Notes For All Chapters Hindi Sparsh Class 9
परिचय
- कवि का नाम: रहीम (विख्यात नाम अब्दुर्रहीम खानखाना)।
- जन्म: लाहौर (अब पाकिस्तान) में सन् 1556 में हुआ।
- देहांत: सन् 1626 में।
- भाषा ज्ञान: अरबी, फारसी, संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार।
- प्रभाव: इनकी नीतिपरक उक्तियाँ संस्कृत कवियों से प्रभावित हैं।
- स्थान: मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में महत्वपूर्ण स्थान। अकबर के नवरत्नों में से एक थे।
- काव्य का मुख्य विषय: श्रृंगार, नीति और भक्ति।
- विशेषता: रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे। इनके दोहे सर्वसाधारण को आसानी से याद हो जाते हैं। नीतिपरक दोहे ज्यादा प्रचलित, जिनमें दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर सहज, सरल और बोधगम्य बनाया।
- भाषा: अवधी और ब्रज दोनों पर समान अधिकार। प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग।
- प्रमुख कृतियाँ: रहीम सतसई, श्रृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली, बरवै, भाषिक भेदवर्णन। ये सभी ‘रहीम ग्रंथावली’ में शामिल हैं।
- पाठ का विषय: रहीम के नीतिपरक दोहे दिए गए हैं। ये दोहे दूसरों के साथ बरताव की शिक्षा देते हैं और मानव को करणीय (क्या करना चाहिए) और अकरणीय (क्या नहीं करना चाहिए) आचरण की नसीहत देते हैं। इन्हें पढ़कर भूलना मुश्किल है और ऐसी स्थितियों में याद आते हैं।
दोहे और उनके भाव
पहला दोहा: रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।
- भाव: प्रेम का धागा मत चटकाकर तोड़ो। टूटने पर फिर नहीं मिलता, मिले तो गाँठ पड़ जाती है। अर्थ: प्रेम संबंध मत तोड़ो, टूटने पर फिर वैसा नहीं बनता।
दूसरा दोहा: रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।।
- भाव: अपने मन का दुःख मन में ही छिपाकर रखो। लोग सुनकर इठलाएँगे (मजाक उड़ाएँगे), लेकिन कोई बाँट नहीं लेगा। अर्थ: दुःख दूसरों से कहने से कम नहीं होता, लोग मजाक उड़ाते हैं।
तीसरा दोहा: एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सीचिबो, फूलै फलै अघाय।।
- भाव: एक को साधने से सब सध जाता है, सब साधने से सब चला जाता है। रहीम कहते हैं जड़ को सींचो, तो फूल-फल सब तृप्त हो जाते हैं। अर्थ: मूल (जड़) पर ध्यान दो, सब ठीक हो जाता है।
चौथा दोहा: चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस। जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस।।
- भाव: चित्रकूट में राम (अवध के राजा) रहे। रहीम कहते हैं जिस पर विपदा पड़ती है, वही इस देश (चित्रकूट) में आता है। अर्थ: दुःख में लोग शरण लेते हैं।
पाँचवा दोहा: दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं। ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि गयों तन ताहिं।।
- भाव: लंबे दोहे के अर्थ गहरे होते हैं, शब्द कम आते हैं। जैसे रहीम नट की कुंडली, सिमटकर शरीर में समा जाती है। अर्थ: छोटे शब्दों में गहरा अर्थ।
छठा दोहा: बिगरी बात बनै नही, लाख करो किन कोय। रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
- भाव: बिगड़ी बात लाख कोशिश से नहीं बनती। रहीम कहते हैं फटे दूध को मथने से मक्खन नहीं बनता। अर्थ: बिगड़े संबंध सुधारना मुश्किल।
सातवाँ दोहा: रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून। पानी गये न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।
- भाव: रहीम कहते हैं पानी रखो, बिना पानी सब सूना है। पानी जाए तो मोती, मनुष्य, चून (आटा) नहीं उबरते। अर्थ: पानी के बिना सब बेकार। पानी से जीवन, चमक और उपयोगिता।
आठवाँ दोहा: तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। कहि रहीम परकाज हित, संपति सँचहि सुजान।।
- भाव: पेड़ फल नहीं खाता, सरोवर पानी नहीं पीता। रहीम कहते हैं बुद्धिमान संपत्ति दूसरों के काम के लिए संचित करते हैं। अर्थ: धन परोपकार के लिए।
नौवाँ दोहा: रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि। जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।
- भाव: रहीम कहते हैं बड़े को देखकर छोटे को मत फेंको। जहाँ सुई काम आए, वहाँ तलवार क्या करे। अर्थ: छोटी चीजें भी महत्वपूर्ण।
दसवाँ दोहा: पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून। (दोहा 7 से दोहराया गया)।
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