Notes For All Chapters Hindi Kshitij Class 9
परिचय
रसखान कौन थे?
- रसखान का मूल नाम सैयद इब्राहिम था।
- जन्म: सन् 1548 में, दिल्ली के आस-पास।
- कृष्ण भक्ति में इतने डूबे कि गोस्वामी विठ्ठलनाथ से दीक्षा लेकर ब्रजभूमि में बस गए।
- मृत्यु: सन् 1628 के लगभग।
- रसखान एक प्रमुख कृष्णभक्त कवि थे, जिनकी भक्ति और प्रेम की रचनाएँ प्रसिद्ध हैं।
रचनाएँ:
- उनकी दो प्रमुख कृतियाँ: सुजान रसखान और प्रेमवाटिका।
- उनकी रचनाओं का संग्रह रसखान रचनावली के नाम से उपलब्ध है।
- उनके काव्य में कृष्ण की रूप-माधुरी, ब्रज-महिमा, और राधा-कृष्ण की प्रेम-लीलाओं का सुंदर वर्णन है।
काव्य की विशेषताएँ:
विषय-वस्तु:
- कृष्ण और ब्रजभूमि के प्रति गहरा प्रेम और समर्पण।
- भाव-विह्वलता, प्रेम की तन्मयता और उल्लास।
भाषा:
- ब्रजभाषा का सरस, सरल और मनोरम प्रयोग।
- शब्दों का चयन मार्मिक और व्यंजक शैली में।
- कोई शब्दाडंबर (बनावटीपन) नहीं।
प्रभाव:
- रसखान की रचनाएँ भक्ति और प्रेम के रस से भरी हैं, जो पाठकों को भाव-विभोर करती हैं।
रसखान के सवैये
सवैया छंद:
- यह एक वर्णिक छंद है, जिसमें 22 से 26 वर्ण होते हैं।
- ब्रजभाषा में बहुत लोकप्रिय छंद।
1. पहला सवैया: ब्रजभूमि और कृष्ण के प्रति समर्पण
पंक्तियाँ:
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।
भाव:
- रसखान कहते हैं कि यदि वे मनुष्य हैं, तो वे ब्रज के गोकुल गाँव में ग्वालों के साथ रहना चाहते हैं।
- यदि पशु हैं, तो नंद की गायों के बीच चरना चाहते हैं।
- यदि पहाड़ हैं, तो वह गोवर्धन पर्वत बनना चाहते हैं, जिसे कृष्ण ने इंद्र से बचाने के लिए उठाया था।
- यदि पक्षी हैं, तो यमुना के किनारे कदंब की डाल पर बसेरा करना चाहते हैं।
- यह सवैया ब्रजभूमि और कृष्ण के प्रति उनके अनन्य प्रेम को दर्शाता है।
2. दूसरा सवैया: ब्रज के प्रति प्रेम और त्याग
पंक्तियाँ:
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं।।
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।।
भाव:
- रसखान कहते हैं कि वे एक लकुटी (छड़ी) और कामरिया (कंबल) के लिए तीनों लोकों का राज छोड़ सकते हैं।
- आठ सिद्धियाँ (अलौकिक शक्तियाँ) और नौ निधियों (खजाने) का सुख भी वे नंद की गायें चराने के लिए त्याग सकते हैं।
- वे ब्रज के जंगल, बाग, और तालाबों को अपनी आँखों से देखना चाहते हैं।
- करोड़ों सोने-चाँदी के महलों को भी वे करील के काँटेदार झाड़ियों के कुंज पर न्योछावर कर सकते हैं।
3. तीसरा सवैया: कृष्ण के रूप की चाह
पंक्तियाँ:
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।।
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।
भाव:
- गोपी कहती है कि वह कृष्ण का रूप धारण करना चाहती है: मोरपंख सिर पर रखेगी, गुंज की माला पहनेगी, पीतांबर ओढ़ेगी, और गायों के साथ ग्वालों संग घूमेगी।
- वह रसखान से कहती है कि वह कृष्ण के कहने पर सारा स्वाँग (रूप) धारण कर लेगी, लेकिन मुरली को अपने होंठों पर नहीं रखेगी, क्योंकि वह मुरलीधर (कृष्ण) के होंठों की है।
- यह सवैया गोपियों की कृष्ण के प्रति मुग्धता और प्रेम को दर्शाता है।
4. चौथा सवैया: मुरली और कृष्ण की मुस्कान का प्रभाव
पंक्तियाँ:
काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै।।
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।।
भाव:
- गोपी कहती है कि जब कृष्ण मुरली की मंद धुन बजाते हैं, तो वह उनके कानों में उँगली डालकर रहती है, ताकि वह धुन न सुने।
- लेकिन मुरली की मोहक धुन से वह गायों के साथ अट्टालिका पर चढ़ जाती है।
- वह पूरे ब्रज को पुकारकर कहती है कि कल कोई कितना भी समझाए, लेकिन कृष्ण की मुस्कान का आकर्षण कभी नहीं भूलता।
- यह सवैया मुरली की धुन और कृष्ण की मुस्कान के अचूक प्रभाव को दर्शाता है।
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