Short Questions Answer
प्रश्न: यशपाल का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: यशपाल का जन्म सन् 1903 में फिरोजपुर छावनी में हुआ था।
प्रश्न: यशपाल की आत्मकथा का नाम क्या है?
उत्तर: उनकी आत्मकथा का नाम ‘सिंहावलोकन’ है।
प्रश्न: यशपाल को साहित्य अकादमी पुरस्कार किस कृति के लिए मिला?
उत्तर: उन्हें ‘मेरी, तेरी, उसकी बात’ उपन्यास पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
प्रश्न: कहानी ‘दुःख का अधिकार’ किस विषय को उजागर करती है?
उत्तर: यह कहानी समाज में फैले अंधविश्वास, ऊँच-नीच और अमानवीयता को उजागर करती है।
प्रश्न: फुटपाथ पर बैठी औरत क्या कर रही थी?
उत्तर: वह खरबूजे बेचने के लिए बैठी थी, पर रो भी रही थी।
प्रश्न: उस औरत के बेटे की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर: खेत में काम करते समय साँप के डसने से उसकी मृत्यु हुई।
प्रश्न: बुढ़िया को कोई उधार क्यों नहीं देता था?
उत्तर: क्योंकि उसके बेटे की मृत्यु के बाद उसे कोई सहारा नहीं बचा था और लोग उस पर भरोसा नहीं करते थे।
प्रश्न: लेखक उस स्त्री के पास जाकर बैठ क्यों नहीं पाया?
उत्तर: क्योंकि उसकी अपनी पोशाक ही उसके लिए बाधा बन गई थी।
प्रश्न: बुढ़िया की बहू किस अवस्था में थी?
उत्तर: वह बुखार से तप रही थी।
प्रश्न: लेखक के अनुसार दुःखी होने का भी क्या चाहिए?
उत्तर: लेखक के अनुसार दुःखी होने का भी एक अधिकार और सहूलियत चाहिए।
Long Questions Answer
प्रश्न: कहानी ‘दुःख का अधिकार’ का शीर्षक क्यों सार्थक है?
उत्तर: यह कहानी दिखाती है कि समाज में गरीबों को दुःख मनाने का भी अधिकार नहीं है। अमीर लोग अपने दुःख में विलाप कर सकते हैं, लेकिन निर्धन वर्ग रोज़ी-रोटी के लिए अपने आँसू दबा देता है। इस प्रकार शीर्षक समाज की असमानता को सटीक रूप से प्रकट करता है।
प्रश्न: बाजार के लोग खरबूजे बेचनेवाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे?
उत्तर: कोई कहता था कि उसका बेटा मरा है और यह बेहया बाजार आ गई है। कोई कहता था कि ऐसे लोग रोटी के टुकड़े के लिए धर्म-ईमान बेच देते हैं। कुछ लोगों ने कहा कि उसके सूतक के कारण दूसरों का धर्म बिगड़ जाएगा। सबने उसे घृणा से देखा, किसी ने उसके दुःख को नहीं समझा।
प्रश्न: पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?
उत्तर: लेखक को पता चला कि उस बुढ़िया का जवान बेटा खेत में खरबूजे तोड़ते समय साँप के डसने से मर गया था। घर में बहू और पोता-पोती हैं। अब परिवार के पास खाने तक का सामान नहीं बचा था।
प्रश्न: भगवाना की मृत्यु के बाद बुढ़िया ने क्या-क्या कष्ट झेले?
उत्तर: बेटे की मृत्यु के बाद बुढ़िया ने पूजा-पाठ और दान-दक्षिणा में घर का सारा अनाज खो दिया। बहू बीमार थी, बच्चे भूखे थे, कोई उधार नहीं देता था। मजबूरी में वह अपने बेटे के बटोरे हुए खरबूजे बेचने बाजार आ गई।
प्रश्न: लेखक ने बुढ़िया के दुःख की तुलना किससे की और क्यों?
उत्तर: लेखक ने बुढ़िया के दुःख की तुलना अपने पड़ोस की एक संभ्रांत महिला से की, जो बेटे की मृत्यु पर महीनों पलंग से नहीं उठी थी। इससे लेखक को महसूस हुआ कि दुःख सबको समान रूप से होता है, पर अमीर और गरीब को उसे जीने का अधिकार समान रूप से नहीं मिलता।
प्रश्न: मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्त्व है?
उत्तर: पोशाक समाज में व्यक्ति का दर्जा और अधिकार तय करती है। यह कई दरवाजे खोलती है, पर कभी-कभी वही व्यक्ति को दूसरों से मिलने, झुकने या उनकी पीड़ा समझने से रोक देती है।
प्रश्न: बुढ़िया अगले दिन ही बाजार खरबूजे बेचने क्यों चली गई?
उत्तर: बेटे की मृत्यु के बाद परिवार के पास खाने का कोई साधन नहीं था। बहू बीमार थी और बच्चे भूख से रो रहे थे। मजबूरी में बुढ़िया आँसू पोंछकर बेटे के तोड़े हुए खरबूजे बेचने चली गई।
प्रश्न: लेखक उस औरत के पास जाकर उसका दुःख क्यों नहीं जान पाया?
उत्तर: लेखक का मन उस स्त्री के दुःख से द्रवित हुआ, पर उसकी अपनी सामाजिक स्थिति और पहनावा उसे उस गरीब स्त्री के पास बैठने से रोकता रहा। उसकी पोशाक ही उसके लिए अड़चन बन गई।
प्रश्न: समाज की अमानवीयता इस कहानी में कैसे प्रकट होती है?
उत्तर: बाजार के लोग बुढ़िया के दुःख का मजाक उड़ा रहे थे। किसी ने सहानुभूति नहीं दिखाई। सबने उसे बेहया कहा। यह समाज की कठोरता और अमानवीयता को दर्शाता है जहाँ गरीब की पीड़ा को कोई नहीं समझता।
प्रश्न: लेखक की सोच से आपको क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर: लेखक हमें सिखाते हैं कि हमें दूसरों के दुःख के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। समाज में ऊँच-नीच और भेदभाव के बजाय समानता और करुणा का भाव रखना ही सच्ची मानवता है।
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