वाडमनःप्राणस्वरूपम् (वाणी मन प्राण का स्वरुप)
1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(एक शब्द में उत्तर लिखें)
(क) अन्नस्य कीदृशः भागः मनः ? (अन्न का कैसा भाग मन है?)
उत्तर: अणिष्ठः (सूक्ष्मतम)
(ख) मथ्यमानस्य दध्नः अणिष्ठः भागः किं भवति ? (मथे हुए दही का सूक्ष्मतम भाग क्या बनता है?)
उत्तर: सर्पिः ( घी)
(ग) मनः कीदृशं भवति ? (मन कैसा होता है?)
उत्तर: अन्नमयम् (अन्नमय)
(घ) तेजोमयी का भवति ? (तेजोमयी कौन होती है?)
उत्तर: वाक् (वाणी)
(ङ) पाठेऽस्मिन् आरुणिः कम् उपदिशति ? (इस पाठ में आरुणि किसे उपदेश देते हैं?)
उत्तर: श्वेतकेतुम् (श्वेतकेतु को)
(च) “वत्स ! चिरञ्जीव” – इति कः वदति ? (“वत्स! चिरंजीवी हो” – यह कौन कहता है?)
उत्तर: आरुणिः (आरुणि)
(छ) अयं पाठः कस्याः उपनिषदः संगृहीतः ? (यह पाठ किस उपनिषद् से संगृहीत है?)
उत्तर: छान्दोग्योपनिषदः (छान्दोग्य उपनिषद्)
2. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखें)
(क) श्वेतकेतुः सर्वप्रथमम् आरुणिं कस्य स्वरूपस्य विषये पृच्छति? (श्वेतकेतु ने सबसे पहले आरुणि से किसके स्वरूप के विषय में पूछा?)
उत्तर: श्वेतकेतुः सर्वप्रथमम् आरुणिं मनसः स्वरूपस्य विषये पृच्छति। (श्वेतकेतु ने सबसे पहले आरुणि से मन (चित्त) के स्वरूप के विषय में पूछा।)
(ख) आरुणिः प्राणस्वरूपं कथं निरूपयति। (आरुणि प्राण के स्वरूप का वर्णन कैसे करते हैं?)
उत्तर: आरुणिः प्राणस्वरूपविषये कथयति ‘पीतानाम् अपां योऽणिष्ठः स प्राणः इति।’ (आरुणि प्राण के स्वरूप के विषय में कहते हैं— “जो पीते हुए जल के अति सूक्ष्म भाग में स्थित होता है, वही प्राण है।”)
(ग) मानवानां चेतांसि कीदृशानि भवन्ति? (मनुष्यों की चेतनाएँ (मन) कैसी होती हैं?)
उत्तर: यादृशमन्नादिकं गृह्णाति मानवस्तादृशमेव तस्य चित्तादिकं भवतीति। (मनुष्य जैसा अन्न आदि ग्रहण करता है, वैसा ही उसका मन (चित्त) बन जाता है।)
(घ) सर्पिः किं भवति? (घी (सर्पि) क्या होता है?)
उत्तर: मथ्यमानस्य दध्नः योऽणिमा स ऊर्ध्वः समुदीषति, तत्सर्पिः भवति। (मथे जा रहे दही का जो अति सूक्ष्म भाग ऊपर उठ जाता है, वही घी कहलाता है।)
(ङ) आरुणेः मतानुसारं मनः कीदृशं भवति? (आरुणि के मतानुसार मन कैसा होता है?)
उत्तर: आरुणेः मतानुसारं मनः अन्नमयं भवति। (आरुणि के मतानुसार मन अन्नमय (अन्न से निर्मित) होता है।)
प्रश्न 3. (अ) ‘अ’ स्तम्भस्य पदानि ‘ब’ स्तम्भेन दत्तैः पदैः सह यथयोग्यं योजयत-
(अ) ‘अ’ स्तम्भ के पदों को ‘ब’ स्तम्भ में दिए गए पदों के साथ उचित रूप से मिलाइए।
उत्तर:
‘अ’ स्तम्भः – ‘ब’ स्तम्भः
(क) मनः – अन्नमयम् → मन (मन) अन्न से बना है / अन्नमय है।
(ख) प्राणः – आपोमयः → प्राण (श्वास) जल से बना है / जलमय है।
(ग) वाक् – तेजोमयी → वाणी (वाक्) तेज से बनी है / तेजस्वी है।
(आ) अधोलिखितानां पदानां विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत-
(पाठ से निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द चुनकर लिखिए)
(i) गरिष्ठः (बड़ा ) = अणिष्ठः (छोटा)
(ii) अधः (नीचे ) = ऊर्ध्वम् (ऊपर)
(iii) एकवारम् (एक बार) = भूयः (बार-बार)
(iv) अनवधीतम् (अध्ययनहीन) = अवधीतम् (अध्ययनशील)
(v) किञ्चित् (थोड़ा) = सर्वम् (सब)
प्रश्न 4. उदाहरणमनुसृत्यस निम्नलिखितेषु क्रियापदेषु ‘तुमुन्’ प्रत्ययं योजयित्वा पदनिर्माणं कुरुत-
(उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित क्रियापदों में ‘तुमुन्’ प्रत्यय जोड़कर शब्द बनाइए।)
यथा- प्रच्छ् + तुमुन् = प्रष्टुम् (पूछने के लिए)
(क) श्रु + तुमुन् = श्रोतुम् (सुनने के लिए)
