गोदोहनम् (गाय का दूध दुहना)
1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(एक शब्द में उत्तर लिखें)
(क) मल्लिका पूजार्थं सखीभिः सह कुत्र गच्छति स्म? (मल्लिका पूजा के लिए अपनी सखियों के साथ कहाँ जा रही थी?)
उत्तरम् – काशीविश्वनाथमन्दिरं। (काशी विश्वनाथ मंदिर में।)
(ख) उमाया: पितामहेन कति सेटकमितं दुग्धम् अपेक्ष्यते स्म? (उमा के पितामह को कितने सेर (सेटक) दूध की आवश्यकता थी?)
उत्तरम् – त्रिशत। (तीन सौ (३००))
(ग) कुम्भकारः घटान् किमर्थं रचयति? (कुंभार (घड़ा बनाने वाला) घड़े किस उद्देश्य से बनाता है?)
उत्तरम् – जीविकाहेतुः। (अपनी आजीविका के लिए)
(घ) कानि चन्दनस्य जिह्वालोलुपतां वर्धन्ते स्म? (चन्दन की जिह्वा (जीभ) की लालसा किससे बढ़ती थी?)
उत्तरम् – मोदकानि। (मोदक (लड्डू) से)
(ङ) नन्दिन्या: पादप्रहारैः क: रक्तरञ्जित: अभवत्? (नन्दिनी (गाय) के पैर के प्रहारों से कौन रक्त से रंजित (लाल) हो गया?)
उत्तरम् – चन्दनः। (चन्दन)
2. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत-
(पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखें)
(क) मल्लिका चन्दनश्च मासपर्यन्तं धेनोः कथम् अकुरुताम्? (मल्लिका और चन्दन ने एक महीने तक गाय के साथ क्या किया?)
उत्तरम्: मल्लिका चन्दनश्च मासपर्यन्तं दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवामेव अकुरुताम्।
(मल्लिका और चन्दन ने एक महीने तक गाय का दूध नहीं दुहा, केवल नन्दिनी (गाय) की सेवा ही की।)
(ख) कालः कस्य रसं पिबति? (समय किसका रस पीता है (अर्थात किसे नष्ट करता है)?)
उत्तरम्: क्षिप्रम् अक्रियमाणस्य आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः तद्रसं कालः पिबति।
(जो कार्य शीघ्र नहीं किया जाता — लेने, देने या कर्तव्य का — उसका फल (रस) समय नष्ट कर देता है।)
(ग) घटमूल्यार्थं यदा मल्लिका स्वाभूषणं दातुं प्रयतते तदा कुम्भकारः किं वदति? (जब मल्लिका घड़े के मूल्य के बदले अपने आभूषण देने का प्रयत्न करती है, तब कुम्हार क्या कहता है?)
उत्तरम्: घटमूल्यार्थं यदा मल्लिका स्वाभूषणं दातुं प्रयतते तदा कुम्भकारः वदति —
“पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम्। नयतु यथाभिलषितान् घटान्। दुग्धं विक्रीय एव घटमूल्यम् ददातु।”
(जब मल्लिका घड़े की कीमत पर अपने आभूषण देने की कोशिश करती है, तो कुम्हार कहता है – “बेटी! मैं कोई पापकर्म नहीं करता। मैं तुम्हें आभूषणों से रहित नहीं करना चाहता। तुम जितने चाहो उतने घड़े ले जाओ, और दूध बेचकर उसका मूल्य दे देना।”)
(घ) मल्लिकया किं दृष्ट्वा धेनोः ताडनस्य वास्तविकं कारणं ज्ञातम्? (मल्लिका ने क्या देखकर गाय के पिटने का वास्तविक कारण जाना?)
