Notes For All Chapters Hindi Sparsh Class 9
परिचय
- कवि का नाम: रैदास (विख्यात नाम रविदास)।
- जन्म और देहांत: जन्म सन् 1388 में, देहांत सन् 1518 में, दोनों बनारस में हुए माने जाते हैं।
- ख्याति: सिकंदर लोदी इनकी ख्याति से प्रभावित होकर दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था।
- स्थान: मध्ययुगीन साधकों में विशिष्ट स्थान। कबीर की तरह संत कवियों में गिने जाते हैं।
- विचार: मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में विश्वास नहीं। व्यक्ति की आंतरिक भावनाएँ और आपसी भाईचारा ही सच्चा धर्म मानते थे।
- काव्य विशेषताएँ: सरल, व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग। इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फारसी के शब्दों का मिश्रण। उपमा और रूपक अलंकार विशेष प्रिय। सीधे-सादे पदों में हृदय के भाव व्यक्त किए। आत्मनिवेदन, दैन्य भाव और सहज भक्ति पाठक को उद्वेलित करती है।
- रचनाएँ: 40 पद सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहब’ में शामिल।
- पाठ में पद: दो पद दिए गए हैं।
पहला पद: ‘प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी’ – कवि अपने आराध्य (भगवान) से तुलना करता है। भगवान उसके अंतस (मन) में रहते हैं, हर हाल में श्रेष्ठ हैं।
दूसरा पद: भगवान की उदारता, कृपा और समदर्शी स्वभाव का वर्णन। निम्न कुल के भक्तों को अपनाया और सम्मान दिया।
पहला पद: अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी
पद की पंक्तियाँ:
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।।
भाव: कवि कहता है कि राम नाम की रट लग गई है, अब छूट नहीं सकती। भगवान से अपनी तुलना करता है:
- तुम चंदन, हम पानी: चंदन की सुगंध पानी में समा जाती है।
- तुम घन (बादल), हम मोर: मोर बादल को देखता रहता है।
- तुम दीपक, हम बाती: बाती दीपक की ज्योति से दिन-रात जलती है।
- तुम मोती, हम धागा: मोती धागे में पिरोया जाता है।
- तुम स्वामी, हम दास: रैदास ऐसी भक्ति करता है।
केंद्रीय भाव: भगवान हर जगह व्याप्त हैं, कवि उनकी भक्ति में लीन है। भगवान श्रेष्ठ हैं, कवि उनकी प्रेरणा से भक्ति करता है।
दूसरा पद: ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै
पद की पंक्तियाँ:
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मोरा, नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै।
नामदेव कबीर तिलोचनु सधना सैनु तरै।
रविदासु नामु करै बेनती से गुरु परसादि नरै तरै।।
भाव: कवि कहता है कि हे प्रभु, तेरे बिना कौन गरीब की रक्षा करेगा? तू गरीबों का स्वामी है, नीच को ऊँचा बनाता है, किसी से नहीं डरता।
- नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना, सैन जैसे निम्न कुल के भक्तों को तारा।
- रैदास गुरु की कृपा से नाम लेकर तरता है।
केंद्रीय भाव: भगवान उदार हैं, कृपा से सभी को अपनाते हैं। निम्न कुल के भक्तों को सम्मान देते हैं। भक्ति से मुक्ति मिलती है।
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