Short Questions Answer
प्रश्न: ललद्यद का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर: ललद्यद का जन्म कश्मीर के पाम्पोर स्थित सिमपुरा गाँव में हुआ था।
प्रश्न: ललद्यद की काव्य-शैली को क्या कहा जाता है?
उत्तर: उनकी काव्य-शैली को वाख कहा जाता है।
प्रश्न: ललद्यद को किन-किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर: उन्हें लल्लेश्वरी, लला, ललयोगेश्वरी और ललारिफा आदि नामों से जाना जाता है।
प्रश्न: ललद्यद ने किस भाषा में अपनी रचनाएँ कीं?
उत्तर: उन्होंने जनता की सरल कश्मीरी भाषा में अपनी रचनाएँ कीं।
प्रश्न: ‘कच्चे सकोरे’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: ‘कच्चे सकोरे’ का अर्थ स्वाभाविक रूप से कमज़ोर है।
प्रश्न: ललद्यद का देहांत कब हुआ माना जाता है?
उत्तर: उनका देहांत लगभग सन् 1391 के आसपास माना जाता है।
प्रश्न: ललद्यद ने प्रेम को किससे बड़ा बताया है?
उत्तर: उन्होंने प्रेम को सबसे बड़ा मूल्य बताया है।
प्रश्न: ललद्यद ने धार्मिक आडंबरों के प्रति क्या दृष्टिकोण रखा?
उत्तर: उन्होंने धार्मिक आडंबरों का विरोध किया।
प्रश्न: ‘रस्सी कच्चे धागे की’ पंक्ति में ‘रस्सी’ किसका प्रतीक है?
उत्तर: यहाँ ‘रस्सी’ जीवन के नाशवान सहारे का प्रतीक है।
प्रश्न: ‘थल-थल में बसता है शिव ही’ से क्या भाव है?
उत्तर: इसका भाव है कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है, हर स्थान में वही है।
Long Questions Answer
प्रश्न: ललद्यद की कविताओं में कौन-सा प्रमुख संदेश मिलता है?
उत्तर: ललद्यद की कविताएँ भक्ति और मानवता की भावना से ओतप्रोत हैं। उन्होंने जाति-धर्म के संकीर्ण भेदभावों को अस्वीकार कर प्रेम, समानता और आत्मज्ञान को सर्वोपरि माना। वे कहती हैं कि ईश्वर सर्वत्र है, इसलिए सभी मनुष्यों को एक समान समझना चाहिए।
प्रश्न: ललद्यद ने ‘वाख’ में किन विषयों को प्रमुखता दी है?
उत्तर: ललद्यद ने अपने वाखों में ईश्वर-प्राप्ति के प्रयत्न, आत्मालोचन, धार्मिक आडंबरों का विरोध, समभाव, सद्कर्म और ईश्वर की सर्वव्यापकता जैसे विषयों को व्यक्त किया है।
प्रश्न: पहले वाख का सारांश लिखिए।
उत्तर: पहले वाख में कवयित्री ईश्वर-प्राप्ति के लिए किए गए अपने प्रयासों की व्यर्थता बताती हैं। वे कहती हैं कि उनके प्रयत्न ऐसे हैं जैसे कच्चे धागे की रस्सी से नाव खींचना। यह असफलता उन्हें भीतर से व्याकुल करती है और वे अपने वास्तविक घर, अर्थात् ईश्वर की ओर लौटने की तीव्र इच्छा रखती हैं।
प्रश्न: दूसरे वाख में ललद्यद ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर: दूसरे वाख में कवयित्री ने बताया है कि न अधिक खाने से कुछ प्राप्त होगा और न उपवास से अहंकार मिटेगा। समभाव तभी संभव है जब मनुष्य संतुलित और संयमी जीवन जीए। इसी से मन की जकड़न टूटेगी और चेतना का द्वार खुलेगा।
प्रश्न: तीसरे वाख का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: तीसरे वाख में ललद्यद ने आत्मालोचन किया है। वे कहती हैं कि जीवन के मार्ग पर चलते हुए वे सीधे रास्ते से भटक गईं। अपने कर्मों की झोली टटोलने पर उन्हें कुछ नहीं मिला, अर्थात् उनके जीवन में सद्कर्मों की कमी रही। इसलिए वे ईश्वर रूपी माझी को कुछ देने योग्य नहीं हैं।
प्रश्न: चौथे वाख में ललद्यद का क्या उपदेश है?
उत्तर: चौथे वाख में ललद्यद कहती हैं कि ईश्वर हर जगह विद्यमान है। किसी भी धर्म या जाति में भेदभाव नहीं करना चाहिए। जो स्वयं को जानता है, वही सच्चे अर्थों में ईश्वर को पहचानता है।
प्रश्न: ललद्यद की भाषा-शैली की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर: उनकी भाषा लोकजीवन से जुड़ी हुई सरल, सजीव और काव्यात्मक है। उन्होंने संस्कृत और फ़ारसी की बजाय जनता की बोली अपनाई जिससे उनकी रचनाएँ सहज, प्रवाहपूर्ण और लोकप्रिय बन गईं।
प्रश्न: ललद्यद ने धार्मिक आडंबरों का विरोध क्यों किया?
उत्तर: उन्होंने देखा कि लोग बाह्य दिखावे, हठयोग और पाखंड में उलझे हैं, जिससे सच्चे आत्मज्ञान से दूर हो जाते हैं। इसलिए उन्होंने कहा कि ईश्वर-प्राप्ति के लिए बाहरी कर्मकांड नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता और समभाव आवश्यक है।
प्रश्न: ललद्यद की रचनाएँ आज भी लोकप्रिय क्यों हैं?
उत्तर: उनकी रचनाएँ जनता की भाषा में हैं, जिनमें सादगी, भक्ति और मानवता की भावना है। यही कारण है कि सैकड़ों वर्षों बाद भी उनकी वाणी कश्मीरी जनता की स्मृति और जीवन में जीवित है।
प्रश्न: भक्तिकाल में ललद्यद का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: ललद्यद ने भक्तिकाल की जनचेतना को कश्मीर तक पहुँचाया। उन्होंने भक्ति को जीवन से जोड़ा, समानता और प्रेम का संदेश दिया तथा संकीर्ण धर्म-जाति भेदों से ऊपर उठने की प्रेरणा दी। इस प्रकार वे आधुनिक कश्मीरी भाषा और भक्ति परंपरा की आधारशिला बनीं।

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