अध्याय 5 — लोकतांत्रिक अधिकार
भूमिका
लोकतंत्र के तीन मुख्य तत्व:
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
- कानून के अनुसार चलने वाली संस्थाएँ
- नागरिकों के अधिकारों का उपयोग
अधिकार लोकतंत्र की आत्मा हैं।
अधिकार सरकार की सीमाएँ तय करते हैं ताकि वह नागरिकों पर अत्याचार न करे।
5.1 अधिकारों के बिना जीवन
उदाहरण:
1. गुआंतानामो बे जेल (अमेरिका):
- बिना मुकदमे के 600 लोगों को कैद किया गया।
- परिवारों से मिलने नहीं दिया गया, न अदालत में पेश किया गया।
- यह मानवाधिकारों का उल्लंघन था।
2. सऊदी अरब में नागरिक अधिकारों की कमी:
- राजा के पास सारी शक्ति।
- राजनीतिक दल बनाना, मीडिया की स्वतंत्रता नहीं।
- महिलाओं को बहुत सीमित अधिकार।
- धार्मिक स्वतंत्रता नहीं।
3. कोसोवो में जातीय नरसंहार:
- सर्ब सरकार ने अल्बानियाई अल्पसंख्यकों पर हिंसा की।
- हजारों निर्दोष लोग मारे गए।
- यह भी लोकतंत्र में अधिकारों के अभाव का उदाहरण है।
5.2 लोकतंत्र में अधिकार
अधिकार क्या हैं?
- अधिकार व्यक्ति का समाज और सरकार से न्यायसंगत दावा है।
- हर व्यक्ति को सुरक्षित, सम्मानजनक और स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार है।
- अधिकार तभी संभव हैं जब हम दूसरों के अधिकारों का सम्मान करें।
अधिकारों की विशेषताएँ:
- तार्किक होने चाहिए।
- समाज द्वारा मान्यता प्राप्त हों।
- अदालत द्वारा लागू किए जा सकें।
लोकतंत्र में अधिकारों की आवश्यकता:
- अधिकार नागरिकों को सरकार के दुरुपयोग से बचाते हैं।
- अल्पसंख्यकों की रक्षा करते हैं।
- सुनिश्चित करते हैं कि बहुमत की मनमानी न हो।
- अधिकारों को संविधान में लिखा जाता है ताकि सरकार भी उनका उल्लंघन न करे।
5.3 भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार
भारत में छह मौलिक अधिकार हैं
1. समानता का अधिकार
- सभी नागरिक कानून के सामने समान हैं।
- धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं।
- छुआछूत को कानूनन अपराध घोषित किया गया है।
- सरकारी नौकरियों में समान अवसर का प्रावधान।
- अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग और विकलांगों को आरक्षण समानता के विपरीत नहीं है — यह अवसर की समानता सुनिश्चित करता है।
2. स्वतंत्रता का अधिकार
हर नागरिक को छः प्रकार की स्वतंत्रताएँ:
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – अपने विचार बोलने, लिखने, प्रकाशित करने की आज़ादी।
- शांतिपूर्ण सभा की स्वतंत्रता – जुलूस, प्रदर्शन आदि कर सकते हैं।
- संगठन बनाने की स्वतंत्रता – यूनियन या संस्था बना सकते हैं।
- देश में आने-जाने की स्वतंत्रता।
- कहीं भी रहने-बसने की स्वतंत्रता।
- किसी भी पेशे को अपनाने की स्वतंत्रता।
स्वतंत्रता असीमित नहीं है — दूसरे के अधिकारों और सार्वजनिक व्यवस्था की सीमा तक ही है।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
तीन चीजें गैरकानूनी घोषित:
- मनुष्य व्यापार (Human Trafficking)
- बेगार या जबरन मजदूरी
- बाल मजदूरी (14 वर्ष से कम आयु वालों से काम लेना)
इन अधिकारों से कमजोर वर्गों की रक्षा होती है।
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
- भारत धर्मनिरपेक्ष देश है।
- प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन, प्रचार और प्रबंधन करने का अधिकार है।
- किसी को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
- सरकार किसी धर्म को विशेष मान्यता नहीं दे सकती।
- सरकारी स्कूलों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती।
5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
- अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति बचाने का अधिकार है।
- अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और चलाने की आज़ादी है।
- धर्म या भाषा के आधार पर किसी को प्रवेश से नहीं रोका जा सकता।
6. संवैधानिक उपचार का अधिकार
- अगर कोई अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो नागरिक अदालत जा सकते हैं।
- सर्वोच्च या उच्च न्यायालय में सीधे याचिका (रिट) दायर की जा सकती है।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसे संविधान की “आत्मा और हृदय” कहा।
- अगर मामला सार्वजनिक हित का हो तो जनहित याचिका (PIL) दायर की जा सकती है।
5.4 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)
स्थापना: 1993 में
कार्य:
- मानवाधिकार उल्लंघनों की स्वतंत्र जाँच करना।
- पीड़ितों को न्याय दिलाने में सहायता।
- मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना।
यह सरकार से स्वतंत्र निकाय है।
सजा देना अदालत का कार्य है, आयोग केवल सुझाव और जाँच रिपोर्ट देता है।
कोई भी नागरिक बिना फ़ीस शिकायत भेज सकता है।
5.5 अधिकारों का बढ़ता दायरा
समय के साथ अधिकारों का विस्तार हुआ है।
नई मान्यताएँ:
- सूचना का अधिकार (RTI)
- शिक्षा का अधिकार (RTE)
- भोजन का अधिकार
न्यायालयों ने अधिकारों के दायरे को बढ़ाया है जैसे—
- जीवन के अधिकार में भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार शामिल किया गया।
अन्य देशों की तरह भारत में भी भविष्य में काम का अधिकार, निजता का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार जोड़े जा सकते हैं।

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