पाठ का सार
लेखक ने कहा है कि मनुष्यों की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं। प्राय: पोशाक की समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्ज़ा निश्चित करती है। हम जब झुककर निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं तो यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन जाती है। बाज़ार में खरबूजे बेचने आई एक औरत कपड़े में मुँह छिपाए सिर को घुटनों पर रखे फफक-फफककर रो रही थी। पड़ोस के लोग उसे घृणा की नज़रों से देखते हैं और उसे बुरा-भला कहते हैं। पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर पता चलता है कि उसका तेईस बरस का लड़का परसों सुबह साँप के डसने से मर गया था। जो कुछ घर में था , सब उसे विदा करने में चला गया था। घर में उसकी बहू और पोते भूख से बिल-बिला रहे थे। इसलिए वह बेबस होकर खरबूज़े बेचने आई थी ताकि उन्हें कुछ खिला सके ; परंतु सब उसकी निंदा कर रहे थे , इसलिए वह रो रही थी। लेखक ने उसके दुख की तुलना अपने पड़ोस के एक संभ्रांत महिला के दुख से करने लगता है जिसके दुख से शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र-शोक से द्रवित हो उठे थे। लेखक सोचता चला जा रहा था कि शोक करने, ग़म मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और दु:खी होने का भी एक अधिकार होता है।
लेखक परिचय
यशपाल
इनका जन्म फ़िरोज़पुर छावनी में सन 1903 में हुआ। इन्होंने आरंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में और उच्च शिक्षा लाहौर में पाई। वे विद्यार्थी काल से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में जुट गए थे। अमर शहीद भगत सिंह आदि के साथ मिलकर इन्होंने भारतीय आंदोलन में भाग लिया। सन 1976 में इनका देहांत ही गया।
प्रमुख कार्य
कृतियाँ – देशद्रोही , पार्टी कामरेड , दादा कामरेड , झूठा सच तथा मेरी, तेरी, उसकी बात (उपन्यास) ; ज्ञानदान , तर्क का तूफ़ान , पिंजड़े की उड़ान , फूलों का कुर्ता , उत्तराधिकारी (कहानी संग्रह) और सिंहावलोकन (आत्मकथा)।
पुरस्कार – ‘मेरी,तेरी,उसकी बात’ पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
कठिन शब्दों के अर्थ
• अनुभूति – एहसास
• अधेड़ – ढलती उम्र का
• व्यथा – पीड़ा
• व्यवधान – रुकावत
• बेहया – बेशर्म
• नीयत – इरादा
• बरकत – वृद्धि
• ख़सम – पति
• लुगाई – पत्नी
• सूतक – छूत
• कछियारी – खेतों में तरकारियाँ बोना
• निर्वाह – गुज़ारा
• मेड़ – खेत के चारों ओर मिट्टी का घेरा
• तरावत – गीलापन
• ओझा – झाड़-फूँक करने वाला
• छन्नी-ककना – मामूली गहना
• सहूलियत – सुविधा