Notes For All Chapters Hindi Kritika Class 9
पाठ का सार –
शहर के सेमल का तप्पड़ मोहल्ले के आखिरी घर में पहुँचकर उसने दोनों हाथों से अपना मिट्टी से भरा कंटर उतारा। फिर ‘माटी वाली’ इस प्रकार आवाश लगाई। टिहरी शहर का हर आदमी, मकान मालिक, किराएदार, बूढ़े-बच्चे सभी माटी वाली को जानते हैं। टिहरी शहर में लाल मिट्टी देने वाली वह अकेली ही है। उसका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है। उसके बगैर तो लगता है कि टिहरी शहर में चूल्हा जलना ही बंद हो जाएगा। भोजन के बाद समस्या उत्पन्न हो जाएगी क्योंकि पूरे शहर में चैाके-चूल्हे की लिपाई से लेकर कमरों तथा मकानों की लिपाई-पुताई के लिए लाल मिट्टी वही देती है। मकान मालिकों के साथ-साथ नए किराएदार भी एक बार अपने आँगन में माटी वाली को देख उसके ग्राहक बन जाते हैं क्योंकि वह माटी वाली हरिजन बुढ़िया घर-घर जाकर मिट्टी देने का काम करती है।
शहरवासी र्सिफ मिट्टी वाली को ही नहीं, बल्कि उसके कंटर (कनस्तर) को भी पहचानते हैं। उसका कनस्तर बिना ढक्कन का होता है और उसके सिर पर रखे एक डिल्ले पर टिका रहता है। मिट्टी का कंटर उसने ज़मीन पर रखा ही था कि सामने वाले घर की एक छोटी लड़की कामिनी दौड़कर आई और बोली कि माँ ने बुलाया है। मालकिन के कहने पर माटी वाली ने माटी घर के कोने में उड़ेल दी। मालकिन ने उससे कहा कि तुम बड़ी भाग्यवान हो, चाय के टाइम पर आई हो। मकान मालकिन ने उसे दो रोटी लाकर दी और चाय लेने रसोई में चली गई। जब तक मालकिन चाय लेकर आई तब तक माटी वाली ने एक रोटी डिल्ले में अपने बुड्ढे के लिए छुपा ली और झूठ-मूठ का मुँह चलाकर खाना खाने का दिखावा करने लगी। फिर एक राटी चाय क साथ खाली। माटी वाली पीतल का गिलास देखकर मालकिन से बोली, ‘‘आपने अभी तक पीतल के गिलास सँभालकर रखे हैं ! ’’ इस पर मालकिन ने कहा कि ये बतर्न पुरखों की गाढी़ कमाई से खरीदे गए हैं। इसलिए इन्हें हराम के भाव बेच देने को मेरा मन नहीं करता। आज इन चीशों की कीमत नहीं रह गई। बाशार में पीतल के दाम पूछो तो दिमाग चकराने लगता है। व्यापारी घरों से हराम के भाव ये बरतन ले जाते हैं। अपनी चीजों का मोह बहुत बुरा होता है। मैं यह सोचकर पागल हो जाती हूँ कि इस उमर में इस शहर को छोड़कर हम कहाँ जाएँगे। माटी वाली कहती है कि ठवुफराइन जी, शमीन-जायदादों वाले तो कहीं भी रह लेंगे। परंतु मेरा क्या होगा। मेरी तरप़ फ तो कोई देखने वाला भी नहीं है।
माटी वाली चाय पीकर सामने वाले घर में चली गई। उस घर में भी कल हर हालत में मिट्टी ले आने के आदेश के साथ उसे दो रोटियाँ मिल गईं। उन रोटियों को माटी वाली ने अपने बुड्ढे के लिए कपड़े के दूसरे छोर पर बाँध् लिया। वह सोचती है कि इन रोटियों को देखकर उसके बुड्ढे का चेहरा खिल उठेगा। अभी घर तक जाने में उसे एक घंटा लगेगा। माटाखान से मिट्टी लाने में पूरा दिन लग जाता है। आज वह अपने बुड्ढे को रूखी रोटी नहीं देगी। पहले वह प्याज को वूफटकर तल देगी, फिर रोटी दिखाएगी। सब्जी और दो रोटियाँ अपने बुड्ढे को परोस देगी। वह एक ही रोटी खा पाएगा। हद से हद डेढ़। बची डेढ़ रोटी से वह अपना काम चला लेगी। इस प्रकार हिसाब लगाती हुई वह घर पहुँची। आज माटी वाली के पैरों की आहट सुनकर उसका बुड्ढा चैंका नहीं। उसने अपनी नशरें उसकी ओर नहीं घुमाईं। घबराई हुई माटी वाली ने उसे छूकर देखा। वह अपनी माटी छोड़कर जा चुका था। टिहरी बाँध् की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया है। शहर में पानी भर रहा है। लोगों को सरकार की तरफ से उन्हें रहने के लिए शमीन दूसरी जगह दी जा रही है। लोग दूसरी जगह जा रहे हैं।
पुनर्वास के साहब ने बुढ़िया से पूछा कि कहाँ रहती हो?
‘‘तहसील से अपने घर का प्रमाण-पत्रा ले आना।’’
‘‘मेरी ज़िदगी तो घरों में मिट्टी देते गुज़र गई।’’
‘‘माटी कहाँ से लाती हो?’’
‘‘माटाखान से।’’
‘‘माटाखान तेरे नाम है?’’
‘‘माटाखान तो मेरी रोज़ी है साहब।’’
‘‘हमें शमीन के कागज़ चाहिए, रोज़ी के नहीं।’’
‘‘बाँध् बनने के बाद मैं क्या खाउँगी?’’’
‘‘इस बात का पैफसला तो हम नहीं कर सकते। यह बात तो तुझे खुद ही तय करनी पड़ेगी।’’
शहर में पानी भर रहा है। वुफल श्मशान घाट डूब गए हैं। लोग घर छोड़कर जा रहे हैं। माटी वाली अपनी झोंपड़ी के बाहर बैठी गाँव के हर आने-जाने वाले से एक ही बात कहती है-‘‘गरीब आदमी का श्मशान नहीं डूबना चाहिए।’’
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