Notes For All Chapters Hindi Kshitij Class 9
परिचय
जन्म: 1922 में जमानी गाँव, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश।
शिक्षा: नागपुर विश्वविद्यालय से एम.ए.।
पेशा:
- कुछ समय तक अध्यापन।
- 1947 से स्वतंत्र लेखन।
- जबलपुर से वसुधा पत्रिका निकाली, जिसकी हिंदी साहित्य में सराहना हुई।
मृत्यु: 1995।
साहित्यिक योगदान:
- हिंदी के प्रमुख व्यंग्य लेखक।
प्रमुख रचनाएँ:
- कहानी संग्रह: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे।
- उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज।
- निबंध संग्रह: तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, पगडंडियों का जमाना, सदाचार का तावीज़, शिकायत मुझे भी है, और अंत में।
- व्यंग्य संग्रह: वैष्णव की फिसलन, तिरछी रेखाएँ, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौर।
विशेषताएँ:
- सामाजिक, राजनैतिक, और धार्मिक पाखंड, भ्रष्टाचार, और बेईमानी पर तीखा व्यंग्य।
- परिवर्तन की चेतना जगाने वाला लेखन।
- कोरे हास्य से अलग, आदर्शों के पक्ष में व्यंग्य।
- बोलचाल की सामान्य भाषा, लेकिन संरचना के अनूठेपन से मारक क्षमता।
प्रेमचंद के फटे जूते:
- निबंध में प्रेमचंद की सादगी और सामाजिक दृष्टि का विश्लेषण।
- आज के दिखावे और अवसरवादिता पर व्यंग्य।
प्रेमचंद के फटे जूते
विषय:
- प्रेमचंद की एक फोटो के आधार पर उनके व्यक्तित्व और समाज की विसंगतियों पर व्यंग्य।
- फोटो में प्रेमचंद की सादगी (फटा जूता) और उनकी तीखी सामाजिक दृष्टि को दर्शाया।
भाषा-शैली: सरल, व्यंग्यात्मक, और भावनात्मक।
मुख्य बिंदु
1. प्रेमचंद की फोटो:
- प्रेमचंद पत्नी के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं।
- पहनावा: मोटे कपड़े की टोपी, कुरता, धोती, और केनवस के जूते।
- बाएँ जूते में छेद, अँगुली बाहर निकली।
- चेहरा: गालों की हड्डियाँ उभरी, घनी मूँछें, अधूरी मुसकान (व्यंग्य और उपहास भरी)।
2. लेखक की प्रतिक्रिया:
- प्रेमचंद की सादगी पर आश्चर्य: फोटो के लिए भी फटा जूता, कोई लज्जा या संकोच नहीं।
- फोटो का महत्व नहीं समझते, वरना जूता माँग लेते।
- लेखक उनकी सादगी से भावुक, लेकिन व्यंग्य-मुसकान से हौसला पस्त।
3. प्रेमचंद का व्यक्तित्व:
- सादा जीवन, कोई दिखावा नहीं।
- सामाजिक विसंगतियों (पाखंड, शोषण) पर तीखी दृष्टि।
- फटे जूते से समाज के ‘टीले’ (रूढ़ियों, अन्याय) को ठोकर मारने का प्रतीक।
- ‘नेम-धरम’ उनकी मुक्ति, न कि बंधन।
4. समाज पर व्यंग्य:
- लोग दिखावे के लिए इत्र, कोट, मोटर, यहाँ तक कि बीवी भी माँग लेते हैं।
- जूता टोपी से कीमती, लोग जूते के लिए टोपियाँ कुर्बान करते हैं।
- लेखक का जूता ऊपर से ठीक, लेकिन तला फटा, जो दिखावे की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
- प्रेमचंद की अँगुली बाहर, लेकिन पाँव सुरक्षित; लोग अँगुली छिपाकर तलुआ घिसते हैं।
5. प्रेमचंद की ठोकर:
- जूता फटने का कारण: सामाजिक रूढ़ियों और अन्याय को ठोकर मारना।
- प्रेमचंद समझौता नहीं करते, जैसे उनकी रचनाओं (गोदान, पूस की रात, कफन) में दिखता है।
- उनकी अँगुली घृणित (पाखंड, शोषण) की ओर इशारा करती है।
6. लेखक का संदेश:
- प्रेमचंद की व्यंग्य-मुसकान उन लोगों पर है जो दिखावे में जीते हैं और अन्याय से समझौता करते हैं।
- लेखक उनकी सादगी, साहस, और सामाजिक दृष्टि की प्रशंसा करता है।

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