उत्तरम्: मल्लिकया दृष्ट्वा यत्, मासपर्यन्तं धेनोः दोहनं न कृतम्। अतः सा पीडाम् अनुभवति। इति धेनोः ताडनस्य वास्तविकं कारणम् अस्ति।
(मल्लिका ने देखा कि एक महीने तक गाय का दूध नहीं दुहा गया था, इसलिए वह दर्द में थी। यही गाय के पिटने का वास्तविक कारण था।)
(ङ) मासपर्यन्तं धेनोः अदोहनस्य किं कारणमासीत्? (एक महीने तक गाय का दूध न दुहने का क्या कारण था?)
उत्तरम्: मासपर्यन्तं धेनोः अदोहनस्य कारणम् अस्ति यत् — मासान्ते एकः महोत्सवाय त्रिशत-सेटकपरिमितं दुग्धम् विक्रय चन्दनेन धनिकः भवितुं इति चिन्तयित्वा सः मासपर्यन्तं दुग्धदोहनं न करोति।
(एक महीने तक दूध न दुहने का कारण यह था कि चन्दन ने सोचा — महीने के अंत में उत्सव के लिए 300 सेर दूध बेचकर मैं अमीर बन जाऊँगा। इसलिए उसने पूरे महीने दूध दुहना बंद कर दिया।)
3. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्न बनाएँ)
(क) मल्लिका सखीभिः सह धर्मयात्रायै गच्छति स्म। (मल्लिका अपनी सहेलियों के साथ धार्मिक यात्रा पर जाती थी।)
प्रश्न: मल्लिका कैः सह धर्मयात्रायै गच्छति स्म? (मल्लिका किनके साथ धर्मयात्रा पर जाती थी?)
(ख) चन्दनः दुग्धदोहनं कृत्वा एव स्वप्रातराशस्य प्रबन्धम् अकरोत्। (चन्दन ने दूध दुहने के बाद अपने नाश्ते की तैयारी की।)
प्रश्न: चन्दनः दुग्धदोहनं कृत्वा एव कस्य प्रबन्धम् अकरोत्? (चन्दन ने दूध दुहने के बाद किसके नाश्ते की तैयारी की?)
(ग) मोदकानि पूजानिमित्तानि रचितानि आसन्। (लड्डू पूजा के लिए बनाए गए थे।)
प्रश्न: कानि पूजानिमित्तानि रचितानि आसन्? (कौन-सी वस्तुएँ पूजा के लिए बनाई गई थीं?)
(घ) मल्लिका स्वपतिं चतुरतमं मन्यते। (मल्लिका अपने पति को बहुत बुद्धिमान मानती है।)
प्रश्न: मल्लिका स्वपतिं कीदृशं मन्यते? (मल्लिका अपने पति को कैसा मानती है?)
(ङ) नन्दिनी पादाभ्यां ताडयित्वा चन्दनं रक्तरज्जितं करोति। (नन्दिनी पैरों से मारकर चन्दन को रक्तरंजित (लहूलुहान) कर देती है।)
प्रश्न: का पादाभ्यां ताडयित्वा चन्दनं रक्तरज्जितं करोति? (कौन पैरों से मारकर चन्दन को रक्तरंजित करती है?)
