Notes For All Chapters Hindi Sanchayan Class 9
परिचय
यह पाठ लेखक धर्मवीर भारती के जीवन की एक भावुक घटना पर आधारित है। इसमें लेखक ने अपनी किताबों के प्रति लगाव और अपने निजी पुस्तकालय की शुरुआत की कहानी बताई है। जुलाई 1989 में लेखक को तीन हार्ट अटैक हुए, जिसके बाद वे मौत के करीब पहुँच गए। घर लौटकर वे अपने किताबों वाले कमरे में लेटे रहते हैं और किताबों को देखकर अपने जीवन की यादें ताजा करते हैं। यह पाठ किताबों के महत्व और पढ़ने के शौक को दर्शाता है।
पाठ का सार
लेखक को जुलाई 1989 में तीन गंभीर हार्ट अटैक होते हैं और वे मौत के करीब पहुँच जाते हैं। डॉक्टरों के प्रयास से वे बचते हैं, लेकिन हार्ट का 60% हिस्सा नष्ट हो जाता है। घर लौटकर वे अपने किताबों वाले कमरे में रहते हैं और किताबों को देखकर सोचते हैं कि उनके प्राण इन किताबों में बसते हैं। लेखक बचपन से किताबों के शौक के बारे में बताते हैं। घर में पत्रिकाएँ आती थीं, जिनसे पढ़ने की आदत लगी। पिता ने पढ़ने को प्रोत्साहन दिया। स्कूल में अच्छे नंबर आने पर इनाम में किताबें मिलीं। पिता ने एक खाना किताबों के लिए दिया, जो निजी लाइब्रेरी की शुरुआत थी। लेखक ने पहली किताब ‘देवदास’ अपने पैसों से खरीदी। आज उनके पास हजारों किताबें हैं, जो उन्हें जीवन देती हैं।
मुख्य बिंदु
- लेखक की बीमारी:
- जुलाई 1989 में लेखक को तीन ज़बरदस्त हार्ट अटैक हुए। एक अटैक इतना गंभीर था कि डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
- डॉक्टर बोर्जेस ने 900 वॉल्ट्स के शॉक दिए, जिससे प्राण लौटे, लेकिन हार्ट का 60% हिस्सा नष्ट हो गया।
- केवल 40% हार्ट बचा, जिसमें तीन अवरोध हैं। ओपेन हार्ट ऑपरेशन की सलाह दी गई, लेकिन सर्जन हिचक रहे थे क्योंकि ऑपरेशन के बाद हार्ट रिवाइव न होने का डर था।
- लेखक को घर पर विश्राम करने को कहा गया। वे किताबों वाले कमरे में लेटे रहते हैं और किताबों को देखते हैं।
- किताबों से लगाव:
- लेखक को लगता है कि उनके प्राण किताबों में बसते हैं, जैसे परी कथाओं में राजा के प्राण तोते में रहते हैं।
- कमरे में फ़र्श से छत तक किताबों से भरी अलमारियाँ हैं, जो पिछले 40-50 वर्षों में जमा हुई हैं।
- लेखक दिन-भर किताबें और सुपारी के पेड़ के पत्ते देखते रहते हैं।
- बचपन में पढ़ने का शौक:
- घर में आर्य समाज का प्रभाव था। माँ ने कन्या पाठशाला स्थापित की थी।
- पिता ने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी, जिससे आर्थिक कष्ट थे, लेकिन पत्रिकाएँ आती थीं: आर्यमित्र साप्ताहिक, वेदोदम, सरस्वती, गृहिणी, बालसखा, चमचम।
- लेखक को परियों, राजकुमारों, दानवों की कहानियाँ पसंद थीं। वे खाना खाते समय भी पढ़ते।
- घर में उपनिषद्, सत्यार्थ प्रकाश जैसी किताबें थीं। स्वामी दयानंद की जीवनी लेखक को बहुत प्रभावित करती थी।
- स्कूली पढ़ाई और माँ-पिता का रवैया:
- माँ चिंतित रहतीं कि लेखक स्कूली किताबें नहीं पढ़ता, पास कैसे होगा।
- पिता कहते थे कि जीवन में यही पढ़ाई काम आएगी।
- लेखक की शुरुआती पढ़ाई घर पर हुई। तीसरे दर्जे में स्कूल में भर्ती हुए।
- पिता ने लोकनाथ की दुकान पर शरबत पिलाया और वादा लिया कि स्कूली किताबें भी पढ़ेंगे।
- लेखक पाँचवें दर्जे में पहले आए। इनाम में दो अंग्रेज़ी किताबें मिलीं: एक पक्षियों पर, दूसरी जहाजों पर। इनसे नई दुनिया खुली।
- निजी पुस्तकालय की शुरुआत:
- पिता ने लेखक को एक खाना किताबों के लिए दिया और कहा कि यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है।
- लेखक ने किताबें जमा करनी शुरू कीं। पिता की मौत के बाद आर्थिक संकट बढ़ा, लेकिन पढ़ने का शौक बना रहा।
- लाइब्रेरी में उपन्यास पढ़े: दुर्गेशनंदिनी, कपाल कुण्डला, आनंदमठ, अन्ना करेनिना, पेरिस का कुबड़ा, मदर, आदि।
- ट्रस्ट से पैसे मिलते थे पाठ्यपुस्तकें खरीदने के लिए। पुरानी किताबें बेचकर नई खरीदते।
- पहली किताब की खरीदारी:
- इंटरमीडिएट पास करने के बाद पुरानी किताबें बेचकर बी.ए. की किताबें खरीदीं। दो रुपये बच गए।
- सिनेमा ‘देवदास’ देखने गए, लेकिन किताब की दुकान पर ‘देवदास’ किताब देखी। दस आने में खरीद ली।
- माँ को पैसे लौटाए। माँ की आँखों में आँसू आ गए। यह लेखक की पहली निजी किताब थी।
- आज का पुस्तक संकलन:
- आज हजारों किताबें हैं: उपन्यास, नाटक, कथा-संकलन, जीवनियाँ, संस्मरण, इतिहास, कला, पुरातत्त्व, राजनीति।
- हिंदी-अंग्रेज़ी लेखक: रेनर मारिया रिल्के, स्टीफ़ेन ज़्वीग, मोपाँसा, चेखव, टालस्टाय, दास्तोवस्की, आदि।
- हिंदी में: कबीर, तुलसी, सूर, रसखान, जायसी, प्रेमचंद, पंत, निराला, महादेवी।
- मराठी कवि विंदा करंदीकर ने कहा कि इन किताबों के आशीर्वाद से लेखक बचे हैं।

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