Solutions For All Chapters Kshitij Class 9
Premchand Ke Phate Joote Question Answer
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1: हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?
उत्तर: प्रेमचंद के व्यक्तित्व की विशेषताएँ जो पाठ में उभरकर आती हैं, वे हैं:
- सादगी: वे फटे जूते पहनकर फोटो खिंचाते हैं, जो उनकी सादगी को दर्शाता है।
- बेपरवाही: फटे जूते और अँगुली बाहर निकलने के बावजूद उनके चेहरे पर कोई लज्जा या संकोच नहीं है।
- विश्वास: उनके चेहरे पर बड़ी बेपरवाही और विश्वास झलकता है।
- दर्द भरी व्यंग्य-मुसकान: उनकी मुसकान में दर्द और व्यंग्य है, जो सामाजिक उपहास को दर्शाता है।
- सामाजिक दृष्टि: वे सामाजिक पाखंड और बुराइयों पर ठोकर मारते हैं।
- नेम-धरम की कमजोरी: उनकी यह कमजोरी उनकी मुक्ति है, जो उन्हें समझौता करने से रोकती है।
प्रश्न 2: सही कथन के सामने (✔) का निशान लगाइए-
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो?
उत्तर:
(क) ✘ (गलत, क्योंकि पाठ में कहा गया है कि दाहिना जूता ठीक है, बाएँ जूते में छेद है।)
(ख) ✔ (सही, पाठ में यह व्यंग्यपूर्ण कथन है।)
(ग) ✘ (गलत, पाठ में कहा गया है कि व्यंग्य-मुसकान हौसले पस्त करती है।)
(घ) ✘ (गलत, पाठ में पाँव की अँगुली से इशारा करने की बात है, अँगूठे से नहीं।)
प्रश्न 3: नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए-
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
(ख) तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?
उत्तर:
(क) व्यंग्य: इस पंक्ति में लेखक यह व्यंग्य करता है कि पहले जूता टोपी से महंगा था, लेकिन अब लोग चापलूसी और अवसरवादिता में इतने डूब गए हैं कि एक जूते की चाटुकारिता के लिए कई टोपियाँ (यानी सम्मान या स्वाभिमान) कुर्बान कर देते हैं।
(ख) व्यंग्य: यहाँ लेखक प्रेमचंद की सादगी की तुलना आधुनिक लोगों से करता है। प्रेमचंद दिखावे (परदे) का महत्व नहीं जानते थे, जबकि आज लोग दिखावे और बाहरी चमक-दमक के लिए सब कुछ कुर्बान कर देते हैं।
(ग) व्यंग्य: इस पंक्ति में लेखक प्रेमचंद के व्यंग्यपूर्ण रवैये को दर्शाता है। वे घृणित चीजों (पाखंड, भ्रष्टाचार) की ओर हाथ से नहीं, बल्कि पाँव की अँगुली से इशारा करते हैं, जो ठोकर मारने और तिरस्कार का प्रतीक है।
प्रश्न 4: पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?
उत्तर: लेखक के विचार बदलने की वजहें निम्नलिखित हो सकती हैं:
- सादगीपूर्ण जीवन: प्रेमचंद सादगी से जीते थे और उनके पास अलग-अलग पोशाकें रखने की आदत नहीं थी।
- स्वाभाविकता: वे जैसा थे, वैसा ही फोटो में खिंच जाते थे, बिना दिखावे या बनावट के।
- पोशाकों में बदलाव का अभाव: लेखक को अहसास होता है कि प्रेमचंद में पोशाकें बदलने का गुण नहीं था, वे अपनी सादगी में ही सहज थे।
- आर्थिक स्थिति: प्रेमचंद की आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि उनके पास फोटो के लिए अलग पोशाक रखने की संभावना कम थी।
प्रश्न 5: आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन सी बातें आकर्षित करती हैं?
उत्तर: लेखक हरिशंकर परसाई की निम्नलिखित बातें आकर्षित करती हैं:
- व्यंग्यपूर्ण शैली: सामाजिक बुराइयों पर तीखा और प्रभावी व्यंग्य।
- बोलचाल की भाषा: सामान्य भाषा का प्रयोग जो पाठक को सहज और प्रभावी लगता है।
- संरचना का अनूठापन: भाषा की मारक क्षमता और अनूठी संरचना जो व्यंग्य को और प्रभावी बनाती है।
- सामाजिक चेतना: पाखंड, भ्रष्टाचार, और बेईमानी पर प्रहार कर परिवर्तन की चेतना जगाना।
- सादगी और गहराई: प्रेमचंद के व्यक्तित्व को सादगी और सामाजिक दृष्टि के साथ प्रस्तुत करना।
प्रश्न 6: पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
उत्तर: ‘टीले’ शब्द का प्रयोग निम्नलिखित संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया है:
- सामाजिक पाखंड: समाज में व्याप्त पाखंड और रूढ़ियाँ जो रास्ते में बाधा बनती हैं।
- भ्रष्टाचार: सामाजिक और राजनैतिक भ्रष्टाचार जो प्रगति में रुकावट डालता है।
- अंतर्विरोध: समाज में मौजूद विरोधाभास जो प्रेमचंद जैसे लेखक ठोकर मारकर हटाने की कोशिश करते हैं।
- बेईमानी: सामाजिक और नैतिक बेईमानी जो रास्ते में टीले की तरह खड़ी होती है।
प्रश्न 7: प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
उत्तर: एक व्यक्ति को देखा, जिसने चमकदार सूट पहना है, लेकिन जूते पुराने और बिना पॉलिश के हैं। सोचता हूँ, बाहर से इतनी चमक-दमक, लेकिन जूते उसकी सच्चाई बयान कर रहे हैं। आज लोग बाहर से तो चमकते हैं, लेकिन अंदर से खोखले हैं। जैसे कोई माँगे का सूट पहनकर बड़प्पन दिखाए, पर जूते उसकी असलियत उजागर कर देते हैं। यह दिखावे का दौर है, जहाँ लोग सच्चाई को छिपाने में माहिर हैं, लेकिन जूते जैसे चुपके से सच बोल देते हैं।
प्रश्न 8: आपकी दृष्टि में वेश भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर: आज वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में निम्नलिखित परिवर्तन आए हैं:
- दिखावे पर जोर: लोग दिखावे और बाहरी चमक-दमक को महत्व देते हैं।
- अवसरवादिता: फोटो खिंचाने के लिए माँगे के कपड़े, जूते, या यहाँ तक कि बीवी तक माँग लेते हैं।
- इत्र और खुशबू का महत्व: लोग इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं ताकि उनकी छवि आकर्षक लगे।
- परदे का महत्व: लोग सच्चाई छिपाकर बाहरी दिखावे (परदे) पर कुर्बान हो रहे हैं।
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