Notes For All Chapters Hindi Kshitij Class 9
परिचय
जन्म: 1922 में मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में।
शिक्षा: नागपुर विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में पीएच.डी.।
योगदान: भारत के अग्रणी समाज वैज्ञानिक।
मृत्यु: 1996।
प्रमुख पुस्तकें:
- मानव और संस्कृति
- परंपरा और इतिहास बोध
- संस्कृति तथा शिक्षा
- समाज और भविष्य
- भारतीय ग्राम
- संक्रमण की पीड़ा
- विकास का समाजशास्त्र
- समय और संस्कृति
कार्य:
- विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन।
- कई संस्थानों में प्रमुख पदों पर कार्य।
- भारत की जनजातियों और ग्रामीण समुदायों पर लेखन।
- जटिल विचारों को तार्किक और सहज भाषा में प्रस्तुत करना।
- विशेषता: जीवन, समाज और संस्कृति के ज्वलंत विषयों पर विश्लेषण और स्थापनाएँ।
उपभोक्तावाद की संस्कृति
निबंध का विषय: बाजार के प्रभाव में आ रहे समाज की वास्तविकता।
लेखक की चिंता:
- लोग विज्ञापनों की चमक-दमक के कारण वस्तुओं के पीछे भाग रहे हैं।
- गुणवत्ता पर ध्यान नहीं, दिखावे की जीवनशैली अपनाई जा रही है।
- यह सभ्यता के विकास के लिए चिंताजनक है।
- उपभोक्तावाद सामाजिक अशांति और विषमता को बढ़ा रहा है।
मुख्य बिंदु
- उपभोक्तावाद का दर्शन:
- नई जीवनशैली और दर्शन का उदय।
- उत्पादन पर जोर, उपभोग को सुख का आधार माना जा रहा है।
- लोग उत्पादों को समर्पित हो रहे हैं, उनका चरित्र बदल रहा है।
2. विलासिता और विज्ञापन:
बाजार विलासिता की वस्तुओं से भरा है, जो लोगों को लुभाती हैं।
उदाहरण:
- टूथपेस्ट: दाँतों को चमकाने, दुर्गंध हटाने, मसूड़ों को मजबूत करने के दावे।
- साबुन: खुशबू, ताजगी, जर्म्स से सुरक्षा, गंगाजल युक्त।
- सौंदर्य प्रसाधन: महंगे परफ्यूम, क्रीम, जो प्रतिष्ठा का प्रतीक।
- पुरुषों के लिए: आफ्टर शेव, कोलोन, और अन्य सामग्रियाँ।
विज्ञापन सम्मोहन और वशीकरण की शक्ति रखते हैं।
3. दिखावे की संस्कृति:
- बुटीक, ट्रेंडी और महंगे परिधान, फैशन में प्रतिस्पर्धा।
- घड़ियाँ, म्यूजिक सिस्टम, कंप्यूटर दिखावे के लिए खरीदे जाते हैं।
- पाँच सितारा होटल, अस्पताल, स्कूल, और यहाँ तक कि अंतिम संस्कार की व्यवस्था भी।
- सामान्य लोग भी इस जीवनशैली को ललचाई नजरों से देखते हैं।
4. उपभोक्तावाद के कारण:
- सामंती संस्कृति का नया रूप।
- परंपराओं का अवमूल्यन, आस्थाओं का क्षरण।
- पश्चिमी संस्कृति की नकल, बौद्धिक दासता, और सांस्कृतिक उपनिवेश बनना।
- छद्म आधुनिकता की स्वीकृति।
5. परिणाम:
- संसाधनों का अपव्यय।
- सामाजिक अशांति और वर्गों के बीच दूरी बढ़ना।
- जीवन की गुणवत्ता में कमी (जैसे, जंक फूड: पीजा, बर्गर)।
- सांस्कृतिक अस्मिता का ह्रास, लक्ष्य-भ्रम।
- नैतिकता और मर्यादाएँ कमजोर होना, स्वार्थ का बढ़ना।
6. लेखक की सलाह:
- गांधी जी का कथन: स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभावों के लिए खुले रहें, लेकिन अपनी नींव को मजबूत रखें।
- उपभोक्तावाद सामाजिक नींव को हिला रहा है, यह एक बड़ी चुनौती है।

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