4. मञ्जूषायाः सहायतया भावार्थे रिक्तस्थानानि पूरयत-
(मञ्जूषा की सहायता से भावार्थ में रिक्त स्थान भरें)
| गृहव्यवस्थायै | उत्पादयेत् | समर्थक | धर्मयात्रायाः | मङ्गलकामनाम् | कल्याणकारिणः |
यदा चन्दनः स्वपत्न्याः काशीविश्वनाथं प्रति धर्मयात्रायाः विषये जानाति तदा सः क्रोधितः न भवति यत् तस्याः पत्नी तं गृहव्यवस्थायै कथयित्वा सखीभिः सह भ्रमणाय गच्छति, अपि तु तस्याः यात्रायाः कृते मङ्गलकामनाम् कुर्वन् कथयति यत् तव मार्गाः शिवाः अर्थात् कल्याणकारिणः भवन्तु। मार्गे काचिदपि बाधा तव कृते समस्यां न उत्पादयेत्। एतेन सिध्यति यत् चन्दनः नारीस्वतन्त्रतायाः समर्थकः आसीत्।
हिंदी अनुवाद
जब चन्दन अपनी पत्नी के काशीविश्वनाथ की धर्मयात्रा के बारे में जानता है, तब वह क्रोधित नहीं होता, क्योंकि उसकी पत्नी उसे घर की व्यवस्था के बारे में बताकर सखियों के साथ भ्रमण के लिए जाती है, बल्कि वह उसकी यात्रा के लिए मंगलकामना करते हुए कहता है कि तुम्हारे मार्ग शिव अर्थात् कल्याणकारी हों। मार्ग में कोई भी बाधा तुम्हारे लिए समस्या न उत्पन्न करे। इससे सिद्ध होता है कि चन्दन नारी स्वतंत्रता का समर्थक था।
5. घटनाक्रमानुसारं लिखत-
(घटनाओं को क्रम के अनुसार लिखें)
(क) सा सखीभिः सह तीर्थयात्रायै काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गच्छति। (वह (स्त्री) अपनी सखियों के साथ तीर्थयात्रा के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर की ओर जाती है।)
(ख) उभौ नन्दिन्याः सर्वविधपरिचर्यां कुरुतः। (दोनों (पति-पत्नी) नन्दिनी (गाय) की हर प्रकार से सेवा करते हैं।)
(ग) उमा मासान्ते उत्सवार्थं दुग्धस्य आवश्यकताविषये चन्दनं सूचयति। (उमा महीने के अंत में उत्सव के लिए दूध की आवश्यकता के विषय में चन्दन को बताती है।)
(घ) मल्लिका पूजार्थं मोदकानि रचयति। (मल्लिका पूजा के लिए मोदक (लड्डू) बनाती है।)
(ङ) उत्सवदिने यदा दोग्धुं प्रयत्नं करोति तदा नन्दिनी पादेन प्रहरति। (उत्सव के दिन जब (चन्दन) दूध दुहने का प्रयास करता है, तब नन्दिनी (गाय) उसे पैर से मारती है।)
(च) कार्याणि समये करणीयानि इति चन्दनः नन्दिन्याः पादप्रहारेण अवगच्छति। (“कार्य समय पर करने चाहिए” — यह बात चन्दन नन्दिनी के पैर के प्रहार से समझ जाता है।)
(छ) चन्दनः उत्सवसमये अधिकं दुग्धं प्राप्तुं मासपर्यन्तं दोहनं न करोति। (चन्दन उत्सव के समय अधिक दूध पाने के लिए पूरे महीने तक दूध नहीं दुहता।)
(ज) चन्दनस्य पत्नी तीर्थयात्रां समाप्य गृहं प्रत्यागच्छति। (चन्दन की पत्नी तीर्थयात्रा समाप्त कर घर लौट आती है।)
उत्तरं –
1. (घ) मल्लिका पूजार्थं मोदकानि रचयति। (मल्लिका पूजा के लिए मोदक (लड्डू) बनाती है।)
2. (क) सा सखीभि: सह तीर्थयात्रायै काशीवि श्वनाथरमन्दिरं प्रति गच्छति। (वह (स्त्री) अपनी सखियों के साथ तीर्थयात्रा के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर की ओर जाती है।)
3. (ग) उमा मासान्ते उत्सवार्थ दुग्धस्य आवश्यकताविषये चन्दनं सूचयति। (उमा महीने के अंत में उत्सव के लिए दूध की आवश्यकता के विषय में चन्दन को बताती है।)
