गोदोहनम् (गाय का दूध दुहना)
विषय: अस्मिन् नाटके एकस्य जनस्य कथा वर्णिता यः धनवान् सुखाकांक्षी च भवितुं मासपर्यन्तं दुग्धदोहनात् विरमति, येन मासान्ते धेनोः शरीरे सञ्चितं दुग्धं एकवारमेव विक्रीय सम्पत्तिम् अर्जति। परं मासान्ते यदा सः दोहनं करोति तदा दुग्धं न प्रापति, धेनोः प्रहारैः रक्तरञ्जितः च भवति। अनेन सः अवगच्छति यत् दैनन्दिनं कार्यं यदि मासपर्यन्तं संनादति तदा लाभस्य स्थाने हानिरेव भवति।
(इस नाटक में एक व्यक्ति की कहानी है जो धनवान और सुखी होने की इच्छा से एक महीने तक गाय का दूध नहीं दुहता, ताकि महीने के अंत में एकत्रित दूध बेचकर धन कमाए। लेकिन महीने के अंत में जब वह दूध दुहने की कोशिश करता है, तो उसे दूध नहीं मिलता और गाय के प्रहार से वह रक्तरंजित हो जाता है। इससे वह समझता है कि यदि दैनिक कार्य को समय पर न किया जाए तो लाभ की जगह हानि होती है।)
नैतिक शिक्षा: दिनस्य कार्यं तस्मिन्नेव दिने कर्तव्यम्। यः एवं न करोति सः कष्टं लभते।
(दिन का काम उसी दिन करना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता, उसे कष्ट मिलता है।)
कथासारः (कहानी का सार)
प्रथमं दृश्यम् (पहला दृश्य):
मल्लिका मोदकानि साधति शिवस्तुतिं च करोति।
(मल्लिका मोदक बनाती है और शिवस्तुति करती है।)
चन्दनः मोदकगन्धेन प्रसन्नः प्रविशति।
(चंदन मोदक की सुगंध से प्रसन्न होकर आता है।)
चन्दनः मोदकं खादितुं इच्छति, परं मल्लिका सक्रोधं निवारति यत् मोदकानि पूजानिमित्तानि।
(चंदन मोदक खाना चाहता है, लेकिन मल्लिका क्रोधित होकर मना करती है क्योंकि मोदक पूजा के लिए हैं।)
मल्लिका सखीभिः सह काशीविश्वनाथमन्दिरं गङ्गास्नानाय धर्मयात्रायै च गच्छति। चन्दनं गृहव्यवस्थां धेनोः दुग्धदोहनं च परिपालयितुं कथति।
(मल्लिका अपनी सहेलियों के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर गंगा स्नान और धर्मयात्रा के लिए जाती है। वह चंदन से घर और गाय के दूध दुहने की व्यवस्था संभालने को कहती है।)
द्वितीयं दृश्यम् (दूसरा दृश्य):
चन्दनः मल्लिकायाः धर्मयात्रायाः मङ्गलकामनां करोति। सः गृहं धेनुं च संनादति।
(चंदन मल्लिका की धर्मयात्रा के लिए शुभकामनाएँ देता है और घर व गाय की देखभाल करता है।)
उमा (चन्दनस्य भगिनीपुत्री) कथति यत् मासान्ते उत्सवाय त्रिशत-सेटकं दुग्धं अपेक्ष्यते। चन्दनः प्रसन्नः व्यवस्थां करिष्यति इति वदति।
(उमा, चंदन की भतीजी, बताती है कि महीने के अंत में उत्सव के लिए 300 सेटक दूध चाहिए। चंदन प्रसन्न होकर व्यवस्था करने का वादा करता है।)
तृतीयं दृश्यम् (तीसरा दृश्य):
चन्दनः धनलाभस्य चिन्तया प्रसन्नः नन्दिनीं (धेनुं) दृष्ट्वा धनिकः भविष्यति इति कथति।
(चंदन धन कमाने की सोच से प्रसन्न होकर नंदिनी (गाय) को देखता है और धनवान होने की बात कहता है।)
