Short Questions Answer
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म सन् 1927 में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की शिक्षा कहाँ हुई?
उत्तर: उनकी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुई।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने किन पत्रिकाओं का संपादन किया?
उत्तर: उन्होंने दिनमान और पराग पत्रिकाओं का संपादन किया।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का निधन कब हुआ?
उत्तर: उनका निधन सन् 1983 में हुआ।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की प्रमुख कविता संग्रहों के नाम बताइए।
उत्तर: काठ की घंटियाँ, बाँस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, कुआनो नदी, जंगल का दर्द, खूंटियों पर टँगे लोग।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को कौन सा पुरस्कार मिला?
उत्तर: उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता की भाषा कैसी है?
उत्तर: उनकी भाषा सहज और लोक की महक लिए हुए है।
कविता में मेघों की तुलना किससे की गई है?
उत्तर: मेघों की तुलना सजकर आए प्रवासी अतिथि (दामाद) से की गई है।
कविता में बूढ़े पीपल ने मेघों का स्वागत कैसे किया?
उत्तर: बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर मेघों की जुहार की।
कविता में दामिनी का क्या अर्थ है?
उत्तर: दामिनी का अर्थ बिजली है, जो चमक उठी।
Long Questions Answer
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के जीवन और शिक्षा के बारे में बताइए।
उत्तर: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में सन् 1927 में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्चशिक्षा ग्रहण की। आरंभ में उन्हें आजीविका हेतु काफ़ी संघर्ष करना पड़ा, बाद में दिनमान के उपसंपादक एवं चर्चित बाल पत्रिका पराग के संपादक बने। सन् 1983 में उनका आकस्मिक निधन हो गया।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कृतियों और उनके योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर: काठ की घंटियाँ, बाँस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, कुआनो नदी, जंगल का दर्द, खूंटियों पर टँगे लोग उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं। नई कविता के प्रमुख कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने उपन्यास, नाटक, कहानी, निबंध एवं प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य भी लिखा है। दिनमान में प्रकाशित चरचे और चरखे स्तंभ के लिए सर्वेश्वर बहुत चर्चित रहे हैं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता की विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर: सर्वेश्वर के काव्य में ग्रामीण संवेदना के साथ शहरी मध्यवर्गीय जीवनबोध भी व्यक्त हुआ है। यह बोध उनके कथ्य में ही नहीं भाषा में भी दिखाई देता है। सर्वेश्वर की भाषा सहज एवं लोक की महक लिए हुए है। संकलित कविता में कवि ने मेघों के आने की तुलना सजकर आए प्रवासी अतिथि (दामाद) से की है। ग्रामीण संस्कृति में दामाद के आने पर उल्लास का जो वातावरण बनता है, मेघों के आने का सजीव वर्णन करते हुए कवि ने उसी उल्लास को दिखाया है।
मेघ आए कविता का परिचय दीजिए।
उत्तर: संकलित कविता में कवि ने मेघों के आने की तुलना सजकर आए प्रवासी अतिथि (दामाद) से की है। ग्रामीण संस्कृति में दामाद के आने पर उल्लास का जो वातावरण बनता है, मेघों के आने का सजीव वर्णन करते हुए कवि ने उसी उल्लास को दिखाया है। मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के। आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली, दरवाज़े-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली, पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
कविता में मेघों के आने पर प्रकृति में होने वाली गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के। आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली, दरवाज़े-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली, पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए, आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए, बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके। बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की, हरसाया ताल लाया पानी परात भर के। क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी, बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
कविता में मेघों को ‘बन-ठन के सँवर के’ क्यों कहा गया है?
उत्तर: मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के। कवि ने मेघों को बन-ठन के सँवर के इसलिए कहा क्योंकि मेघों का आगमन ग्रामीण संस्कृति में दामाद के सजे-धजे आगमन की तरह उल्लासपूर्ण और आकर्षक है। जैसे गाँव में दामाद के आने पर उत्साह और स्वागत का माहौल बनता है, वैसे ही मेघों के आने से प्रकृति में उत्साह और हलचल पैदा होती है, जो उनके सजने-संवरने को दर्शाता है।
कविता में लता ने मेघों को किस तरह देखा और क्यों?
उत्तर: बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की, ‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’। लता ने मेघों को अकुलाहट के साथ देखा, जैसे वह लंबे समय बाद आए प्रिय मेहमान को देखकर भावुक हो गई हो। इसका कारण यह है कि मेघों का आगमन वर्षा लाता है, जो प्रकृति के लिए जीवनदायी है, और लता, जो प्रकृति का हिस्सा है, इस मिलन के लिए लंबे समय से प्रतीक्षा कर रही थी।
कविता में मेघों के आने से वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर: मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के। आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली, दरवाज़े-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली, पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए, आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए, बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके। बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की, हरसाया ताल लाया पानी परात भर के। क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी, बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
कविता में प्रयुक्त मानवीकरण अलंकार के उदाहरण दीजिए।
उत्तर: कविता में मानवीकरण अलंकार के कई उदाहरण हैं। जैसे: पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए, आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए, बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके। बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की, बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की, हरसाया ताल लाया पानी परात भर के। इन पंक्तियों में पेड़, आँधी, धूल, नदी, लता और ताल को मानवीय गुणों से युक्त दर्शाया गया है।
कविता में ‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की, बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके। इस पंक्ति में कवि कहता है कि मेघों के आने से यह भ्रम टूट गया कि मेघ अब नहीं आएँगे। यह भ्रम एक गाँठ की तरह था जो अब खुल गया है। मेघों का बरसना प्रियतम और प्रिया के मिलन की तरह है, जिससे खुशी के आँसू झर-झर बहने लगे, जैसे बाँध टूट गया हो। यह भाव प्रकृति और मेघों के मिलन की खुशी और भ्रम के टूटने को दर्शाता है।

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