Notes For All Chapters Hindi Kritika Class 9
परिचय
- लेखक का नाम: फणीश्वरनाथ रेणु।
- पाठ का प्रकार: यह एक संस्मरण (रिपोर्ताज) है, जिसमें लेखक ने बाढ़ की विभीषिका (भयानकता) का वर्णन किया है।
- मुख्य विषय: बाढ़ की तबाही, लेखक का व्यक्तिगत अनुभव, और समाज की प्रतिक्रियाएँ। लेखक ने पटना में 1967 की बाढ़ का चित्रण किया है।
- लेखक की पृष्ठभूमि: लेखक का गाँव बाढ़ प्रभावित इलाके में है, जहाँ हर साल कोसी, पनार, महानंदा और गंगा की बाढ़ आती है। लेखक तैरना नहीं जानते, लेकिन बचपन से बाढ़ राहत कार्यों में भाग लेते रहे हैं (बॉय स्काउट, स्वयंसेवक, राजनीतिक कार्यकर्ता, रिलीफ वर्कर के रूप में)।
- लेखक की रचनाएँ: बाढ़ पर कई लेख, कहानियाँ और उपन्यास लिखे हैं, जैसे जय गंगा (1947), डायन कोसी (1948), हड्डियों का पुल (1948)। उपन्यासों में भी बाढ़ की विनाश-लीलाओं का वर्णन है।नया अनुभव: लेखक ने गाँव में बाढ़ देखी, लेकिन पटना शहर में 1967 में पहली बार खुद बाढ़ से घिरे।
पाठ का सारांश
- लेखक बताते हैं कि उनका गाँव बाढ़ वाले इलाके में है, जहाँ हर साल जानवरों और लोगों के झुंड शरण लेते हैं। ट्रेन से गुजरते लोग बाढ़ की भयानकता समझते हैं।
- लेखक ने बचपन से बाढ़ देखी, लेकिन खुद कभी बाढ़ में नहीं फँसे। पटना में 1967 की बाढ़ उनका पहला व्यक्तिगत अनुभव था, जब पुनपुन नदी का पानी शहर में घुसा।
- बाढ़ की खबर सुनकर लोग तैयारी करते हैं: ईंधन, आलू, मोमबत्ती, दियासलाई, पीने का पानी और कांपोज़ की गोलियाँ जमा करते हैं।
शहर में बाढ़ फैलती है: राजभवन, मुख्यमंत्री निवास, गोलघर डूब जाते हैं। - लेखक और उनका मित्र रिक्शा से कॉफ़ी हाउस जाते हैं, लेकिन पानी आ चुका है। लोग पानी देखने जाते हैं, जिज्ञासा से पूछते हैं- “पानी कहाँ तक आ गया है?”
- पानी को ‘मृत्यु का तरल दूत’ कहा गया है, क्योंकि यह मौत जैसा भयानक है।
- गांधी मैदान में भीड़ जमा है, पानी हरियाली को डुबो रहा है। एक गँवार आदमी टिप्पणी करता है कि जब दानापुर डूब रहा था, तो शहरवाले नहीं देखने गए।
- रात में लेखक सो नहीं पाते, पुरानी यादें आती हैं। सुबह पानी घर के पास पहुँच जाता है, लेखक छत से देखते हैं।
- पानी तेज़ी से बढ़ता है, पार्क, दुकानें, झोपड़ियाँ डूब जाती हैं। लेखक सोचते हैं कि काश मूवी कैमरा या टेप-रिकॉर्डर होता, तो दृश्य कैद कर पाते।अंत में लेखक कहते हैं कि अच्छा है उनके पास कुछ नहीं, कलम भी चोरी हो गई।
मुख्य घटनाएँ और दृश्य
बाढ़ की तैयारी: लोग घर में जरूरी सामान जमा करते हैं। लेखक पटना के पश्चिमी इलाके में रहते हैं, जहाँ पानी घुसने की आशंका है।
शहर का दौरा: लेखक रिक्शा से कॉफ़ी हाउस जाते हैं। रास्ते में लोग पानी देखने जा रहे हैं। पानी झाग-फेन के साथ आ रहा है, जैसे साँपों की परछाइयाँ।
गांधी मैदान: हजारों लोग पानी देख रहे हैं। पानी हरियाली को डुबो रहा है। एक आदमी शहरवालों की उदासीनता पर टिप्पणी करता है।
रात की बेचैनी: लेखक फोन पर दोस्तों से बात करने की कोशिश करते हैं, लेकिन सन्नाटा है। सोने की कोशिश में सफ़ेद भेड़ों की कल्पना करते हैं, लेकिन भूरे पानी के भेड़ दिखते हैं।
सुबह का दृश्य: पानी तेज़ी से आता है। बच्चे किलोल करते हैं। पार्क, दुकानें डूब जाती हैं। लेखक छत से देखते हैं, पानी का नाच और कलकल रव सुनते हैं।
भावनाएँ: लेखक डरते हैं, लेकिन रिक्शावाला बहादुर है। पानी को मौत का दूत कहते हैं।
महत्वपूर्ण उद्धरण और भाव
- मृत्यु का तरल दूत: बाढ़ के पानी को कहा गया है, क्योंकि यह मौत की तरह आता है और तबाही मचाता है।
- ईह! जब दानापुर डूब रहा था तो पटनियाँ बाबू लोग उलटकर देखने भी नहीं गए… अब बूझो! – शहरवालों की उदासीनता पर व्यंग्य, कि वे गाँव की बाढ़ पर ध्यान नहीं देते।
- अब भूली-बिसरी याद नहीं। बेहतर है, आँखें मूंदकर सफ़ेद भेड़ों के झुंड देखने की चेष्टा करूँ… – लेखक की बेचैनी और पानी की कल्पना।अच्छा है, कुछ भी नहीं। कलम थी, वह भी चोरी चली गई। – लेखक की निराशा, कि कैमरा या रिकॉर्डर न होने से दृश्य कैद नहीं कर पाए।

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