सः चिन्तति यत् प्रतिदिनं दुग्धदोहनं कृत्वा दुग्धं सुरक्षितं न तिष्ठति, अतः मासान्ते एव सम्पूर्णं दोहनं करिष्यति।
(वह सोचता है कि रोज दूध दुहने से दूध सुरक्षित नहीं रहेगा, इसलिए महीने के अंत में ही पूरा दूध दुहेगा।)
सप्ताहान्ते मल्लिका प्रत्यागच्छति। चन्दनः उत्सवस्य दुग्धविशये कथति। मल्लिका तस्य विचारं चतुरतमं मनति।
(सप्ताह के अंत में मल्लिका लौटती है। चंदन उत्सव के लिए दूध की बात बताता है। मल्लिका उसके विचार को बहुत चतुर मानती है।)
उभौ नन्दिन्याः सेवायां निरतौ भवतः, घासं, गुडं, तैलं, तिलकं च ददतः।
(दोनों नंदिनी की सेवा में लग जाते हैं, उसे घास, गुड़, तेल और तिलक आदि देते हैं।)
चतुर्थं दृश्यम् (चौथा दृश्य):
चन्दनः मल्लिका च कुम्भकारं प्रति पञ्चदश घटान् याचतः। कुम्भकारः मूल्यं याचति, परं चन्दनः दुग्धं विक्रीय मूल्यं दास्यति इति कथति।
(चंदन और मल्लिका कुम्हार से 15 घड़े माँगते हैं। कुम्हार मूल्य माँगता है, लेकिन चंदन कहता है कि दूध बेचकर मूल्य देगा।)
मल्लिका स्वाभूषणं दातुं इच्छति, परं कुम्भकारः तत् न स्वीकरोति, दुग्धविक्रयानन्तरं मूल्यं स्वीकरिष्यति इति कथति।
(मल्लिका अपना आभूषण देना चाहती है, लेकिन कुम्हार इसे स्वीकार नहीं करता और कहता है कि दूध बेचने के बाद मूल्य लेगा।)
पञ्चमं दृश्यम् (पाँचवाँ दृश्य):
मासान्ते उत्सवदिने चन्दनः मङ्गलाचरणं कृत्वा नन्दिन्याः दोहनं करोति। परं नन्दिनी पादप्रहारैः तं रक्तरञ्जितं करोति, दुग्धं च न ददाति।
(महीने के अंत में उत्सव के दिन चंदन मंगलाचरण कर नंदिनी का दूध दुहने की कोशिश करता है, लेकिन नंदिनी उसे पैर से मारकर रक्तरंजित कर देती है और दूध नहीं देती।)
मल्लिका धेनुं स्नेहेन दोग्धुं प्रयतति, परं धेनुः दुग्धहीना इति अवगच्छति।
(मल्लिका स्नेह से गाय का दूध दुहने की कोशिश करती है, लेकिन समझती है कि गाय में दूध नहीं है।)
सा कथति यत् मासपर्यन्तं अदोहनात् धेनुः पीडिता, अतः प्रहरति।
(वह कहती है कि महीने भर दूध न दुहने से गाय को पीड़ा हुई, इसलिए वह मार रही है।)
चन्दनः मल्लिका च अवगच्छतः यत् दैनन्दिनं कार्यं समये कर्तव्यम्।
(चंदन और मल्लिका समझते हैं कि दैनिक कार्य समय पर करना चाहिए।)
श्लोकेन ते कथति:
(श्लोक उन्हें बताता है:)
कार्यमद्यतनीयं यत् तदद्यैव विधीयताम्। विपरीता गतिर्यस्य स कष्टं लभते ध्रुवम्।
(जो काम आज करना हो, उसे आज ही करना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता, उसे निश्चित रूप से कष्ट मिलता है।)
सुविचार्य विधातव्यं कार्यं कल्याणकाङ्क्षिणा। यः करोत्यविचार्यैतत् स विषीदति मानवः।
(कल्याण की इच्छा रखने वाले को सोच-विचार कर काम करना चाहिए। जो बिना सोचे काम करता है, वह दुखी होता है।)
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