अध्याय 4 – संस्थाओं का कामकाज
परिचय
- लोकतंत्र का अर्थ केवल चुनाव तक सीमित नहीं है।
- शासकों को भी कानूनों और संस्थाओं का पालन करना होता है।
- देश में निर्णय लेने, उन्हें लागू करने और विवादों को सुलझाने के लिए तीन प्रमुख संस्थाएँ होती हैं —
 विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका।
- ये तीनों मिलकर सरकार का संचालन करती हैं।
4.1 प्रमुख नीतिगत फैसले कैसे किए जाते हैं?
मंडल आयोग का उदाहरण (1990)
- 13 अगस्त 1990 को भारत सरकार ने एक कार्यालय ज्ञापन (Office Memorandum) जारी किया।
- इसमें कहा गया कि सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों (SEBC) को दिया जाएगा।
- पहले आरक्षण केवल अनुसूचित जाति (SC) और जनजाति (ST) को मिलता था।
फैसला कैसे लिया गया
- यह आदेश किसी एक अधिकारी ने नहीं, बल्कि पूरी सरकार ने मिलकर तय किया।
- निर्णय की प्रक्रिया —
- प्रधानमंत्री और कैबिनेट ने प्रस्ताव पारित किया।
- प्रधानमंत्री ने संसद में घोषणा की।
- कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय ने औपचारिक आदेश जारी किया।
फैसले से उत्पन्न विवाद
- कुछ लोगों ने इस नीति का समर्थन किया (समानता के अवसर के लिए)।
- कुछ लोगों ने विरोध किया (योग्य उम्मीदवारों के अवसर छिनने की आशंका)।
- मामला सुप्रीम कोर्ट में गया — इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार मामला (1992)।
- सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को सही ठहराया लेकिन कहा कि “अति-संपन्न पिछड़े वर्गों” को इसका लाभ न मिले।
संस्थाओं की आवश्यकता
- देश चलाने के लिए अनेक निर्णय, योजनाएँ और जिम्मेदारियाँ होती हैं — सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि।
- इसके लिए अलग-अलग संस्थाएँ जरूरी हैं ताकि कार्य स्पष्ट रूप से बँटे रहें।
- लोकतंत्र संस्थाओं के सहारे चलता है।
प्रमुख संस्थाएँ
- प्रधानमंत्री और कैबिनेट — नीतिगत निर्णय लेते हैं।
- नौकरशाही (सिविल सर्विस) — निर्णयों को लागू करती है।
- सर्वोच्च न्यायालय — विवादों का समाधान करता है।
4.2 संसद (Legislature)
संसद की आवश्यकता
- संसद जनता के प्रतिनिधियों की संस्था है।
- यह जनता की ओर से राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग करती है।
संसद के मुख्य कार्य
- कानून बनाना (विधायिका का कार्य)।
- सरकार पर नियंत्रण रखना।
- सार्वजनिक धन के उपयोग की मंजूरी देना।
- राष्ट्रीय नीतियों पर चर्चा और बहस करना।
संसद की संरचना
- भारत की संसद में तीन भाग हैं —
- राष्ट्रपति
- लोकसभा (House of the People)
- राज्यसभा (Council of States)
लोकसभा और राज्यसभा में अंतर
बिंदु लोकसभा राज्यसभा
सदस्य संख्या 545 सदस्य (अधिकतम) 250 सदस्य (अधिकतम)
चुनाव सीधे जनता द्वारा राज्य विधानसभाओं द्वारा
कार्यकाल 5 वर्ष स्थायी सदन(हर 2 वर्ष में 1/3 सदस्य सेवानिवृत्त)
प्रभाव अधिक प्रभावशाली सदन कम प्रभावशाली (विशेष अधिकार राज्यों से संबंधित मामलों में)
लोकसभा की विशेष शक्तियाँ
1. पैसे के मामलों में विशेष अधिकार।
- राज्यसभा केवल सुझाव दे सकती है।
2. सरकार के प्रति जवाबदेही।
- प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद् लोकसभा के प्रति उत्तरदायी हैं।
- यदि लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव गिर जाए, तो सरकार गिर जाती है।
राजनैतिक बनाम स्थायी कार्यपालिका
तुलना राजनैतिक कार्यपालिका स्थायी कार्यपालिका
चयन जनता द्वारा चुनी जाती है नियुक्त की जाती है
कार्यकाल अस्थायी (पद से हट सकते हैं) दीर्घकालिक
