स्वर्णकाकः (सुनहरा कौआ)
✍️ लेखक परिचय (संस्कृत में)
अयं पाठः श्री पद्मशास्त्रिणा विरचितात् “विश्वकथाशतकम्” इति कथासङ्ग्रहात् गृहीतः अस्ति। एषा कथा वर्मदेशे (म्यांमार) प्रचलिता श्रेष्ठा लोककथा अस्ति।
🌿 लेखक परिचय (हिन्दी में)
यह कहानी श्री पद्म शास्त्री द्वारा रचित “विश्वकथाशतकम्” नामक संग्रह से ली गई है। यह बर्मा (म्यांमार) देश की एक प्रसिद्ध लोककथा है। इसमें लोभ और त्याग के परिणामों को एक स्वर्ण-पक्ष वाले कौवे के माध्यम से दर्शाया गया है।
🌼 कथासार (संस्कृत में)
पुरा कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्। तस्या: दुहिता विनम्रा च मनोहरा च आसीत्। एकदा सा तण्डुलान् आतपे शोषयितुं आज्ञापिता। तत्र एकः स्वर्णपक्षः काकः आगत्य तण्डुलान् खादितवान्। बालिकया तं निवार्य प्रार्थना कृताः — “मदीया माता निर्धना अस्ति।” काकः अवदत् — “मा शुचः, अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।”
बालिका प्रातःकाले काकस्य पिप्पलवृक्षे आगता। तत्र स्वर्णमयः प्रासादः दृष्टः। काकेन तां सत्कारपूर्वकं भोजनं दत्तम्। अन्ते तिस्रः मञ्जूषाः दत्ताः। सैका लघुतमां मञ्जूषां गृहीत्वा गृहं गता। तस्या: मध्ये हीरकाणि आसन्।
द्वितीयया लुब्धया स्त्रिया तस्य रहस्यम् ज्ञातं। तया अपि पुत्री तत्स्थाने गता। परं लोभेन बृहत्तमां मञ्जूषां गृह्य तस्या: मध्ये सर्पः प्राप्तः। एवं लोभस्य दुष्परिणामः स्पष्टः दृश्यते।
🌷 कथासार (हिन्दी में)
एक गाँव में एक निर्धन वृद्धा स्त्री अपनी सज्जन और सुंदर पुत्री के साथ रहती थी।
एक दिन माँ ने कहा — “बेटी! धान के दाने धूप में सुखाकर पक्षियों से बचाना।”
उसी समय एक स्वर्ण-पक्ष वाला कौआ आया और कुछ दाने खाने लगा। बालिका ने नम्रतापूर्वक कहा — “मत खाओ, मेरी माँ बहुत गरीब है।”
कौआ बोला — “चिन्ता मत करो, कल सुबह सूर्योदय से पहले पीपल के वृक्ष के पास आना, मैं तुम्हें इन दानों का मूल्य दूँगा।”
अगले दिन बालिका गई। वहाँ एक स्वर्ण-प्रासाद देखा। कौआ ने कहा — “स्वर्ण, रजत या ताम्र सीढ़ियों में से किससे आना चाहोगी?”
वह बोली — “मैं गरीब की बेटी हूँ, ताम्र (तांबे का) सीढ़ी से आऊँगी।” परंतु उसने स्वर्ण सीढ़ी से चढ़ाया।
कौआ ने उसे स्वर्ण पात्र में भोजन कराया और तीन पेटियाँ दिखाकर कहा — “एक चुन लो।”
बालिका ने सबसे छोटी पेटी ली और घर जाकर खोली — उसमें हीरे-जवाहरात थे।
वह धनी बन गई।
दूसरी एक लालची वृद्धा ने यह सुना और अपनी पुत्री को भेजा। उसने अभिमान से कहा — “मैं स्वर्ण सीढ़ी से आऊँगी।”
कौआ ने उसे ताम्र सीढ़ी दी और ताम्र पात्र (तांबे का बर्तन) में भोजन कराया। लौटते समय उसने सबसे बड़ी पेटी ली — उसमें भयानक काला सर्प निकला।
इस प्रकार कथा सिखाती है कि लोभ का परिणाम सदा दुखद होता है, और त्याग का फल शुभ।
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