भारतीवसन्तगीतिः (भारतीय वसंत गीत)
अयं पाठः आधुनिकसंस्कृतकवेः पण्डितजानकीवल्लभशास्त्रिणः “काकली” इति गीतसंग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। प्रकृतेः सौन्दर्यम् अवलोक्य एव सरस्वत्याः वीणायाः मधुरझङ्कृतयः प्रभवितुं शक्यन्ते इति भावनापुरस्सरं कविः प्रकृतेः सौन्दर्यं वर्णयन् सरस्वतीं वीणावादनाय सम्प्रार्थयते।
हिन्दी अनुवाद:
यह पाठ आधुनिक संस्कृत कवि पण्डित जानकीवल्लभ शास्त्री के “काकली” नामक गीतसंग्रह से संकलित है। प्रकृति के सौन्दर्य को देखकर ही सरस्वती की वीणा की मधुर झंकार उत्पन्न हो सकती है, इस भावना के साथ कवि प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए सरस्वती से वीणा बजाने की प्रार्थना करते हैं।
प्रथम श्लोक
निनादय नवीनामये वाणि! वीणाम्
मृदु गाय गीतिं ललित-नीति-लीनाम् ।
मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत-माला:
वसन्ते लसन्तीह सरसा रसाला:
कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम् ।।१।।
निनादय…।।
हिन्दी अनुवाद:
हे वाणी! नवीन माया से युक्त वीणा को बजाओ,
कोमल स्वर में गाओ वह गीत, जो ललित नीति में लीन हो।
मधुर पुष्पों की मंजरियों से सजी, पीली-भूरी मालाएँ,
वसंत में यहाँ चमक रही हैं, रसपूर्ण और आनंदमयी।
कोकिल की काकली से भरे ये सुन्दर समूह।
(वीणा बजाओ…)
विवरण:
कवि सरस्वती से प्रार्थना करते हैं कि वह अपनी वीणा बजाएँ। गीत कोमल और सुसंस्कृत नीति से युक्त हो। वसंत में प्रकृति मधुर, रंग-बिरंगी पुष्पमालाओं से सजी है, जो रसपूर्ण और कोकिल की काकली से युक्त हैं।
द्वितीय श्लोक
वहति मन्दमन्दं सनीरे समीरे
कलिन्दात्मजायास्सवानीरतीरे,
नतां पतिमालोक्य मधुमाधवीनाम् ।।२।।
निनादय…।।
हिन्दी अनुवाद:
हल्के-हल्के बहती है सलिलयुक्त समीर,
यमुना के तट पर, जहाँ नीले सरोवर हैं।
मधुर और माधवी लताओं को नतमस्तक देखकर।
(वीणा बजाओ…)
विवरण:
कवि यमुना के तट पर बहती मंद समीर और नीले जलाशयों का वर्णन करते हैं। मधुर और माधवी लताएँ नतमस्तक हैं, जो सरस्वती को वीणा बजाने के लिए प्रेरित करती हैं।
तृतीय श्लोक
ललित-पल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे
मलयमारुतच्चुम्बिते मञ्जुकुञ्जे,
स्वनन्तीन्ततिम्प्रेक्ष्य मलिनामलीनाम् ।।३।।
निनादय…।।
हिन्दी अनुवाद:
नाजुक पर्णों वाले तरुओं पर, पुष्पों के समूह,
मलय पर्वत की वायु से स्पर्शित सुन्दर कुंज में,
गुंजन करती भ्रमरों की शुद्ध और निर्मल शृंखला को देखकर।
(वीणा बजाओ…)
विवरण:
कवि नाजुक पत्तों और पुष्पों से सजे तरुओं का चित्रण करते हैं, जो मलय पर्वत की वायु से स्पर्शित हैं। भ्रमरों की शुद्ध गुंजन शृंखला प्रेरणा देती है कि सरस्वती वीणा बजाएँ।
चतुर्थ श्लोक
लतानां नितान्तं सुमं शान्तिशीलम्
चलेदुच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम्,
तवाकर्ण्य वीणामदीनां नदीनाम् ।।४।।
निनादय…।।
हिन्दी अनुवाद:
लताओं का अत्यंत सुन्दर और शांत स्वभाव,
हिलता-डुलता है मनोहर जल, सहज और लीलामय,
तेरी उदार वीणा की ध्वनि सुनकर, हे नदियों की स्वामिनी।
(वीणा बजाओ…)
विवरण:
लताओं का शांत सौन्दर्य और नदियों का लीलामय जल सरस्वती की वीणा की उदार ध्वनि सुनकर हिलोरें लेता है। कवि सरस्वती को नदियों की स्वामिनी कहकर वीणा बजाने की प्रार्थना करते हैं।


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