भारतीवसन्तगीतिः (भारतीय वसंत गीत)
🌿 पाठ का सारांश (संस्कृत में)
- कविः वसन्तऋतौ प्रकृतेः सौन्दर्यं दृष्ट्वा, देवी सरस्वतीं वीणावादनाय प्रार्थयति।
- सः कथयति यत् — वसन्तसमये कोकिलाः गायतः, पुष्पाणि विकसितानि, मलयानिलः सुगन्धं वहति।
- एवं रम्ये वातावरणे भगवती सरस्वती अपि वीणां मधुरं निनादयतु, यतः तस्य वीणास्वरैः जगत् आनन्दमयम् भविष्यति।
🌼 पाठ का सारांश (हिन्दी में)
- कवि वसन्त ऋतु के सुंदर दृश्य का वर्णन करते हुए देवी सरस्वती से प्रार्थना करते हैं कि वे अपनी वीणा को मधुर स्वर में बजाएँ।
- वसन्त के समय कोकिल की कूजन, पुष्पों की सुगंध, मलय पवन की मंद गति, और मधुमक्खियों की गुंजार से चारों ओर आनंद छा जाता है।
- ऐसे मनोहर वातावरण में, कवि चाहता है कि सरस्वती माँ की वीणा की ध्वनि भी गूँजे, जिससे संसार में और भी मधुरता व सौंदर्य फैल जाए।
🎶 मुख्य श्लोक (संस्कृत एवं हिन्दी सहित)
१.
निनादय नवीनामये वाणि! वीणाम्,
मृदु गाय गीतिं ललितनीतिलीनाम्।
मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमालाः,
वसन्ते लसन्तीह सरसारसालाः॥
हिन्दी अर्थ:
हे वाणी! अपनी वीणा को नवीन स्वर में मधुरतापूर्वक बजाओ। वसन्त ऋतु में आम के वृक्षों पर लगी हुई कोमल मंजरी (कलियाँ) और रसाल वृक्ष शोभायमान हैं, कोकिलों की काकली गूँज रही है। ऐसा सुंदर समय है, जब तुम्हारी वीणा की ध्वनि सबसे मधुर लगेगी।
२.
वहति मन्दमन्दं सनीरे समीरे,
कलिन्दात्मजायाः सवानीरतीरे।
नतां पतिमालोक्य मधुमाधवीनाम्॥
हिन्दी अर्थ:
यमुना के तट पर मलय पवन मंद-मंद गति से बह रहा है।
वहाँ मधुमाधवी लताएँ अपने पति रूपी वृक्ष की ओर नत होकर झूम रही हैं।
३.
ललितपल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे,
मलयमारुतच्चुम्बिते मञ्जुकुञ्जे।
स्वनन्तीन्ततिं प्रेक्ष्य मलिनामलीनाम्॥
हिन्दी अर्थ:
मलय पवन से चूमे गए सुंदर कुंजों में, पुष्पों से लदे वृक्षों पर मधुमक्खियों की गुंजार सुनाई दे रही है।
४.
लतानां नितान्तं सुमं शान्तिशीलम्,
चलेदुच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम्।
तवाकर्ण्य वीणामदीनां नदीनाम्॥
हिन्दी अर्थ:
हे वाणी! जब तुम्हारी वीणा के स्वर नदियों तक पहुँचेंगे, तब नदियों का जल भी उल्लासपूर्वक लहराने लगेगा।
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