Notes For All Chapters Hindi Sparsh Class 9
परिचय
- लेखक का नाम: यशपाल (1903-1976)।
- जन्म: फिरोजपुर छावनी में सन् 1903 में।
- शिक्षा: आरंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में, उच्च शिक्षा लाहौर में।
- जीवन: विद्यार्थी काल से क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल। भगत सिंह के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया।
प्रमुख रचनाएँ:
- उपन्यास: देशद्रोही, पार्टी कामरेड, दादा कामरेड, झूठा सच, मेरी तेरी उसकी बात।
- कहानी संग्रह: ज्ञानदान, तर्क का तूफान, पिंजड़े की उड़ान, फूलों का कुर्ता, उत्तराधिकारी।
- आत्मकथा: सिंहावलोकन।
पुरस्कार: ‘मेरी, तेरी, उसकी बात’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार।
कहानी की विशेषताएँ: कथा रस से भरी, वर्ग संघर्ष, मनोविश्लेषण और व्यंग्य। समाज में सामाजिक और आर्थिक समानता पर जोर।
भाषा: हिंदी के साथ उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग।
इस कहानी का विषय: अंधविश्वास, ऊँच-नीच का भेदभाव, दुःख की समान अनुभूति। धनी लोगों की अमानवीयता और गरीबों की मजबूरी। दुःख सभी को तोड़ता है, लेकिन गरीबों को दुःख मनाने का भी अधिकार नहीं।
कहानी का सार
- कहानी में बताया गया है कि पोशाक (कपड़े) से मनुष्य का समाज में दर्जा तय होता है। लेखक बाजार में एक औरत को खरबूजे बेचते हुए रोते देखते हैं।
- औरत का बेटा साँप काटने से मर गया है, लेकिन वह रोते हुए भी दुकान लगाकर बैठी है, क्योंकि परिवार की भूख मिटानी है।
- लोग औरत की आलोचना करते हैं, कहते हैं कि वह बेशर्म है। लेकिन औरत मजबूरी में काम कर रही है।
- लेखक औरत के पास नहीं जा पाते, क्योंकि उनकी पोशाक (साहबी कपड़े) बाधा बन जाती है।
- औरत का पति ओझा के पास जाता है, लेकिन बेटा मर जाता है। औरत कहती है कि दुःख सभी को होता है, लेकिन गरीबों को रोने का भी समय नहीं।
- संदेश: दुःख सभी को समान रूप से प्रभावित करता है, लेकिन गरीबी में दुःख मनाने का अधिकार नहीं। समाज में पोशाक से भेदभाव होता है।
मुख्य पात्र
- लेखक: बाजार में औरत को देखते हैं, दुःख महसूस करते हैं, लेकिन पोशाक के कारण पास नहीं जाते। वे समाज की असमानता पर सोचते हैं।
- खरबूजे वाली औरत: गरीब, अधेड़ उम्र की। बेटे की मौत पर रो रही है, लेकिन दुकान लगाकर बैठी है। मजबूत और मजबूर, दुःख में भी काम करती है।
- भगवाना: औरत का बेटा, साँप काटने से मर जाता है। छोटा बच्चा, जो कछियारी में काम कर रहा था।
- औरत का पति: ओझा के पास जाता है, लेकिन बेटा बच नहीं पाता। गरीबी में दुःख मनाने का समय नहीं।
- लोग: बाजार में खड़े, औरत की आलोचना करते हैं। वे धनी या मध्यम वर्ग के हैं, गरीबों के दुःख को नहीं समझते।
मुख्य घटनाएँ
- लेखक बाजार में जाते हैं, फुटपाथ पर औरत को खरबूजे बेचते रोते देखते हैं।
- लोग औरत की बेशर्मी पर बात करते हैं, क्योंकि बेटा मरा है और वह दुकान लगाकर बैठी है।
- लेखक औरत के पास नहीं जा पाते, क्योंकि उनकी पोशाक बाधा है।
- औरत का बेटा भगवाना साँप काटने से मर जाता है। पति ओझा के पास जाता है, लेकिन फायदा नहीं।
- औरत रोते हुए कहती है कि भूख से बच्चे बिलबिला रहे हैं, इसलिए दुकान लगानी पड़ी।
- लेखक सोचते हैं कि पोशाक से समाज में दर्जा तय होता है, लेकिन दुःख सभी को समान तोड़ता है।
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