उदाहरण प्रधानमंत्री, मंत्री सचिव, जिलाधीश
कार्य नीतियाँ बनाना नीतियाँ लागू करना
प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद्
- प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान कार्यकारी होता है।
- राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है।
- प्रधानमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति होती है।
- तीन प्रकार के मंत्री होते हैं —
- कैबिनेट मंत्री — प्रमुख मंत्रालयों के प्रमुख।
- राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) — छोटे मंत्रालयों के प्रमुख।
- राज्य मंत्री — कैबिनेट मंत्री की सहायता करते हैं।
प्रधानमंत्री के अधिकार
- कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
- मंत्रालयों में कार्यों का समन्वय करता है।
- मंत्रियों की नियुक्ति और बर्खास्तगी कर सकता है।
- देश की नीतियों की दिशा तय करता है।
- प्रधानमंत्री का पद कैबिनेट में सबसे शक्तिशाली होता है।
गठबंधन राजनीति का प्रभाव
- गठबंधन सरकारों में प्रधानमंत्री को अन्य दलों की राय माननी पड़ती है।
- इसलिए उसके अधिकार कुछ सीमित हो जाते हैं।
राष्ट्रपति की भूमिका
- राष्ट्रपति राष्ट्र का औपचारिक प्रमुख (Head of State) है।
- राष्ट्रपति सभी सरकारी कार्य अपने नाम से करता है, परंतु वास्तविक अधिकार मंत्रिपरिषद् के पास होते हैं।
- राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर काम करता है।
राष्ट्रपति की शक्तियाँ:
- सभी प्रमुख नियुक्तियाँ करता है — न्यायाधीश, राज्यपाल, चुनाव आयुक्त आदि।
- विधेयकों पर हस्ताक्षर करके उन्हें कानून बनाता है।
- संसद द्वारा पारित विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है।
- अगर संसद दोबारा पास करे तो उसे मंजूरी देनी होती है।
राष्ट्रपति प्रणाली बनाम संसदीय प्रणाली
बिंदु राष्ट्रपति प्रणाली (जैसे अमेरिका) संसदीय प्रणाली (भारत)
प्रमुख राष्ट्रपति ही राष्ट्राध्यक्ष और सरकार प्रमुख राष्ट्रपति औपचारिक प्रमुख, प्रधानमंत्री वास्तविक प्रमुख
चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव अप्रत्यक्ष (सांसदों व विधायकों द्वारा)
अवधि निश्चित (4 वर्ष) लोकसभा में बहुमत पर निर्भर
जवाबदेही राष्ट्रपति संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं प्रधानमंत्री संसद के प्रति उत्तरदायी
न्यायपालिका के कार्य
- नागरिकों और सरकार के बीच विवाद निपटाना।
- राज्यों के बीच विवाद सुलझाना।
- संविधान की व्याख्या करना।
- नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना।
- जनहित याचिकाओं (PIL) की सुनवाई करना।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता
- न्यायाधीश सरकार के अधीन नहीं होते।
- नियुक्ति राष्ट्रपति करता है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश की सलाह से।
- न्यायाधीशों को पद से हटाना बहुत कठिन है (दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत चाहिए)।
- न्यायपालिका संविधान के विपरीत कानूनों को अमान्य घोषित कर सकती है — इसे न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) कहते हैं।
भारतीय न्यायपालिका की विशेषताएँ
- यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षक है।
- न्यायपालिका जनहित याचिका (PIL) के माध्यम से जनता की शिकायतें सुनती है।
- यह सरकार को शक्ति के दुरुपयोग से रोकती है।
- इसलिए जनता का विश्वास इस पर सबसे अधिक है।

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