) उनकी पार्टी हार गई — जनता ने नया फैसला दिया।
 
→ इससे पता चलता है कि चुनाव से सरकार और नीतियाँ बदल सकती हैं।
चुनावों की आवश्यकता
- चुनाव के बिना लोकतंत्र नहीं चल सकता।
 - लोग सीधे हर निर्णय में भाग नहीं ले सकते, इसलिए वे अपने प्रतिनिधि चुनते हैं।
 - चुनाव से नागरिक अपनी पसंद के नेता, सरकार और नीति चुनते हैं।
 - चुनाव यह सुनिश्चित करते हैं कि जो नेता जनता को पसंद नहीं हैं, उन्हें बदला जा सके।
 
चुनाव को लोकतांत्रिक मानने के आधार
- सार्वभौमिक मताधिकार: हर वयस्क नागरिक को वोट देने का समान अधिकार।
 - विकल्पों की उपलब्धता: कई उम्मीदवार और दलों के बीच चुनाव।
 - नियमित अंतराल पर चुनाव: हर पाँच साल बाद चुनाव होना चाहिए।
 - जनता की इच्छा का सम्मान: जिसे लोग चाहें वही चुना जाए।
 - स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव: किसी दबाव या धोखाधड़ी के बिना मतदान।
 
राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का महत्व
- चुनावी प्रतियोगिता से नेताओं को जनता की सेवा करने की प्रेरणा मिलती है।
 - अगर नेता जनता की इच्छा के अनुसार काम नहीं करते तो अगला चुनाव हार जाते हैं।
 - यह व्यवस्था नेताओं को जवाबदेह बनाती है।
 - प्रतियोगिता के कारण जनता के पास विकल्प रहते हैं और सरकारें बदलती हैं।
 
3.2 भारत की चुनाव प्रणाली
(1) चुनाव क्षेत्र (Constituencies)
- देश को अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है।
 - प्रत्येक क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है।
 - लोकसभा के लिए 543 निर्वाचन क्षेत्र हैं।
 - प्रत्येक क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या लगभग समान रखी जाती है।
 
(2) आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र
- अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए विशेष सीटें आरक्षित हैं।
 - SC के लिए 84 और ST के लिए 47 लोकसभा सीटें आरक्षित हैं।
 - पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं और पिछड़े वर्गों के लिए भी आरक्षण है।
 
(3) मतदाता सूची (Voter List)
- 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के सभी नागरिकों को मत देने का अधिकार है।
 - हर चुनाव से पहले मतदाता सूची को सुधारा और नया किया जाता है।
 - फोटो पहचान-पत्र प्रणाली लागू की गई है ताकि धोखाधड़ी न हो।
 
(4) उम्मीदवारों का नामांकन
- 25 वर्ष से अधिक उम्र का कोई भी नागरिक चुनाव लड़ सकता है।
 - हर उम्मीदवार को नामांकन पत्र भरना और जमानत राशि जमा करनी होती है।
 - उम्मीदवार को अपने आपराधिक मामलों, संपत्ति और शिक्षा की जानकारी देना अनिवार्य है।
 
(5) चुनाव प्रचार (Election Campaign)
. मतदान से पहले दो सप्ताह का प्रचार काल होता है।
. नेता भाषण, रैलियाँ और जनसंपर्क करते हैं।
. प्रसिद्ध चुनावी नारे:
- “गरीबी हटाओ” – इंदिरा गांधी (1971)
 - “लोकतंत्र बचाओ” – जनता पार्टी (1977)
 - “जमीन जोतने वाले को” – वाम दल (1977)
 - “तेलुगु स्वाभिमान” – एन.टी. रामाराव (1983)
 
चुनावी आचार संहिता के नियम
उम्मीदवार या दल नहीं कर सकते:
- मतदाताओं को पैसे या उपहार देना।
 - धर्म या जाति के नाम पर वोट माँगना।
 - सरकारी संसाधनों का उपयोग।
 - तय सीमा से अधिक खर्च (लोकसभा ₹25 लाख, विधानसभा ₹10 लाख)।
 
मतदान और मतगणना
- चुनाव के दिन मतदाता मतदान केंद्र पर जाकर वोट डालते हैं।
 - पहले कागज़ी मतपत्र, अब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का प्रयोग।
 - सबसे अधिक वोट पाने वाला उम्मीदवार विजयी घोषित होता है।
 - मतगणना पारदर्शी ढंग से होती है, और परिणाम टीवी व अखबारों में घोषित होते हैं।
 
3.3 भारत में चुनाव क्यों लोकतांत्रिक हैं
स्वतंत्र चुनाव आयोग
- चुनाव आयोग एक स्वतंत्र और शक्तिशाली संस्था है।
 - मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं।
 - आयोग चुनाव की पूरी प्रक्रिया नियंत्रित करता है।
 - यह सरकार को निर्देश दे सकता है और आदर्श आचार संहिता लागू करता है।
 - यदि गड़बड़ी हो तो पुनर्मतदान का आदेश भी दे सकता है।
 
लोगों की भागीदारी
- भारत में मतदान प्रतिशत कई देशों से अधिक है।
 - गरीब, मजदूर, महिलाएँ और ग्रामीण लोग सक्रिय रूप से मतदान करते हैं।
 - लोग मानते हैं कि उनका वोट फर्क डाल सकता है।
 
चुनावी नतीजों की स्वीकृति
- भारत में हारने वाली पार्टियाँ भी चुनाव परिणाम स्वीकार करती हैं।
 - कई बार सत्ताधारी पार्टी हार जाती है — यह स्वतंत्र चुनाव का प्रमाण है।
 - इसलिए भारत के चुनाव लोकतांत्रिक और निष्पक्ष माने जाते हैं।
 
चुनावों की चुनौतियाँ
- धनबल का प्रभाव — अमीर उम्मीदवारों को बढ़त मिलती है।
 - अपराधी पृष्ठभूमि वाले नेताओं का चुनाव लड़ना।
 - कुछ परिवारों का राजनीति में वर्चस्व।
 - आम नागरिकों के पास सीमित विकल्प।
 - छोटे दलों और निर्दलीयों को कठिनाइयाँ।
 
चुनाव सुधार
- उम्मीदवारों की संपत्ति और आपराधिक विवरण सार्वजनिक करना।
 - चुनाव खर्च की सीमा तय करना और पारदर्शिता बढ़ाना।
 - मतदाता शिक्षा और भागीदारी बढ़ाना।
 - महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
 - चुनाव आयोग को और अधिक तकनीकी संसाधन व अधिकार देना।
 

Leave a Reply