Short Qusetions Answer
प्रश्न: रैदास का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: रैदास का जन्म सन् 1388 में बनारस में हुआ था।
प्रश्न: रैदास की मृत्यु कब हुई?
उत्तर: इनका देहावसान सन् 1518 में हुआ।
प्रश्न: रैदास किस प्रकार के कवि थे?
उत्तर: वे संत कोटि के कवि थे।
प्रश्न: रैदास किस भाषा में रचनाएँ करते थे?
उत्तर: वे सरल, व्यावहारिक ब्रजभाषा में रचनाएँ करते थे।
प्रश्न: रैदास किन बातों में विश्वास नहीं रखते थे?
उत्तर: वे मूर्तिपूजा और तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में विश्वास नहीं रखते थे।
प्रश्न: ‘गरीब निवाजु’ शब्द से कवि ने किसे संबोधित किया है?
उत्तर: ‘गरीब निवाजु’ शब्द से भगवान को संबोधित किया गया है।
प्रश्न: रैदास के कितने पद ‘गुरुग्रंथ साहब’ में संकलित हैं?
उत्तर: रैदास के चालीस पद ‘गुरुग्रंथ साहब’ में सम्मिलित हैं।
प्रश्न: पहले पद में भगवान और भक्त की तुलना किन वस्तुओं से की गई है?
उत्तर: चंदन-पानी, घन-मोर, दीपक-बाती, मोती-धागा, स्वामी-दास।
प्रश्न: रैदास अपने स्वामी को किन नामों से पुकारते हैं?
उत्तर: प्रभु जी, लाल, गुसईआ, गोबिंदु आदि नामों से।
प्रश्न: ‘नीचहु ऊच करै’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: इसका अर्थ है – भगवान नीच को भी ऊँचा बनाते हैं।
Long Questions Answer
प्रश्न: पहले पद ‘प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी’ का सारांश लिखिए।
उत्तर: इस पद में रैदास ने प्रभु के प्रति अपनी गहरी भक्ति प्रकट की है। वे कहते हैं कि प्रभु चंदन हैं और मैं पानी हूँ, जिनकी सुगंध मेरे प्रत्येक अंग में समाई है। वे प्रभु को दीपक और स्वयं को बाती, प्रभु को मोती और स्वयं को धागा कहते हैं। कवि भक्त और भगवान के गहरे संबंध को दिखाता है।
प्रश्न: ‘ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै’ पद का आशय लिखिए।
उत्तर: इस पद में रैदास भगवान की कृपा और उदारता का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि उनके समान दीन-दुखियों पर दया करने वाला कोई नहीं। वे नीच को ऊँचा बनाते हैं और सबको समान दृष्टि से देखते हैं। भगवान ने नामदेव, कबीर, तिलोचन, सधना और सैन जैसे भक्तों को भी उद्धार किया।
प्रश्न: रैदास की भक्ति की विशेषता क्या है?
उत्तर: रैदास की भक्ति सहज, सरल और हृदयस्पर्शी है। वे बाहरी दिखावे के बजाय हृदय की सच्ची श्रद्धा और प्रेम को ही सच्चा धर्म मानते हैं। उनकी भक्ति में दीनता और आत्म-समर्पण के भाव झलकते हैं।
प्रश्न: रैदास के काव्य में भाषा की क्या विशेषता है?
उत्तर: रैदास की भाषा सरल ब्रजभाषा है जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फ़ारसी शब्दों का सुंदर मिश्रण है। भाषा सजीव, सहज और जनमानस की बोली है, जिससे उनके पद सीधे हृदय को स्पर्श करते हैं।
प्रश्न: ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति में कवि कहते हैं कि संसार जिन लोगों को नीच या अछूत समझता है, उन पर भी भगवान द्रवित होते हैं। वे ऐसे लोगों को भी अपने समीप स्थान देते हैं। यह पंक्ति भगवान की निष्पक्षता और समानता की भावना को व्यक्त करती है।
प्रश्न: रैदास की रचनाओं में कौन-से अलंकारों का प्रयोग हुआ है?
उत्तर: रैदास के पदों में उपमा और रूपक अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है। जैसे – ‘प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी’ में उपमा अलंकार है। इन अलंकारों से उनके काव्य में सौंदर्य, मधुरता और भाव-गहराई आती है।
प्रश्न: पहले पद में भक्त और भगवान के संबंध को कवि ने कैसे चित्रित किया है?
उत्तर: कवि ने भगवान और भक्त के अटूट संबंध को दिखाने के लिए पाँच उपमाएँ दी हैं – जैसे चंदन-पानी, घन-मोर, दीपक-बाती, मोती-धागा और स्वामी-दास। इन उपमाओं से उनका आत्मीय संबंध, एकत्व और भक्ति का भाव झलकता है।
प्रश्न: रैदास ने समाज को क्या संदेश दिया?
उत्तर: रैदास ने समाज को सच्ची भक्ति, समानता और प्रेम का संदेश दिया। उन्होंने बताया कि भगवान के लिए ऊँच-नीच, जाति-पाँति का कोई भेद नहीं है। सच्चा भक्त वही है जिसके हृदय में प्रेम, करुणा और नम्रता है।
प्रश्न: रैदास का साहित्यिक योगदान क्या है?
उत्तर: रैदास ने भक्तिकाल में भक्ति-आंदोलन को नई दिशा दी। उनके पदों ने समाज में समानता, सरल भक्ति और ईश्वर-प्रेम की भावना जगाई। उनके चालीस पद ‘गुरुग्रंथ साहब’ में शामिल हैं, जो उनके महत्त्व को दर्शाते हैं।
प्रश्न: रैदास के पदों का केंद्रीय भाव लिखिए।
उत्तर: रैदास के पदों का केंद्रीय भाव ईश्वर-भक्ति, दीनता और समानता है। वे भगवान को सर्वशक्तिमान, कृपालु और समदर्शी बताते हैं। भक्त और भगवान का संबंध आत्मीय और प्रेमपूर्ण है। सच्ची भक्ति वही है जो हृदय की पवित्रता से उत्पन्न हो।
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