Short Questions Answer
प्रश्न: हरिशंकर परसाई का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: परसाई जी का जन्म सन् 1922 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी गाँव में हुआ था।
प्रश्न: परसाई जी ने किस विश्वविद्यालय से एम.ए. किया था?
उत्तर: उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. किया था।
प्रश्न: परसाई जी की मृत्यु कब हुई?
उत्तर: परसाई जी का निधन सन् 1995 में हुआ।
प्रश्न: परसाई जी ने किस पत्रिका का संपादन किया?
उत्तर: उन्होंने “वसुधा” नामक पत्रिका का संपादन किया।
प्रश्न: परसाई जी की प्रमुख रचनाओं में से दो का नाम लिखिए।
उत्तर: “हँसते हैं रोते हैं” और “भूत के पाँव पीछे”।
प्रश्न: प्रेमचंद के फटे जूते देखकर लेखक की दृष्टि कहाँ अटक जाती है?
उत्तर: लेखक की दृष्टि प्रेमचंद के बाएँ पाँव के फटे जूते पर अटक जाती है।
प्रश्न: लेखक ने प्रेमचंद की मुसकान में क्या देखा?
उत्तर: लेखक ने उस मुसकान में उपहास और व्यंग्य देखा।
प्रश्न: प्रेमचंद के फटे जूते किस बात का प्रतीक हैं?
उत्तर: वे सादगी और सच्चाई के प्रतीक हैं।
प्रश्न: परसाई जी किस प्रकार की भाषा का प्रयोग करते थे?
उत्तर: वे बोलचाल की सामान्य भाषा का प्रयोग करते थे।
प्रश्न: परसाई जी के व्यंग्य का उद्देश्य क्या था?
उत्तर: उनका उद्देश्य समाज में पाखंड, भ्रष्टाचार और अन्याय पर चोट करना था।
Long Questions Answer
प्रश्न: हरिशंकर परसाई को हिंदी का अग्रणी व्यंग्यकार क्यों कहा जाता है?
उत्तर: हरिशंकर परसाई ने अपने लेखन में समाज के पाखंड, भ्रष्टाचार और अन्याय पर तीखा प्रहार किया। उनका व्यंग्य केवल हास्य नहीं, बल्कि परिवर्तन की चेतना जगाने वाला था। उन्होंने बोलचाल की भाषा में गहरी बातें कही और उनके व्यंग्य-साहित्य ने आदर्श के पक्ष में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
प्रश्न: ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक का क्या अर्थ है?
उत्तर: यह शीर्षक प्रेमचंद की सादगी, ईमानदारी और संघर्षशीलता का प्रतीक है। फटा जूता दिखावे से रहित उस सच्चे जीवन का प्रतीक बन जाता है, जिसमें व्यक्ति अपने आदर्शों से समझौता नहीं करता।
प्रश्न: लेखक प्रेमचंद की मुसकान को “व्यंग्य-मुसकान” क्यों कहता है?
उत्तर: लेखक को लगता है कि प्रेमचंद की मुसकान अधूरी है, उसमें उपहास और व्यंग्य है। यह मुसकान समाज के उन लोगों पर व्यंग्य करती है जो दिखावे और परदे में जीते हैं।
प्रश्न: लेखक ने अपने और प्रेमचंद के जूतों की तुलना क्यों की?
उत्तर: लेखक ने यह दिखाने के लिए तुलना की कि प्रेमचंद का फटा जूता सच्चाई का प्रतीक है, जबकि उसका खुद का सही जूता झूठे दिखावे का। प्रेमचंद की सादगी में आदर्श है, जबकि लेखक की बनावट में पाखंड।
प्रश्न: प्रेमचंद के फटे जूते देखकर लेखक को क्या अनुभूति होती है?
उत्तर: लेखक को प्रेमचंद के फटे जूते देखकर गहरा आत्मचिंतन होता है। उसे अपनी बनावटी ज़िंदगी पर शर्म आती है और प्रेमचंद की सादगी से प्रेरणा मिलती है।
प्रश्न: लेखक के अनुसार प्रेमचंद का जूता कैसे फटा होगा?
उत्तर: लेखक के अनुसार प्रेमचंद का जूता चलने से नहीं, बल्कि समाज की कठोरता और पाखंड पर ठोकरें मारने से फटा। यह संघर्ष और आदर्शवाद का प्रतीक है।
प्रश्न: लेखक ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों में करता है?
उत्तर: ‘टीले’ शब्द समाज में जमे हुए अन्याय, असमानता और पाखंड का प्रतीक है। लेखक कहता है कि प्रेमचंद ने इन टीलों को ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया, लेकिन झुके नहीं।
प्रश्न: ‘परदे पर कुर्बान होने’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: इसका अर्थ है – समाज में दिखावे को बनाए रखने के लिए व्यक्ति अपनी सच्चाई, आत्म-सम्मान और जीवन के मूल्यों की बलि चढ़ा देता है। लेखक इसे व्यंग्यात्मक रूप में कहता है।
प्रश्न: परसाई जी का व्यंग्य कोरे हास्य से अलग क्यों है?
उत्तर: उनका व्यंग्य केवल हँसी पैदा करने के लिए नहीं, बल्कि समाज को आईना दिखाने के लिए है। उनके लेखन में आदर्श, नैतिकता और परिवर्तन का गहरा संदेश निहित है।
प्रश्न: ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर: यह पाठ हमें सादगी, ईमानदारी और सच्चे जीवन की प्रेरणा देता है। यह बताता है कि दिखावे से अधिक महत्वपूर्ण है व्यक्ति का चरित्र, विचार और संघर्ष।

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