स्वर्णकाकः (सुनहरा कौआ)
🌸 संस्कृत में सारांशः —
प्रस्तुतः पाठः “स्वर्णकाकः” श्रीपद्मशास्त्रिणः “विश्वकथाशतकम्” इति कथासङ्ग्रहात् गृहीतः। एषा वर्मदेशस्य लोककथा स्वर्णपक्षकाकेन लोभस्य दुष्परिणामं त्यागस्य सुपरिणामं च दर्शति। ग्रामे निर्धना वृद्धा तस्याः विनम्रा मनोहरा दुहिता च न्यवसत्। माता तण्डुलान् सूर्यातपे रक्षितुं पुत्रीं आदिशत्। स्वर्णपक्षः रजतचञ्चुः काकः तण्डुलान् खादति हसति च। बालिका रोदति, “मदीया माता निर्धना” इति। काकः सूर्योदयात्प्राक् पिप्पलवृक्षे आगमनं मूल्यं च वदति। प्रहर्षिता सूर्योदयात्पूर्वं तत्र गत्वा स्वर्णप्रासादं दृष्ट्वा आश्चर्यति। काकः सोपानं याचति, सा ताम्रं याचति परं स्वर्णसोपानेन आरोहति। चित्रवस्तूनि, स्वर्णस्थाल्यां भोजनं च भुक्त्वा, तिस्रः मञ्जूषाः दत्त्वा एकां गृहीतुं कथति। सा लघुतमां गृहीत्वा गृहे हीरकान् दृष्ट्वा धनिका भवति। लुब्धा वृद्धा रहस्यं ज्ञात्वा स्वपुत्रीं नियोजति, सा काकं निर्भर्त्सति। काकः ताम् प्रासादं नयति, सा स्वर्णसोपानं याचति परं ताम्रं लभते, ताम्रस्थाल्यां भोजनं कृत्वा बृहत्तमां मञ्जूषां गृहीत्वा कृष्णसर्पं दृष्ट्वा लोभस्य दुष्परिणामं त्यजति। कथा नैतिकं ददाति यत् विनम्रता त्यागः च फलदायकं, लोभः दुष्फलति। पाठे एकपदेन, पूर्णवाक्येन उत्तरं, विलोमं, सन्धिः, प्रकृतिप्रत्ययं, कथनं, पञ्चमीविभक्तिः च अभ्यासाः विद्यन्ते।
🌼 हिन्दी में सारांश —
यह पाठ “स्वर्णकाकः” श्रीपद्म शास्त्री के “विश्वकथा शतक” से लिया गया है, जिसमें दुनिया भर की 100 लोककथाएँ हैं। यह म्यांमार की एक प्रसिद्ध कहानी है, जो सुनहरे कौए के जरिए लोभ के बुरे परिणाम और त्याग के अच्छे परिणाम सिखाती है। एक गाँव में एक गरीब बूढ़ी औरत और उसकी सुंदर, विनम्र बेटी रहती थी। माँ ने बेटी से चावल को धूप में सुखाने और पक्षियों से बचाने को कहा। वहाँ एक अनोखा सुनहरे पंख और चाँदी की चोंच वाला कौआ आया, जो चावल खाकर हँसने लगा। लड़की रोते हुए बोली, “मेरी माँ बहुत गरीब है, चावल मत खाओ।” कौआ बोला, “सूरज उगने से पहले पीपल के पेड़ पर आ, मैं चावल का मूल्य दूँगा।” लड़की खुश होकर सुबह वहाँ गई और पेड़ पर सुनहरा महल देखकर हैरान हुई। कौआ पूछता है कि सीढ़ी सुनहरी, चाँदी की या ताँबे की चाहिए। लड़की ताँबे की माँगती है, पर सुनहरी सीढ़ी से महल में चढ़ती है। वहाँ सुंदर चीजें देखती है और सुनहरे थाल में स्वादिष्ट खाना खाती है। कौआ तीन डिब्बियाँ देता है और एक चुनने को कहता है। वह सबसे छोटी डिब्बी लेती है, घर जाकर उसमें कीमती हीरे देखकर अमीर हो जाती है। उसी गाँव में एक लालची बूढ़ी औरत यह रहस्य जानकर अपनी बेटी को चावल की रखवाली के लिए भेजती है। वह कौए को डाँटती है। कौआ उसे भी महल ले जाता है। वह सुनहरी सीढ़ी माँगती है, पर ताँबे की मिलती है। ताँबे के थाल में खाना खाकर वह सबसे बड़ी डिब्बी चुनती है, लेकिन घर जाकर उसमें डरावना काला साँप देखकर लोभ का बुरा परिणाम समझती है और लोभ छोड़ देती है। यह कहानी सिखाती है कि विनम्रता और त्याग अच्छा फल देते हैं, पर लोभ बुरा परिणाम देता है। पाठ में एक शब्द में उत्तर, पूर्ण वाक्य में उत्तर, विलोम शब्द, संधि, प्रकृति-प्रत्यय, कहानी के पात्र और पंचमी विभक्ति के अभ्यास हैं, जो संस्कृत सीखने में मदद करते हैं।
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