Short Questions Answer
1. श्यामाचरण दुबे का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: श्यामाचरण दुबे का जन्म सन् 1922 में मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में हुआ था।
2. श्यामाचरण दुबे ने किस विषय में पी.एच.डी. की थी?
उत्तर: उन्होंने मानव विज्ञान (Anthropology) में पी.एच.डी. की थी।
3. श्यामाचरण दुबे का निधन कब हुआ?
उत्तर: उनका निधन सन् 1996 में हुआ।
4. उनकी प्रमुख हिंदी कृतियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर: “मानव और संस्कृति”, “भारतीय ग्राम”, “संक्रमण की पीड़ा”, “समय और संस्कृति”, “विकास का समाजशास्त्र” आदि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।
5. निबंध “उपभोक्तावाद की संस्कृति” का मुख्य विषय क्या है?
उत्तर: यह निबंध उपभोक्तावादी समाज और बाज़ार की गिरफ्त में आए जीवन की वास्तविकता पर आधारित है।
6. लेखक के अनुसार आज का ‘सुख’ किसे कहा जाने लगा है?
उत्तर: आज के समय में ‘उपभोग’ यानी भोग-विलास को ही सुख समझा जाने लगा है।
7. लेखक ने “उत्पाद को समर्पित होने” से क्या आशय दिया है?
उत्तर: इसका अर्थ है कि मनुष्य अब वस्तुओं और विज्ञापनों के प्रभाव में अपनी सोच और चरित्र बदलने लगा है।
8. लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को किसके लिए खतरा बताया है?
उत्तर: उन्होंने इसे हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक नींव के लिए बड़ा खतरा बताया है।
9. गांधीजी ने सांस्कृतिक प्रभावों के बारे में क्या कहा था?
उत्तर: गांधीजी ने कहा था कि हमें स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभावों के लिए दरवाज़े खुले रखने चाहिए, पर अपनी बुनियाद पर कायम रहना चाहिए।
10. लेखक के अनुसार उपभोक्तावादी संस्कृति का अंतिम परिणाम क्या है?
उत्तर: इसका परिणाम सामाजिक विषमता, अशांति, नैतिकता का पतन और सांस्कृतिक अस्मिता के ह्रास के रूप में होता है।
Long Questions Answer
1. श्यामाचरण दुबे के जीवन और योगदान का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर: श्यामाचरण दुबे का जन्म 1922 में बुंदेलखंड में हुआ। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में पीएच.डी. की। वे भारत के प्रमुख समाजशास्त्री थे। उन्होंने “मानव और संस्कृति”, “संक्रमण की पीड़ा”, “भारतीय ग्राम” आदि ग्रंथ लिखे। उनका लेखन समाज, संस्कृति और परिवर्तन के गहन अध्ययन पर आधारित है। उन्होंने जटिल विचारों को सहज भाषा में प्रस्तुत किया और समाज को दिशा दी।
2. “उपभोक्तावाद की संस्कृति” शीर्षक को उचित ठहराइए।
उत्तर: इस निबंध में समाज में फैल रही उपभोक्ता प्रवृत्तियों का सजीव चित्रण है। लेखक ने बताया है कि आज व्यक्ति वस्तुओं के पीछे भाग रहा है, और भोग को ही सुख मानने लगा है। इस कारण दिखावे और प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ रही है। इसलिए शीर्षक “उपभोक्तावाद की संस्कृति” निबंध के भाव को पूरी तरह व्यक्त करता है।
3. लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?
उत्तर: क्योंकि यह संस्कृति लोगों को भौतिक सुख-सुविधाओं में उलझाकर नैतिक मूल्यों और सांस्कृतिक पहचान से दूर कर रही है। इससे सामाजिक विषमता, स्वार्थ और अशांति बढ़ रही है। लेखक मानते हैं कि यह हमारी सामाजिक नींव को हिला रही है और यह भविष्य के लिए गंभीर खतरा है।
4. लेखक ने ‘सुख’ की नई व्याख्या कैसे बताई है?
उत्तर: पहले सुख का अर्थ मानसिक शांति और सादगी था, पर आज सुख का अर्थ उपभोग से जोड़ा जाने लगा है। लोग मानते हैं कि अधिक वस्तुएँ खरीदना और उनका उपयोग करना ही सुख है। यह सोच मनुष्य को भोगवादी बना रही है।
5. उपभोक्ता संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?
उत्तर: आज विज्ञापन लोगों को वस्तुएँ खरीदने के लिए लुभाते हैं। हर व्यक्ति ब्रांडेड वस्तुएँ और महँगी चीज़ें लेना चाहता है। यह प्रवृत्ति हमारे व्यवहार, सोच और जीवनशैली को बदल रही है। सामान्य व्यक्ति भी अमीरों की नकल करने लगा है।
6. लेखक ने पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव को लेकर क्या चेतावनी दी है?
उत्तर: लेखक ने कहा है कि हम पश्चिम की संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे हैं। हम अपनी परंपराएँ और अस्मिता भूलते जा रहे हैं। यह स्थिति हमें सांस्कृतिक उपनिवेश बना सकती है, जो हमारी स्वतंत्र सोच और पहचान के लिए घातक है।
7. निबंध में वर्णित ‘दिखावे की संस्कृति’ का समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
उत्तर: दिखावे की संस्कृति ने समाज में प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या और वर्गभेद बढ़ाया है। लोग प्रतिष्ठा दिखाने के लिए फिजूलखर्ची करते हैं। इससे सामाजिक संबंध कमजोर हो रहे हैं और जीवन में नैतिकता घट रही है।
8. उपभोक्ता संस्कृति में नैतिक मूल्यों का ह्रास कैसे हो रहा है?
उत्तर: भौतिक सुखों की लालसा में व्यक्ति अपने नैतिक मूल्यों को भूलता जा रहा है। ईमानदारी, सादगी और सेवा जैसे गुण पीछे छूट रहे हैं। लोग केवल अपने लाभ के लिए सोचते हैं, जिससे समाज में स्वार्थ और अशांति बढ़ रही है।
9. लेखक के अनुसार विज्ञापन हमारे जीवन को किस प्रकार नियंत्रित कर रहे हैं?
उत्तर: विज्ञापन केवल वस्तु नहीं बेचते, वे हमारी सोच और मानसिकता को भी प्रभावित करते हैं। उनमें सम्मोहन की शक्ति होती है, जिससे हम वस्तुओं के बिना अधूरा महसूस करने लगते हैं। इस प्रकार हमारा जीवन बाजार के नियंत्रण में आता जा रहा है।
10. गांधीजी के विचारों के संदर्भ में उपभोक्ता संस्कृति पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर: गांधीजी सादगी और आत्मनिर्भरता के पक्षधर थे। उन्होंने कहा था कि हमें विदेशी प्रभावों के प्रति खुले रहना चाहिए, लेकिन अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा रहना चाहिए। लेखक ने भी चेतावनी दी है कि उपभोक्ता संस्कृति हमारी बुनियाद को कमजोर कर रही है। इसलिए हमें अपनी परंपरागत सादगी और आत्म-संयम को बनाए रखना चाहिए।

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