(ख) वन्द् + तुमुन् = वन्दितुम् (नमस्कार करने के लिए / वंदना करने के लिए)
(ग) पठ् + तुमुन् = पठितुम् (पढ़ने के लिए)
(घ) कृ + तुमुन् = कर्तुम् (करने के लिए)
(ङ) वि + ज्ञा + तुमुन् = विज्ञातुम् (जानने के लिए / समझने के लिए)
(च) वि + आ + ख्या + तुमुन् = व्याख्यातुम् (समझाने के लिए / व्याख्या करने के लिए)
प्रश्न 5. निर्देशानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत-
दिए गए निर्देशों के अनुसार खाली स्थान भरें।
(क) अहं किञ्चित् प्रष्टुम् इच्छामि। (इच्छ्-लट् लकारे)
(ख) मनः अन्नमयं भवति। (भू-लट् लकारे)
(ग) सावधानं श्रृणु। (श्रृ-लोट् लकारे)
(घ) तेजास्विनावधीतम् अस्तु। (अस्-लोट् लकारे)
(ङ) श्वेतकेतुः आरुणेः शिष्यः आसीत्। (अस्-लङ् लकारे)
प्रश्न 5. उदाहरणमनुसृत्य वाक्यानि रचयत-
(उदाहरण का अनुसरण करते हुए वाक्य बनाइए।)
यथा- अहं स्वदेशं सेवितुम् इच्छामि। (मैं अपने देश की सेवा करना चाहता हूँ।)
(क) अहं शिष्यम् उपदिशामि। (मैं शिष्य को उपदेश दूँगा।)
(ख) अहं गुरुं प्रणमामि। (मैं गुरु को प्रणाम करता हूँ।)
(ग) अहं शिष्यं पुस्तकम् आनेतुम आज्ञापयामि। (मैं शिष्य को पुस्तक लाने का आदेश देता हूँ।)
(घ) अहं गुरुं प्रश्नं पृच्छामि। (मैं गुरु से प्रश्न पूछता हूँ।)
(ङ) अहं भवतः सङ्केतम् अवगच्छामि। (मैं आपका संकेत समझता हूँ।)
प्रश्न 6. (अ) सन्धिं कुरुत-
(i) अशितस्य + अन्नस्य = अशितस्यान्नस्य।
हिंदी: “अशित का अन्न”
(ii) इति + अपि + अवधार्यम् = इत्यप्यवधार्यम्।
हिंदी: “इति भी अवधार्य है”
(iii) का + इयम् = केयम्।
हिंदी: “यह कौन”
(iv) नौ + अधीतम् = नावधीतम्।
हिंदी: “नौ ने अध्ययन किया”
(v) भवति + इति = भवतीति।
हिंदी: “होता है ऐसा कहा गया”
(ख) स्थूलपदानुसार प्रश्न निर्माण –
“मोटे शब्दों (मुख्य शब्दों) का उपयोग करके प्रश्न बनाइए।”
(i) मध्यमानस्य दध्नः अणिमा ऊर्ध्वं समुदीति। (मध्यमान के दधन की अणिमा ऊपर की ओर उठती है।)
प्रश्न: कस्य दधनः अणिमा ऊर्ध्वं समुदीषति? (किसका दधन की अणिमा ऊपर की ओर उठती है?)
(ii) भवता घृतोत्पत्तिरहस्यं व्याख्यातम्। (आपके द्वारा घृतोत्पत्ति का रहस्य बताया गया।)
प्रश्न: केन घृतोत्पत्तिरहस्यं व्याख्यातम्? (किसके द्वारा घृतोत्पत्ति का रहस्य बताया गया?)
(iii) आरुणिम् उपगम्य श्वेतकेतुः अभिवादयति। (श्वेतकेतु आरुणि से मिलने पर अभिवादन करता है।)
प्रश्न: आरुणिम् उपगम्य कः अभिवादयति? (आरुणि से मिलने पर कौन अभिवादन करता है?)
(iv) श्वेतकेतुः वाग्विषये पृच्छति। (श्वेतकेतु वाक् (बोलचाल) के विषय में प्रश्न करता है।)
प्रश्न: श्वेतकेतुः कस्यविषये पृच्छति? (श्वेतकेतु किस विषय में प्रश्न करता है?)
प्रश्न 7. पाठस्य सारांशं पञ्चवाक्यैः लिखत –
(पाठ को पाँच वाक्यों में सारांशित करें।)
पाठस्य सारांशः
अन्नमयं मनः भवति।
आपोमयः प्राणः भवति एवं जलमेव जीवनं भवति।
तेजोमयी वाक् भवति।
अश्यमानस्य तेजसः यः अणिमा, स ऊर्ध्वः समुदीषति, सा खलु वाग्भवति।
यादृशमन्नादिकं मानवः गृणाति तादृशमेव तस्य चित्तादिकं भवति।
हिंदी में सारांश:
अन्नमय मनः होता है।
जीवन में जल की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि जल ही जीवन है।
वाक् तेजोमयी होती है।
अश्यमान के तेजस में जो अणिमा है, वह ऊर्ध्वं समुदीषति, अर्थात् वह वाणी बनती है।
जिस प्रकार मानव अन्न आदि ग्रहण करता है, उसी प्रकार उसका चित्त भी प्रभावित होता है।
मनुष्य का मन अन्न पर निर्भर है। प्राण जल से सम्बन्ध रखते हैं और जल जीवन का आधार है। वाणी तेज से युक्त होती है। जैसा अन्न ग्रहण किया जाता है, वैसा ही उसके चित्त का स्वरूप बनता है।


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