4. (ज) चन्दनस्य पत्नी तीर्थयात्रां समाप्य गृहं प्रत्यागच्छति। (चन्दन की पत्नी तीर्थयात्रा समाप्त कर घर लौट आती है।)
5. (ख) उभौ नन्दिन्या: सर्वविधपरिचया कुरुतः। (दोनों (पति-पत्नी) नन्दिनी (गाय) की हर प्रकार से सेवा करते हैं।)
6. (छ) चन्दन: उत्सवसमये अधिकं दुग्धं प्राप्तुं मासपर्यन्तं दोहनं न करोति। (उमा महीने के अंत में उत्सव के लिए दूध की आवश्यकता के विषय में चन्दन को बताती है।)
7. (ङ) उत्सवदिने यदा दोग्धुं प्रयत्नं करोति तदा नन्दिनी पादेन प्रहरति। (उत्सव के दिन जब (चन्दन) दूध दुहने का प्रयास करता है, तब नन्दिनी (गाय) उसे पैर से मारती है।)
8. (च) कार्याणि समये करणीयानि इति चन्दन: नन्दिन्या: पादप्रहारेण अवगच्छति। (“कार्य समय पर करने चाहिए” — यह बात चन्दन नन्दिनी के पैर के प्रहार से समझ जाता है।)
6. अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति इति प्रदत्तस्थाने लिखत-
(निम्नलिखित वाक्य कौन, किससे कहता है)
| क्रमांक | वाक्य (संस्कृत) | कः / का (किसने कहा) | कं / कां (किससे कहा) | हिन्दी अनुवाद |
|---|---|---|---|---|
| (क) | धन्यवाद मातुल! याम्यधुना। | उमा | चन्दनं प्रति | धन्यवाद मातुल! आज मैं जाती हूँ। – उमा ने चन्दन से कहा। |
| (ख) | त्रिसेटकमितं दुग्धम् शोभनम्। व्यवस्था भविष्यति। | चन्दनः | उमां प्रति | तीन सेट दूध सुंदर हैं। व्यवस्था की जाएगी। – चन्दन ने उमा से कहा। |
| (ग) | मूल्यं तु दुग्धं विक्रीयैव दातुं शक्यते। | चन्दनः | देवेशं प्रति | परंतु दूध का मूल्य केवल बेचकर दिया जा सकता है। – चन्दन ने देवेश से कहा। |
| (घ) | पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। | देवेशः | मल्लिकां प्रति | बेटी! मैं कोई पाप कर्म नहीं करता। – देवेश ने मल्लिका से कहा। |
| (ङ) | देवि! मयापि ज्ञातं यदस्माभिः सर्वथानुचितं कृतम्। | चन्दनः | मल्लिकां प्रति | देवी! मुझे भी ज्ञात है कि हमने सब कुछ उचित रूप से किया है। – चन्दन ने मल्लिका से कहा। |
7. पाठस्य आधारेण प्रदत्तपदानां सन्धिं / सन्धिच्छेदं वा कुरुत-
(पाठ के आधार पर दिए गए शब्दों की संधि/संधि-विच्छेद करें)
(क) शिवास्ते = शिवाः + ते
→ वे शिव हैं / वे शिव को संबोधित हैं।
(ख) मनःहरः = मनोहरः
→ मन को भाने वाला / आकर्षक।
(ग) सप्ताहान्ते = सप्ताह + अन्ते
→ सप्ताह के अंत में / सप्ताह के आख़िर में।
(घ) नेच्छामि = न + इच्छामि
→ मैं नहीं चाहता / मेरी इच्छा नहीं है।
(ङ) अत्युत्तमः = अति + उत्तमः
→ बहुत श्रेष्ठ / अत्यधिक उत्तम।
(अ) पाठाधारेण अधोलिखितपदानां प्रकृतिं प्रत्ययं च संयोज्य / विभज्य वा लिखत-
(पाठ के आधार पर दिए गए शब्दों की प्रकृति और प्रत्यय को संयोजित/विभाजित करें)
(क) करणीयम् = कृ + अनीय
→ करना योग्य / किया जाना चाहिए।
(ख) विक्रियम् = वि + क्री + ल्यप्
→ बेचना / व्यापार करना।
(ग) पठितम् = पठ् + क्त
→ पढ़ा हुआ / पढ़ लिया गया।
(घ) ताडयित्वा = ताडय् + क्त्वा
→ मारकर / पीटकर।
(ङ) दोग्धुम् = दुह् + तुमुन्
→ दूध निकालना / दुहने के लिए।


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