Short Questions Answer
प्रश्न: रसखान का मूल नाम क्या था?
उत्तर: रसखान का मूल नाम सैयद इब्राहिम था।
प्रश्न: रसखान का जन्म कब हुआ माना जाता है?
उत्तर: उनका जन्म सन् 1548 में हुआ माना जाता है।
प्रश्न: रसखान को कृष्णभक्ति की प्रेरणा कहाँ से मिली?
उत्तर: उन्हें गोस्वामी विठ्ठलनाथ से दीक्षा लेकर कृष्णभक्ति की प्रेरणा मिली।
प्रश्न: रसखान की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर: सन् 1628 के लगभग उनकी मृत्यु हुई।
प्रश्न: रसखान की प्रमुख कृतियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर: उनकी प्रमुख कृतियाँ सुजान रसखान और प्रेमवाटिका हैं।
प्रश्न: रसखान किस भाषा में काव्य-रचना करते थे?
उत्तर: उन्होंने ब्रजभाषा में अत्यंत सरस और मनोरम काव्य-रचना की।
प्रश्न: कवि का ब्रजभूमि के प्रति कैसा भाव था?
उत्तर: कवि का ब्रजभूमि के प्रति गहरा प्रेम और समर्पण-भाव था।
प्रश्न: “या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं” पंक्ति में कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर: कवि कहना चाहता है कि वह ब्रजभूमि के चरवाहे का जीवन अपनाने के लिए राज-पाट तक त्याग सकता है।
प्रश्न: रसखान की भाषा की क्या विशेषता है?
उत्तर: उनकी भाषा सरल, भावपूर्ण और शब्दाडंबर-रहित है।
प्रश्न: “कालिंदी कूल कदंब की डारन” में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर: इसमें अनुप्रास अलंकार है।
Long Questions Answer
प्रश्न: रसखान का जीवन और उनकी भक्ति भावना का वर्णन कीजिए।
उत्तर: रसखान का मूल नाम सैयद इब्राहिम था। वे दिल्ली के पास के रहने वाले एक मुस्लिम कवि थे, जिन्हें कृष्णभक्ति ने मोहित कर लिया। उन्होंने गोस्वामी विठ्ठलनाथ से दीक्षा ली और ब्रजभूमि में रहकर कृष्ण के प्रति अद्भुत प्रेम व्यक्त किया। उन्होंने जाति और धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर भक्ति का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया।
प्रश्न: पहले सवैये का सारांश लिखिए।
उत्तर: पहले सवैये में कवि रसखान का ब्रजभूमि के प्रति अपार प्रेम झलकता है। वे कहते हैं कि यदि वे मनुष्य हों तो ब्रज के ग्वालों के बीच बसें, यदि पशु हों तो नंद की गायों के झुंड में चरें, यदि पत्थर हों तो उसी पर्वत का भाग बनें जिसे श्रीकृष्ण ने अपनी उँगली पर धारण किया, और यदि पक्षी हों तो यमुना के तट के कदंब वृक्ष पर बसेरा करें।
प्रश्न: दूसरे सवैये में कवि का समर्पण-भाव कैसे प्रकट हुआ है?
उत्तर: दूसरे सवैये में कवि ने कहा है कि वे लकुटी और कामरिया (ग्वालों का सामान) के लिए तीनों लोकों का राज्य त्यागने को तैयार हैं। उन्हें आठ सिद्धियों और नौ निधियों का सुख नहीं चाहिए। वे केवल ब्रज के वन, बाग और तालाबों को निहारने की इच्छा रखते हैं। यह उनके पूर्ण समर्पण और प्रेम की पराकाष्ठा का चित्र है।
प्रश्न: तीसरे सवैये में गोपियों की भावनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर: तीसरे सवैये में गोपियाँ कृष्ण के सौंदर्य से इतनी मुग्ध हैं कि वे स्वयं कृष्ण जैसा रूप धारण करना चाहती हैं। वे कहती हैं कि मोरपंख सिर पर रखकर, पितंबर ओढ़कर और मुरली बजाकर वे कृष्ण का स्वाँग रचेंगी। यह कृष्ण-प्रेम की चरम अभिव्यक्ति है।
प्रश्न: चौथे सवैये का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: चौथे सवैये में कवि ने कृष्ण की मुरली की धुन और मुस्कान के मोहक प्रभाव का वर्णन किया है। मुरली की मधुर तान सुनते ही गायें तक मोहित होकर चल पड़ती हैं। गोपियाँ उनकी मुस्कान की मोहिनी छवि देखकर अपनी चेतना तक खो देती हैं। यह कृष्ण की मोहकता और भक्ति की तन्मयता का अद्भुत चित्रण है।
प्रश्न: रसखान ने अपने काव्य में किन-किन रूपों में कृष्ण के प्रति अनुरक्ति व्यक्त की है?
उत्तर: उन्होंने कृष्ण के बालरूप, गोप-चरित्र, मुरली-वादन, प्रेम-लीला और ब्रजभूमि की सुंदरता सभी के प्रति गहरा अनुराग व्यक्त किया है। उनके काव्य में कृष्ण केवल ईश्वर नहीं, बल्कि प्रेम का प्रतीक हैं।
प्रश्न: रसखान की भाषा-शैली की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर: उनकी भाषा ब्रजभाषा है, जो सरल, माधुर्यपूर्ण और भावनात्मक है। उसमें अलंकारों का सहज प्रयोग है, विशेषकर अनुप्रास और रूपक। वे शब्दाडंबर से रहित, भावनाओं को सीधा हृदय तक पहुँचाने वाली भाषा का प्रयोग करते हैं।
प्रश्न: रसखान का ब्रजभूमि के प्रति प्रेम किन रूपों में प्रकट हुआ है?
उत्तर: उन्होंने ब्रज के ग्वालों, गायों, पर्वतों, वृक्षों, तालाबों और सम्पूर्ण भूमि से प्रेम किया। वे कहते हैं कि चाहे वे किसी भी रूप में हों, बस ब्रज में ही रहना चाहते हैं। उनका यह प्रेम भक्ति और आत्मिक एकता की गहराई को दर्शाता है।
प्रश्न: “या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं” पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति में कवि कहता है कि वह ब्रजभूमि के चरवाहे का जीवन अपनाने के लिए तीनों लोकों का राजपाट भी त्यागने को तैयार है। यहाँ भक्ति का सर्वोच्च रूप और सांसारिक मोह से पूर्ण विरक्ति का भाव प्रकट होता है।
प्रश्न: रसखान की रचनाएँ आज भी क्यों लोकप्रिय हैं?
उत्तर: रसखान की रचनाओं में भक्ति, प्रेम और मानवीय संवेदना का गहरा संगम है। उनकी भाषा मधुर, सरस और सहज है। उन्होंने धर्म की सीमाओं को पार कर प्रेम को ईश्वर का स्वरूप माना, इसलिए उनकी वाणी आज भी जन-जन के हृदय में गूँजती है।

Leave a Reply