Notes For All Chapters Hindi Sanchayan Class 9
परिचय
‘स्मृति’ पाठ में लेखक श्रीराम शर्मा ने अपनी बचपन की एक साहसिक घटना का वर्णन किया है, जो सन् 1908 में घटी। यह कहानी एक ग्यारह वर्षीय बालक के साहस, डर, और जिम्मेदारी के भाव को दर्शाती है। लेखक ने एक काले साँप से भरे कुएँ में गिरी चिट्ठियों को निकालने के लिए अपने साहस और बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। यह पाठ बच्चों की शरारत, भय, और दृढ़ संकल्प को रोचक ढंग से प्रस्तुत करता है।
पाठ का सार
सन् 1908 के जाड़ों में, लेखक और उनका छोटा भाई झरबेरी के बेर खा रहे थे, जब उन्हें भाई साहब ने जरूरी चिट्ठियाँ मक्खनपुर डाकखाने में डालने के लिए बुलाया। रास्ते में एक कुएँ के पास, जिसमें एक काला साँप था, लेखक ने शरारत में ढेला फेंका। इस दौरान उनकी टोपी से चिट्ठियाँ कुएँ में गिर गईं। डर और जिम्मेदारी के बीच लेखक ने कुएँ में उतरकर चिट्ठियाँ निकालने का साहसिक निर्णय लिया। साँप के खतरे के बावजूद, उन्होंने धोतियों को जोड़कर रस्सी बनाई और साँप से सावधानी बरतते हुए चिट्ठियाँ निकाल लीं। इस घटना को लेखक ने 1915 में अपनी माँ को बताया, जिन्होंने भावुक होकर उन्हें गले लगाया।
मुख्य बिंदु
- घटना का समय और स्थान:
- यह घटना सन् 1908 के दिसंबर या जनवरी में हुई, जब जाड़ों की ठंड और बूँदा-बाँदी के कारण बहुत सर्दी थी।
- लेखक और उनका छोटा भाई गाँव से मक्खनपुर डाकखाने की ओर जा रहे थे।
- भाई साहब का आदेश:
- लेखक को भाई साहब ने जरूरी चिट्ठियाँ डाकखाने में डालने के लिए कहा। लेखक को पिटने का डर था, क्योंकि उन्हें लगा कि बेर खाने के कारण बुलाया गया होगा।
- चिट्ठियाँ टोपी में रखी गईं, क्योंकि कुर्ते में जेब नहीं थी।
- कुएँ और साँप की शरारत:
- रास्ते में एक कच्चा कुआँ था, जिसमें एक काला साँप था। लेखक और उनकी टोली रोजाना उसमें ढेले फेंककर साँप की फुसकार सुनते थे।
- यह शरारत उनकी आदत बन गई थी। एक दिन ढेला फेंकते समय टोपी से चिट्ठियाँ कुएँ में गिर गईं।
- चिट्ठियाँ गिरने का दुख:
- चिट्ठियाँ गिरने से लेखक घबरा गए और रोने लगे। छोटा भाई जोर-जोर से रो रहा था, जबकि लेखक चुपचाप आँसू बहा रहे थे।
- उन्हें पिटने का डर और चिट्ठियाँ न पहुँचने की जिम्मेदारी सता रही थी।
- कुएँ में उतरने का साहसिक निर्णय:
- लेखक ने चिट्ठियाँ निकालने के लिए कुएँ में उतरने का फैसला किया, जो साँप के खतरे के कारण बहुत जोखिम भरा था।
- उन्होंने और छोटे भाई ने धोतियों को जोड़कर रस्सी बनाई, जिसे कुएँ के डेंग से बाँधा गया। छोटे भाई को रस्सी पकड़ने को कहा गया।
- साँप के साथ मुठभेड़:
- कुएँ में उतरते समय लेखक ने देखा कि साँप फन फैलाए उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। डंडा नीचे लटक रहा था, जिसके कारण साँप और क्रोधित था।
- लेखक ने कुएँ की दीवार पर पैर टिकाकर सावधानी से उतरने की कोशिश की। साँप ने डंडे पर कई बार वार किया, जिससे लेखक डर गए।
- चिट्ठियाँ निकालने की प्रक्रिया:
- लेखक ने डंडे से चिट्ठियाँ सरकाने की कोशिश की। साँप ने डंडे पर हमला किया, जिससे लेखक उछल गए।
- दूसरी कोशिश में साँप डंडे से चिपट गया, लेकिन लेखक ने चिट्ठियाँ उठा लीं और उन्हें धोती में बाँधकर छोटे भाई को ऊपर खिंचवाया।
- साँप से डंडा छुड़ाने के लिए लेखक ने मिट्टी फेंकी और साँप का ध्यान भटकाकर डंडा उठा लिया।
- कुएँ से बाहर निकलना:
- लेखक ने केवल हाथों के बल 36 फुट ऊपर चढ़कर कुएँ से बाहर आए। वे थक गए थे, लेकिन साहस के कारण कामयाब हुए।
- उन्होंने एक गवाह को चुप रहने की ताकीद की और चिट्ठियाँ डाकखाने पहुँचाई।
- माँ को घटना सुनाना:
- 1915 में मैट्रिक पास करने के बाद लेखक ने यह घटना अपनी माँ को सुनाई। माँ ने भावुक होकर उन्हें गले लगाया

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